शिक्षा का भारतीयकरण आवश्यक
July 14, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

शिक्षा का भारतीयकरण आवश्यक

by
Aug 2, 2014, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 02 Aug 2014 14:50:44

 

यह बड़ी आश्चर्यजनक तथा साथ ही हास्यास्पद स्थिति है कि जो भारत शिक्षा, भाषा तथा ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में विश्व में सर्वोपरि तथा विश्वगुरु माना जाता रहा, वही भारत आज गुणात्मक दृष्टि से विश्व के सबसे पिछड़े राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा है। विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय लगभग 2800 वर्ष पूर्व तक्षशिला में स्थापित हुआ तथा नालन्दा, अजन्ता, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने देश-विदेश की अनेक प्रतिभाओं को आकर्षित किया। यहां पढ़ना लोगों के जीवन की साध बन गया, वही भारत आज विश्व के 200 प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में भी किसी भी स्तर पर नहीं है। भारत में आज कुल 630 विश्वविद्यालय हैं जो नेशनल एसेसमेंट एक्रेडिटेशन काउंसिल (एएएसी) के अनुसार एक भी विश्वविद्यालय सामान्य से ऊपर नहीं है। इनमें भी 179 विश्वविद्यालय सामान्य या इससे नीचे हैं। यही दुर्दशा महाविद्यालयों की है। कुल 33000 महाविद्यालयों में केवल 5224 सामान्य स्तर के हैं। अपनी इन्हीं असफलताओं को छिपाने के लिए पूर्व की संप्रग सरकार भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना का राग अलापती रही है। उच्चतर तथा प्राथमिक शिक्षा की अवस्था इससे भी अधिक चिन्तनीय तथा दयनीय है। शिक्षा का स्तर तेजी से गिरा है, बस्ते का बोझ बढ़ा है तथा रटन्त प्रणाली को प्रोत्साहन मिला है। शिक्षा, परीक्षा के मकड़जाल में बुरी तरह उलझ गई है। यूनेस्को की ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट के अनुसार विश्व में सर्वाधिक अनपढ़ वयस्क भारत में हैं जो विश्व में कुल जनसंख्या का 37 प्रतिशत है। इसका प्रमुख कारण, भारत में अमीर-गरीब के बीच शिक्षा स्तर में भारी असमानता बतलाई गई है। 2010 में शिक्षा में शिक्षा पाने का अधिकार (आरटीई) जोड़ा गया पर जिसे प्रभावी ढंग से क्रियान्वित नहीं किया गया। यह कहने में अतिशयोक्ति न होगी कि पिछले दस वर्षों में अर्जुन सिंह, पल्लम राजू तथा कपिल सिब्बल के मंत्रित्व काल में शिक्षा कोरे वायदों तथा उत्तेजक नारों तक सिमट कर रह गई, शिक्षा पूर्णत: उपेक्षित रही। न यह अपने देश की जड़ों से जुड़ी, न कोई संदेश भावी पीढ़ी को दे सकी और न ही कोई स्पष्ट भाषा नीति निश्चित कर सकी, न ही कोई उद्देश्यपूर्ण तथ्यपरक पाठ्यक्रम ही दे सकी।
शिक्षा की दिशा
सामान्यत: वैदिक काल से 18वीं शताब्दी तक भारतीय शिक्षण चिंतन का आधार धर्म तथा नैतिक जीवन मूल्यों का संरक्षण रहा। गुरु शिष्य के सात्विक गहरे संबंध, सामूहिक जीवन का बोध तथा पश्चिमी जीवन इसका मार्ग रहा। इसी पद्धति से कृष्ण सुदामा, अर्जुन अश्वत्थामा एक साथ पढ़े। कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य, विद्यारण्य ने हरिहर व बुक्काराय, रामानन्द ने अपने बारह शिष्यों को तैयार किया। कहीं भी अमीर गरीब, जात-पांत प्रगति में बाधक नहीं बने। गत हजारों वर्षों से भारत के ऋषियों-मनीषियों ने अपने अध्ययन, अनुभवों, आचरण तथा अनुभूतियों से भारतीय जीवन मूल्यों के प्रतिमान स्थापित किये। शिक्षा में जीवन के चार पुरुषार्थों, धर्म के दस लक्षणों तथा संस्कारों की बृहद् योजना को जीवन मूल्यों की शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग माना गया। मूल्यपरक शिक्षा ने न केवल भारत में बल्कि विश्व में उन्नत सभ्यता तथा संस्कृति का मार्गदर्शन किया।
