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सहारनपुर में 26 जुलाई को भड़की हिंसा ने एक बार फिर से दिखा दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार एक समुदाय विशेष को खुश करके वोट बटोरने की आस में प्रदेश में कानून-व्यवस्था की ओर से आंखें मूदें बैठी है। वास्तव में मात्र 100 गज भूमि के वास्तविक हक के नाम पर समुदाय विशेष द्वारा भड़काई गई और सुनियोजित तरीके से अंजाम दी गई। हिंसा से शहर में आगजनी और हत्या के दौर से साफ है कि प्रदेश में सरकार मुसलमानों के सामने घुटने टेक चुकी है और उन्हें हिंसा फैलाने की पूरी छूट दे दी गई है। इस दंगे में तीन लोगों की मौत हो गई और 34 लोग घायल हो गए।
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जानकारी के मुताबिक सहारनपुर दंगे की तैयारी काफी पहले से थी। संभवत: तैयारियों की जानकारी आला अधिकारियों और खुफिया विभाग दोनों को थी। लेकिन सियासी मजबूरियों के सामने वे मूक बने रहे। रोजा और रमजान के महीने में ईद के चार दिन पहले मुसलमानों को भड़काना और दंगे की आग में झांेकना, यह सब अचानक नहीं हो गया। इसके लिए बड़े झूठ और जबरदस्त अफवाह का सहारा लिया गया। यह झूठ फैलाया गया कि 'सिखों ने मस्जिद शहीद करके उस पर छत डाल ली है'।
गुरुद्वारे के पास ही मुसलमानों की घनी आबादी के इलाके ढोलीखाल, नखासा बाजार, रांगडो का पुल, कमेला कालोनी, लकड़ी की नक्काशी के सामान का बाजार आदि हैं। दंगे की साजिश रचने वालों ने बड़ी मासूमियत और सूझ-बूझ के साथ इन इलाकों समेत पूरे मुस्लिम समुदाय तक यह बात साथ फैला दी कि 'मस्जिद शहीद हो गई है' और वे उसे बचाने के लिए शीघ्र पहुंचंे। इसका मुसलमानों पर यह असर हुआ कि एक बड़ी भीड़ बिना सचाई जाने ही गुरुद्वारे की तरफ दौड़ पड़ी।
शुक्रवार यानी 25 जुलाई की रात ढाई बजे से ही लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जुटनी शुरू हो गयी। मुस्लिम युवकों की एक बड़ी टोली ने गुरुद्वारे पहुंचकर पथराव शुरू कर दिया। गुरुद्वारे में उपस्थित सिखों ने उन युवकों को खदेड़ दिया। घटना की जानकारी थोड़ी ही देर में अधिकारियों तक पहुंच गई, लेकिन उन्हें जागने और निर्णय लेने में एक से डेढ़ घंटे का समय लग गया। उनसे पहले मुसलमानों पर प्रभाव रखने वाले पूर्व विधायक एवं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे इमरान मसूद, उसके चचेरे भाई व सपा नेता शाजान मसूद और दिल्ली की जामा मस्जिद के अहमद बुखारी के दामाद सपा एमएलसी उमर अली खान आदि मुस्लिम नेता मौके पर पहुंच गए थे। सुबह साढ़े तीन बजे एडीएम (प्रशासन) दिनेश चंद्रा, एसपी (सिटी) वैभव कृष्ण और सहारनपुर विकास प्राधिकरण के अधिकारी शिकायती मुस्लिम पक्ष से बातचीत के लिए कुतुबशेर थाने पहंुच गए। लेकिन चार बजे तड़के गुरुद्वारे के सामने दोनों पक्षों में जमकर विवाद, पथराव एवं गोलीबारी शुरू हो गई। करीब पांच बजे निर्माण का विरोध कर रहे लोगों ने थाने का घेराव किया और अंबाला रोड पर जाम लगा दिया। सुबह साढ़े पांच बजे पुलिस बल मौके पर पहुंचा और हालात काबू करने की कोशिश की। डीएम संध्या तिवारी और एसएसपी राजेश पाण्डे बिना किसी खास तैयारी के प्रात: छह बजे थाना कुतुबशेर पहुंच गए थे। उनकी उपस्थिति में ही स्थिति बिगड़ी, लेकिन पुलिस नाकाम रही। इस बीच टकराव और हिंसा बढ़ती चली गई। सुबह साढ़े सात बजे गोलीबारी में एक व्यक्ति को गोली लगने पर भीड़ उग्र हो गई। उसके सामने पुलिस को भागने पर मजबूर होना पड़ा। आठ बजने तक मजहबी उन्मादियों भीड़ का पूरे माहौल पर कब्जा था और उसे रोकने की कोशिश करने वाले खुद को लाचार और बेबस पा रहे थे। शांति बनाए रखने की अपील करने पहुंचे मुस्लिम जन प्रतिनिधियों को भी अपनी भागने को मजबूर होना पड़ा।
दो-तीन घंटों के दौरान दंगाइयों ने पूर्व नियोजित तरीके से पहले दमकल की गाडि़यों को रोका, उन्हें आग लगाई और फिर रसायन डालकर अंबाला रोड पर सिखों की अनेक दुकानों को आग लगा दी। पुराने शहर में अनेक जगहों पर दंगाइयों ने लूटपाट, आगजनी और राहगीरों पर हमले शुरू कर दिए।
पुलिस ने नौ बजे स्थिति पर काबू पाने के लिए हवाई गोलीबारी की। साढ़े नौ बजे बाहर से बुलाई गई दमकल की गाडि़यों ने दुकानों में लगी आग को बुझाना शुरू किया। करीब पौने 11 बजे पुलिस कुतुबशेर चौराहे से भीड़ को खदेड़ने में सफल हो गई। 11 बजे नेहरू मार्केट और कपड़ों की प्रसिद्ध मार्केट रायवाला में आगजनी की घटनाएं शुरू हो गईं। डीएम संध्या तिवारी ने दोपहर पौने 12 बजे आधे शहर में और आधे घंटे बाद पूरे सहारनपुर नगर में कर्फ्यू घोषित कर दिया। डेढ़ बजे आईजी (मेरठ जोन) आलोक शर्मा ने सहारनपुर पहंुचकर पुलिस की कमान संभाली। ढाई बजे अर्द्धसैनिक बलों ने फ्लैग मार्च किया।
इस बीच सहारनपुर के सांसद राघव लखनपाल शर्मा और दूसरे बड़े नताओं ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को सहारनपुर के बिगड़े हालात की जानकारी दी। राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बातचीत कर सहयोग का भरोसा दिया। नतीजे में अर्द्धसैनिक बलों की 18 कंपनियां सहारनपुर भेज दी गईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में मामला आने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दंगे पर प्रभावी रूप से नियंत्रण करने और स्थिति को सामान्य बनाने के लिए जिले के अधिकारियों को सख्त कार्रवाई के कड़े निर्देश दिए। साथ ही उन्होंने एडीजी (तकनीकी सेवाएं) देवेंद्र चौहान, पूर्व में सहारनपुर के आयुक्त रहे एवं वर्तमान में प्रमुख सचिव (व्यावसायिक शिक्षा) भुवनेश कुमार, डीआईजी (एटीएस) दीपक रतन को विशेष विमान से सहारनपुर भेजा। शनिवार देर रात तक हालात पर नियंत्रण था। अभी सहारनपुर में अर्द्धसैनिक बलों के 600 जवान तैनात हैं। इस दंगे में सरफराज, आरिफ और हरीश कोचर की मौत हो गई।
प्रशासन ने स्थिति को सामान्य बनाने और दोनों समुदायों के लोगों के बीच भरोसे की वापसी के लिए गत 27 जुलाई (रविवार) को विकास भवन में जन प्रतिनिधियों की बैठक की। उसमें तमाम आला अधिकारियों के साथ सांसद राघव लखनपाल, दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री सरफराज खान, पूर्व मंत्री संजय गर्ग, बसपा विधायक रविंद्र मोल्हू, जगपाल, महावीर राणा, पूर्व सांसद जगदीश राणा, भाजपा जिला अध्यक्ष मानवीर पुंडीर आदि मौजूद रहे। 29 जुलाई को ईद के मौके पर प्रशासन ने कर्फ्यू में समय-समय पर ढील दी जिसके बाद त्योहार शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गया, लेकिन इस बीच भी छिटपुट घटनाएं होने से माहौल तनावपूर्ण बना रहा।
पहली बार दिखी ऐसी हिंसा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सहारनपुर जिला हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश, तीन राज्यों की सीमाओं से सटा खुशहाल जिला है, लेकिन 26 जुलाई का यहां जो कुछ हुआ उससे पहले सात लाख की आबादी वाले इस शहर के लोगों को ऐसे वीभत्स दंगे का अनुभव कभी नहीं हुआ था।
इस दंगे ने शहर के लोगों के दिल और दिमाग दोनों को झुलसा कर रख दिया।
मुआवजे की घोषणा
दंगे में मरने वाले लोगों के आश्रितों को सपा सरकार ने दस-दस लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है।
दंगे की थी पूरी आशंका
हर बार की तरह इस बार भी खुफिया विभाग का दावा था कि श्रावण मास में उत्तर प्रदेश के सहारपुर सहित मुजफ्फरनगर, मेरठ और कई अन्य जिलों में साम्प्रदायिक हिंसा शरारती तत्व फैला सकते हैं। लेकिन पूर्व सूचना के बावजूद प्रशासन और पुलिस सहारनपुर में हुई हिंसा को नहीं रोक सके।
20 बार हो चुकी है हिंसा
सहारपुर में मुस्लिम व सिखों के बीच यह पहली बार नहीं है कि जब हिंसा हुई है, पिछले चार वर्षों में कम से कम 20 बार दोनों के बीच विवाद गहरा चुका है, लेकिन इस बार विवाद ने दंगे का रूप धारण कर लिया और निर्दोष लोग उसकी भेंट चढ़ गए। 100 गज भूमि के विवाद के फेरे में निर्दोष लोगों की हत्या और कारोबारियों से उनका रोजगार छीनने की घटना ने सहारनपुर के दामन पर दाग लगा दिया है। सवाल यह उठता है कि अचानक कुतुबशेर थाने के आसपास हजारों लोगों की भीड़ कैसे पहंुच गई और जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से बातचीत करने वाले नेताओं के जाते ही भीड़ ने उग्र रूप धारण कर लिया। उपद्रवी हथियारों से लैस थे और अधिकांश घायलों को गोली लगी है या फिर उन पर धारदार हथियार से वार किया गया है।
बेबस दिखा पुलिस-प्रशासन
कुतुबशेर के सामने पुरानी मंडी में दंगाइयों ने पुलिस और अतिरिक्त सुरक्षा बल के जवानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया। ऐसे में पुलिस अधिकारी खुद की जान बचाने के लिए इधर-उधर जगत तलाशते रहे। दंगाइयों ने पुलिस पर कई बार पथराव करने के साथ-साथ गोली भी चलाई। हैरानी की बात यह कि 29 जुलाई को ईद के मद्देनजर पहले ही से पुलिस-प्रशासन की जिम्मेदारी तय कर दी गई थी, लेकिन फिर भी उपद्रवी मनमानी करने में कामयाब रहे।
मुजफ्फनगर हिंसा की याद हुई ताजा
सहारनपुर में भड़के दंगे के दौरान मंडी थाना क्षेत्र में मोटरसाइकिल पर सवार बदमाशों ने पहले लोगों से उनके नाम पूछे और बाद में उन पर गोली चला दी। कारोबारी हरीश कोचर को भी इन्हीं बदमाशों ने अपनी गोली का शिकार बनाकर मौत के घाट उतार दिया। गौरतलब है कि गत वर्ष अगस्त-सितम्बर माह में मुजफ्फनगर जिले में भड़की हिंसा के दौरान कवाल में भी नाम पूछ-पूछ कर हिन्दुओं को गोली का निशाना बनाया गया था।
एसजीपीसी ने किया दौरा
सहारनपुर जिले में सिख पंथ को पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत निशाना बनाये जाने का शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने कड़ा विरोध किया है। एसजीपीसी के अध्यक्ष जत्थेदार अवतार सिंह मक्कड़ ने कहा है कि सहारनपुर में असामाजिक तत्वों द्वारा गुरुद्वारा सिंह सभा में किए गए पठराव व सिखों की दुकानों को आग लगाने की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को फोन कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की। साथ ही इस पूरे मामले की जांच के लिए एक समिति गठित कर उसे सहारनपुर का निरीक्षण करने भेजा था। इस तीन सदस्यीय समिति में शामिल जत्थेदार सुखदेव सिंह भौर, भाई राजिंदर सिंह मेहता और करनैल सिंह पंजोली के दल ने अपनी रपट में स्पष्ट किया है कि सहारनपुर में गुरुद्वारा सिंह सभ द्वारा भूमि खरीदी गई थी। किसी शरारती तत्व ने यह अफवाह फैला दी कि इस भूमि पर 1947 से पहले मस्जिद का निर्माण था, जबकि माल विभाग के रिकार्ड व पुराने समय से रहने वाले स्थानीय निवासियों से ऐसा कोई विवरण नहीं मिला। उनके मुताबिक उच्च अदालत से भी विवादित भूमि का निर्णय गुरुद्वारा सिंह सभा के पक्ष में हुआ था। रपट में लिखा गया है कि गुरुद्वारे में लेंटर डाला जा रहा था जिसका मुसलमानों ने विरोध शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे शहर को आग के हवाले कर दिया। हिंसा में सिखों की दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया और उनकी संपत्ति को भारी नुकसान पहंुचाया गया है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय सिख संगत के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरचरन सिंह गिल ने सहारनपुर हिंसा की कड़ी निंदा की है। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री से दोषियों को सख्त सजा दिलाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि सिख पंथ चैन और अमन पसंद है, लेकिन जो कुछ सहारनपुर में सिखों के साथ हुआ वह बेहद दुखद है।
पंजाब तक पहुंची सहारनपुर की लपट
सहारनपुर में हुई हिंसा के विरोध में सिख समर्थकों ने 27 जुलाई को गुरदासपुर में बंद का आह्वान किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के विरूद्ध प्रदर्शन व नारेबाजी की गई और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई। होशियारपुर में भी सहारनपुर की घटना के खिलाफ बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने टांडा चौक में उत्तर प्रदेश सरकार का पुतला फूंका।
उत्तर प्रदेश में आजम खां के इशारे पर हो रहा हिन्दुओं का दमन : विहिप
सहारनपुर दंगे की वीभत्स घटना ने उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से मुगलिया सल्तनत की याद ताजा कर दी है। विश्व हिन्दू परिषद, दिल्ली के महामंत्री रामकृष्ण श्रीवास्तव ने केन्द्र सरकार से अपील की है कि दंगों को रोकना अब अखिलेश सरकार के बस की बात नहीं रह गई है, क्योंकि उसे तो आजम खां जैसे कट्टर मानसिकता वाले नेता चला रहे हैं। इसलिए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। उन्होंने कहा कि सपा सरकार के राज में हिन्दू, उनकी बहन-बेटियां, धर्मस्थल और साधू-संत तक असुरक्षित हैं।
गत 27 जुलाई को हुई बैठक में पारित एक प्रस्ताव में विहिप ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार व प्रशासन पर मुगलिया सल्तनत का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है इससे वहां हिन्दुओं और सिखों के मन में सम्पत्ति, महिलाओं और उनकी जान-माल की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता व्याप्त है। एक के बाद एक, हर जिला हिंसा की चपेट में आता जा रहा है। प्रशासनिक अधिकारी न सिर्फ पक्षपातपूर्ण व्यवहार करते दिख रहे हैं, बल्कि वे 'लव जिहाद' को बढ़ावा देने तथा धार्मिक स्थलों को अपमानित करने जैसे घृणित कृत्यों से भी परहेज नहीं कर रहे। विहिप ने पूछा है कि एक ओर तो मुरादाबाद में शिवरात्रि के दिन एक साध्वी को मंदिर में भगवान शंकर के जलाभिषेक से रोका जाता है, लेकिन दूसरी तरफ सैकड़ों की संख्या में दंगा करने जुटे जिहादियों को गुरुद्वारे पर आक्रमण के लिए पुलिस उपद्रव मचाने की खुली छूट दे देती है। क्या यही है वास्तविक पंथनिरपेक्षता? प्रस्ताव में कहा गया है कि विश्व हिन्दू परिषद उत्तर प्रदेश सरकार से अपनी कार्यशैली में पर्याप्त बदलाव की अपेक्षा रखती है जिससे इस प्रकार की एक भी घटना भविष्य में न होने पाए। बैठक में विहिप दिल्ली के अध्यक्ष रिखब चन्द जैन और बजरंग दल के संयोजक नीरज दोनेरिया सहित अनेक पदाधिकारी उपस्थित थे।
दहशत से एक वृद्धा की भी मौत ड्रोन विमान से रखी गई हालात पर नजर
हिंसा के दो दिन बाद 28 जुलाई को कर्फ्यू में ढील देते ही सब्जी मंडी इलाके में लूटपाट की गई
-सहारनपुर हिंसा पूरी तरह से पुलिस और प्रशासन की नाकामी की वजह से हुई। -रीता बहुगुणा जोशी, कांग्रेस नेता, उत्तर प्रदेश
-'दंगाइयों को सख्ती से कुचला नहीं गया तो देशद्रोहियों के हौसले बुलंद होंगे। सपा सरकार की तुष्टीकरण की नीति के कारण ही साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाली ताकतों को बल मिल रहा है। सहारनपुर दंगा सुनियोजित षड्यंत्र का परिणाम है। प्रदेश के 43 जिलों में आईएसआई का जाल फैला हुआ है। -कलराज मिश्र, केन्द्रीय मंत्री'
2 2मामले हुए दर्ज
89आरोपियों को किया गया गिरफ्तार
सहारनपुर से सुरेंद्र सिंघल/राहुल शर्मा
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