मध्यकालीन भारत में अनेक आक्रमणों, लुटेरों तथा घुसपैठियों ने राजनीतिक प्रहारों, आर्थिक लूटमार, सांस्कृतिक ध्वंस से देश को तहस-नहस किया, परन्तु पाठशालाओं, तीर्थस्थलों तथा विद्वानों के घरों में नैतिक जीवन की मूल्यपरक शिक्षा ने अपना स्थान अक्षुण्ण बनाये रखा। सन्तों, भक्तों, गुरुओं ने अपनी वाणी तथा उपदेशों में शिक्षा में जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा को सदैव सर्वोच्च बनाये रखा।
भारत में मूल्यपरक शिक्षा पर पहला क्रूर प्रहार ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारियों, ब्रिटिश प्रशासकों, ब्रिटिश इतिहासकारों तथा ईसाई पादरियों के द्वारा हुआ। भारत के ईसाईकरण तथा गुलामीकरण के प्रयास में उन्हें सर्वाधिक बाधा यहां की शिक्षा व्यवस्था लगी। 19वीं शताब्दी तक भारत में उत्तम भारतीय शिक्षा व्यवस्था का वर्णन शिक्षाविद् धर्मपाल ने किया है (देखें, धर्मपाल, द ब्यूटीफुल ट्री, नई दिल्ली, 1963) इसी की चर्चा 1931 में महात्मा गांधी ने लन्दन के चैथम हॉल के अपने भाषण में की थी।
भारतीय परतंत्रता के काल में भी जीवनमूल्य परक शिक्षा को बनाये रखने के लिए कई महत्वपूर्ण उच्चकोटि के संस्थानों की स्थापना हुई। इसमें उल्लेखनीय 1902 ई. में स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा गुरुकुल कांगड़ी (हरिद्वार), वाराणसी में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना, रामकृष्ण द्वारा स्थापित विद्यालय हैं। स्वामी विवेकानन्द ने शिक्षा का उद्देश्य जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र निर्माण बताया (देखें, द कम्पलीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानन्द, भाग तीन, कोलकाता 1964 का संस्करण, पृ. 302) इसी भांति ब्रिटिश परतंत्रता के काल में महर्षि अरविन्द ने पांडेचेरी आश्रम में तथा महाकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने विश्वभारती में शिक्षा की व्यापक दृष्टि को बनाये रखा।
यह आश्चर्यजनक है कि भारत, स्वतंत्र होते ही अपने शिक्षा मार्ग की दिशा से भ्रमित हो गया। शिक्षा का भावी स्वरूप पाश्चात्य अथवा यूरोपीय मॉडल पर ही घसीटा जाता रहा, बल्कि अंग्रेजों से भी अधिक प्रभावी ढंग से अग्रसर हुआ। भारत में पाश्चात्यीकरण को ही आधुनिकता का पर्याय अथवा मार्गदर्शक मान लिया गया। भारतीय मानसिकता में दासता का नया दौर प्रारंभ हुआ। शैक्षणिक स्तर पर गिरावट ने सामाजिक विघटन, अस्त-व्यस्त अर्थ रचना, राजनीतिक पतन तथा सांस्कृतिक ह्रास को तीव्रता से बढ़ावा दिया।
शिक्षा नीति में विकृति का प्रमुख कारण इसका स्वरूप राष्ट्र की चित्ति के प्रकाश में न होना था। यूनेस्को की डेलर्स रिपोर्ट में भी कहा गया कि किसी भी देश की शिक्षा का स्वरूप तथा जड़ें उस देश की संस्कृति में होनी चाहिए। वस्तुत: शिक्षा लौकिक तथा पारलौकिक उन्नत जीवन को स्थापित करने वाली होनी चाहिए। शिक्षा राष्ट्रीय गौरव, आत्मविश्वास तथा आत्म गौरव बढ़ाने वाली हो। शिक्षा का स्वरूप संवैधानिक तथा अन्तरराष्ट्रीय दृष्टिकोण पर आधारित होना चाहिए।
स्वतंत्रता के बाद
स्वतंत्रता के पश्चात शिक्षा राजनीति की चेरी बन गई। पंचवर्षीय योजनाएं एक के बाद एक बनती गईं, परन्तु संसद का सदस्य बनने के लिए तथा इसके उच्चतम पद के लिए भी प्राथमिक शिक्षा तक की भी योग्यता न रखी गई। शिक्षा विभाग को अज्ञानतावश अलाभकारी कहा गया। ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक शिक्षा की उपेक्षा की जाने लगी। यह सही है कि शिक्षा कोई उद्योग या सिक्के गढ़ने की मशीन नहीं है पर शिक्षा बाजारवादी व्यवस्था के शिकंजे में कस गई। शिक्षाविद् धर्मपाल का कथन है- भारत की वर्तमान प्रशासनिक-शैक्षिक व्यवस्था औपनिवेशिक तंत्र की अनुकृति है जिसे एक शोषणकारी उद्देश्य से बनाया गया।
शिक्षा स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय समाज के सर्वांगीण विकास का एक अनुपम मार्ग बन सकती थी। शिक्षा के विकास के लिए यद्यपि कुछ व्यक्तिगत प्रयास हुए। इसमें महात्मा गांधी तथा प्रो. डी.एस. कोठारी के प्रयास सर्वोपरि हैं। गांधीजी ने बिना नैतिक मूल्यों के शरीर को आत्माविहीन कहा है। उन्होंने शिक्षा में तीन आर. अर्थात रीडिंग, राइटिंग तथा अर्थमैटिक की बजाय तीन एच. अर्थात हैड (चिंतन), हार्ट (भावना) तथा हैण्ड (कर्म) को महत्व दिया। वे भारतीय शिक्षा की जड़ों को भारतीय संस्कृति में पाते हैं। प्रो. कोठारी ने समाज की रचना में शिक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया है। वे इसे राष्ट्रनिर्माण की कुंजी बतलाते हैं जिसमें वे विज्ञान-तकनीकी के साथ चरित्र निर्माण को प्रमुखता देते हैं। वे शिक्षा का लक्ष्य राष्ट्रीय विकास के लिए भी, चरित्र निर्माण के लिए शिक्षा पर बल देते हैं।
भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने शिक्षा क्षेत्र में वैज्ञानिकता तथा तकनीकी पर बहुत बल दिया परन्तु जीवन में धर्म तथा आध्यात्मिकता की पूर्ण उपेक्षा की। वस्तुत: मानव जीवन के विकास के लिए दोनों चाहिए। अत: शिक्षा की प्रगति के लिए पं. नेहरू नहीं, महात्मा गांधी चाहिए, प्रो. कोठारी चाहिए। रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को 'संस्कार विहीन' बतलाया जिसने युवकों के व्यक्तित्व के विकास को नकारा है। उन्होंने शिक्षा का लक्ष्य मानव जीवन में अंतिम लक्ष्य के लिए अग्रसर तथा प्रशिक्षित कराना बताया (देखें प्रो. बाल आप्टे, फर्स्ट नेशन, पृ. 185)। भारतीय समाज में तीव्र बेचैनी तथा असन्तोष को देखते हुए कांग्रेस सरकार ने भारतीय जनसमाज को भ्रमित करने के लिए- राष्ट्रीय शिक्षा निर्धारित करने के लिए अनेक शिक्षा आयोग नियुक्त किये, पर दुर्भाग्य से न ही उनकी रपटों को गंभीरता से पढ़ा गया और न ही कभी उनके सुझावों को क्रियान्वित किया गया। उदाहरणत: 1948 में पहला शिक्षा आयोग डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नेतृत्व में बना। इसने शिक्षा में धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता पर बल दिया। 1957 में संस्कृत आयोग ने शिक्षा में संस्कृति तथा संस्कृत भाषा की शिक्षा पर बल दिया। न्यायाधीश गजेन्द्र गडकर आयोग बना। कोठारी आयोग ने अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये। 1986 में नई शिक्षा नीति का जोर शोर से प्रचार हुआ। इसी के साथ शिक्षा की चुनौती पर देशभर में चर्चा हुई (देखें सरकार द्वारा प्रकाशित, चैलेंज ऑफ ऐजुकेशन-ए पॉलिसी परस्पैक्टिव) पर क्रियान्वयन के नाम पर वही ढाक के तीन पात रहे।
नि:संदेह स्वतंत्रता के पश्चात 67 वर्षों में शिक्षा का स्तर तीव्रता से गिरता गया। संक्षेप में वर्तमान शिक्षा प्रणाली में धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा का अभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। इसीलिए सांस्कृतिक धरोहर तथा सामाजिक परम्परा वर्तमान शिक्षा प्रणाली से असम्बद्ध है। आध्यात्मिक ज्ञान के बिना कोरा वैज्ञानिक ज्ञान अधूरा है। नैतिकता के अभाव में बौद्धिक विकास का केवल भौतिक महत्व होगा। चारित्रिक ह्रास, आर्थिक विकास में कदापि क्षतिपूर्ति न कर सकेगा। विदेशी विश्वविद्यालयों का मोह तथा शिक्षा का व्यावसायीकरण देश के लिए घातक तथा विनाशकारी होगा। इसी भांति शिक्षा के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सरकार को अपनी भाषा नीति तथा पाठ्यक्रमों में आवश्यक तथा साथ ही चरित्र निर्माण तथा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे। मार्ग कंटकाकीर्ण है पर बढ़ना तो होगा ही, तब राष्ट्र विश्व में गौरवशाली स्थान प्राप्त कर सकेगा।         -डॉ. सतीश चन्द्र मित्तल

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies