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फिनलैंड के प्रधानमंत्री एलेक्जेंडर स्टब ने पिछले सप्ताह कहा था कि 'स्टीव जॉब्स' ने उनका अर्थतंत्र तोड़कर रख दिया और नौकरियां छीन लीं। नोकिया फीनिश कंपनी थी, जो 'स्टीव जॉब्स' के एपल के सामने टिक नहीं सकी। एलेक्जेंडर का आशय था कि आईफोन के कारण नोकिया का कारोबार ठप हुआ तो आई-पैड के कारण फिनलैंड का प्रसिद्ध पेपर उद्योग बंद होने के कगार पर है क्योंकि लोग आजकल कागज का कम, बल्कि उसके स्थान पर टैब/ स्मार्टफोन का ज्यादा उपयोग करते हैं। फिनलैंड का यह उदाहरण स्मार्ट फोन को महत्व बताने के लिए पर्याप्त है कि 'स्मार्टफोन' क्या है?
सिनेमा जगत में जिस प्रकार से 'हाउसफुल' शब्द प्रचलन में आया, वैसे ही मोबाइल फोन के बाजार में 'स्मार्ट फोन' शब्द चलन में आ गया ऐसा माना जाता है कि 1997 में एरिक्सन ने अपने मोबाइल फोन के सन्दर्भ में इस शब्द का उपयोग किया था। स्मार्ट फोन अर्थात साधारण मोबाइल फोन से बढ़कर जिसमें फोन सुविधाएं और फीचर्स हों बड़े स्क्रीन वाले मोबाइल फोन को स्मार्ट फोन कहा जाता है। उसमें कम्प्यूटर जैसी क्षमताएं होती हैं और उन क्षमताओं का दोहन करने वाला सुव्यवस्थित ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) होता है। स्मार्ट फोन में तीव्र गति वाला प्रोसेसर, अधिक रेम, हाई रिजोल्यूशन डिस्प्ले, मोशन सेंसर, जीपीएस नेविगेशन जैसी आधुनिक सुविधाएं होती हैं। स्मार्ट फोन को कम्प्यूटर का ही छोटा स्वरूप माना जाता है।
आजकल 'टच स्क्रीन' स्मार्ट फोन का अविभाज्य अंग बन गया है। टच स्क्रीन के बिना स्मार्ट फोन का विचार भी करना संभव नहीं है। टच स्क्रीन से इंटरनेट पर सर्फिंग करना आसान हो जाता है। बड़ी स्क्रीन पर वीडियो भी अच्छे दिखते हैं और यह सब करने के लिए इंटरनेट की गति भी तेज चाहिए। स्मार्टफोन, 3 जी सर्विस तथा 3.5 जी सर्विस को सपोर्ट करते हैं अर्थात 'हाथ में लेकर चलने वाला कम्प्यूटर' ऐसा हम स्मार्ट फोन के बारे में कह सकते हैं।
स्मार्ट फोन के उपयोग में सबसे महत्वपूर्ण उसका ऑपरेटिंग सिस्टम (ओ एस) है। कम्प्यूटर और लैपटॉप के विकास और उन्नयन में ओएस ने बड़ी भूमिका निभाई थी। माइक्रोसॉफ्ट ने उस पर एकाधिकार कर लिया था। पहले डॉस, फिर विंडोज और उस विंडोज के अलग- अलग वर्जन, लेकिन मोबाइल फोन में ऐसा नहीं हुआ। मोबाइल फोन का उपयोग जब से कॉल करने या सुनने के अलावा होने लगा, तब से मोबाइल फोन में ऑपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता होने लगी। मोबाइल से ई-मेल भेजना, नेटसर्फिं ग करना, वीडियो फिल्म देखना, ऐसे अनेक काम मोबाइल से होने लगे। इनकी प्रभावशीलता ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) पर निर्भर रहने लगी।
प्रारम्भ के कुछ वषार्ें तक सिम्बियन ने मोबाइल ओएस के बाजार में अपना प्रभुत्व बनाए रखा था। एरिक्सन के स्मार्ट फोन आर380 में प्रयुक्त सिम्बियन को मोबाइल फोन के पहले ऑपरेटिंग सिस्टम का सम्मान मिला, उस समय मोबाइल फोन के बाजार में नोकिया की तूती बोलती थी। नोकिया ने 'सिम्बियन' को पकड़ कर रखा था। नोकिया के सभी मोबाइल फोन में सिम्बियन ओएस का प्रयोग होता था, लेकिन समय के साथ न तो नोकिया ने बदलाव किया और न ही सिम्बियन ने। मोबाइल फोन का बाजार बदल रहा था। 3 जी सर्विस शुरू हो चुकी थी। नेटसर्फिंग की गति बढ़ रही थी। टच स्क्रीन मोबाइल फोन की आवश्यकता बढ़ रही थी। ब्लूटूथ, वाई-फाई,जीपीएस, हाईिपक्सल कैमरा, वाइस रिकॉर्डर, इन्फ्रारेड, स्पीचरिकग्निशन आदि सभी सुविधाएं मोबाइल फोन की जरूरत बन गई थीं। फिर भी सिम्बियन बनाने वाली 'सिम्बियन लिमिटेड' को बदलाव की यह गति समझ में नहीं आई। यही दौर था, जब 'एंड्राइड' का उदय हो गया। एंड्राइड यह मुक्त स्रोत ओएस (ओपन ऑपरेटिंग सिस्टम) था अर्थात यह लचीला तो था ही, साथ में इस पर अनेक एप्स (एप्लीकेशन्स) भी बन रहे थे। स्मार्ट फोन के विकास में इन एप्स का योगदान महत्वपूर्ण है। एप्स का मतलब है, किसी तीसरी कंपनी या व्यक्तिद्वारा बनाया गया छोटा सा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम, जो उस स्मार्ट फोन पर और उसके ओएस पर चलता है।
एंड्राइड फोन से मिल रही तीव्र स्पर्धा के कारण और उस स्पर्धा से सिम्बियन को बाहर होता देख नोकिया ने वर्ष 2008 में सिम्बियन लिमिटेड का अधिग्रहण किया, लेकिन नोकिया द्वारा सारे संसाधन सिम्बियन के विकास में झोंक देने के बावजूद भी न तो सिम्बियन सुधर सकी और न ही नोकिया कंपनी उभर सकी। सिम्बियन अब इतिहास बन चुकी है।
वर्ष 2003 में अमरीका के एंडी रुबिन ने मुक्त स्रोत (ओपन सोर्स) पर आधारित एंड्राइड ओएस जारी किया। यह लिन्क्स पर आधारित था और प्रमुखता से टच स्क्रीन मोबाइल फोन के लिए बनाया गया था। ओएस क्योंकि मुक्त स्रोत था, इसे अपनाना आसान था और इस पर आधारित एप्लीकेशन्स बनाना भी सरल था। इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि सैमसंग, एलजी, मोटोरोला आदि कंपनियों ने अपने स्मार्ट फोन में एंड्राइड का उपयोग किया। सैमसंग ने तो एंड्राइड के साथ स्मार्ट फोन के बाजार का सबसे बड़ा हिस्सा हथिया लिया।
एंड्राइड की ताकत को पहचाना गूगल ने 17 अगस्त, 2005 को, गूगल ने एंड्राइड इंक को अधिग्रहित किया। उस समय एंड्राइड की विश्व के मोबाइल फोन बाजार में हिस्सेदारी मात्र 1.5 फीसदी थी। इसे अधिग्रहित करने के बाद गूगल ने एंड्राइड के उन्नयन के अनेक प्रयास किये। वर्ष 2007 में गूगल ने एंड्राइड का स्रोत (सोर्सकोड), ओपनसोर्स लाइसेंसिंग के अंतर्गत जारी किया। इसका अच्छा सकारात्मक परिणाम रहा, लेकिन इसके बाद भी वर्ष 2009 तक एंड्राइड का स्मार्ट फोन के बाजार में हिस्सा था, मात्र 2.8 फीसदी। आज एंड्राइड ओएस स्मार्ट फोन के बाजार में निर्विवाद रूप से सम्राट की भूमिका में है। अधिकतम बाजार की हिस्सेदारी के साथ यह पहले पायदान पर है। विंडोज और एपल की ओएस के संयुक्त बिक्री से भी ज्यादा एंड्राइड ओएस के मोबाइल फोन बेचे जाते हैं। आज इसके 14 लाख से भी ज्यादा एप्स दुनिया में प्रयोग किये जा रहे हैं। इसकी विशेषता यह है की 'गूगल प्ले' ने अनेक एप्स मुफ्त में दिए हैं। स्मार्ट फोन के बाजार में आने वाला प्रत्येक निर्माता, अपने स्मार्ट फोन में एंड्राइड का ही प्रयोग कर रहा है।
स्मार्ट फोन को सबसे ज्यादा चमक या तड़क-भड़क दी एपल के ओएस ने, जो कि एपल का 'आई फोन' ही था। उसने स्मार्ट फोन की संकल्पना को लोगों तक पहंुचाया। नोकिया और सिम्बियन की जोड़ी जब टच स्क्रीन के दौर में स्मार्ट फोन को आगे ले जाने में विफल रही, तब एपल के ओएस ने उस कमी को दूर किया। यह ओएस वर्ष 2007 में 'आईफोन' के साथ जारी किया गया था। पहले इसे 'आई फोन ओएस' कहा जाता था, जिसे जून, 2010 से 'आईओएस' कहा जाने लगा। आईओएस मात्र आई फोन पर ही उपयोग में लाया जा सकता है। आई फोन में अधिकांश एप्स सशुल्क हैं। आई फोन के नौ लाख से ज्यादा एप्स उपलब्ध हैं। इस समय स्मार्ट फोन के बाजार में आईओएस का हिस्सा 40 फीसदी के आसपास है। पिछले वर्ष एपल के प्रमोटर स्टीव जॉब्स की मृत्यु के पश्चात आईफोन के विकास की गति कुछ थम सी गई थी, लेकिन एपलअपने सदमे से उबरकर आई फोन परिवार को पुन: मजबूत करने में लगा है। किसी दौर में दुनिया में ब्लैकबेरी प्रतिष्ठा का प्रतीक होता था। ब्लैकबेरी का मोबाइल फोन रखने वाले लोग बड़े गर्व के साथ उसे प्रदर्शित करते थे। ब्लैकबेरी फोन के कारण कुछ देशों की सरकार अपने देश की सुरक्षा को लेकर चिंता करने लगी थी। ब्लैकबेरी फोन बनाने वाली कंपनी रिसर्च इन मोशन(रिम) ने अपना एक अलग सर्वर कनाडा में रखा था जिससे दुनिया के सारे ब्लैकबेरी फोन जुड़े हुए थे, लेकिन अब ब्लैकबेरी का वह जलवा नहीं रहा। ब्लैकबेरी का भी हाल कुछ-कुछ सिम्बियन- नोकिया जैसा हो गया। ब्लैकबेरी ने स्वयं को समय के साथ उन्नत नहीं रखा, इसलिए उसे बाजार का हिस्सा खोना पड़ा।
रिम कंपनी ने ब्लैकबेरी विकसित करते समय उसे 'मल्टी टास्किंग स्मार्ट फोन' के रूप में बनाया था। यह 'क्वार्टी की-पैड' को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। दुनिया के अधिकतम देशों में जब 3जी का फैलाव नहीं हुआ था, उस समय रिम ने इंटरनेट के लिए अलग से कनाडा में सर्वर रखा था। गतिमान इंटरनेट यह ब्लैकबेरी की विशेषता थी। ई-मेल और नेटसर्फिंग के कारण 3जी के पहले के दिनों में ब्लैकबेरी कार्पोरेट क्षेत्र में काम करने वालों की पहली पसंद बन चुका था। लेकिन टच स्क्रीन मोबाइल फोन का दौर आने लगा, 3जी से युक्त मोबाइल फोन आने लगे और ब्लैकबेरी का दौर जाता रहा। आज बाजार में ब्लैकबेरी का हिस्सा बहुत कम बचा है।
कम्प्यूटर्स और लैपटॉप की दुनिया में ओएस की सिरमौर, माइक्रोसफ्ट के हाथों मोबाइल फोन और लैपटॉप का बाजार जाता रहा। शायद माइक्रोसॉफ्ट को इस बाजार का अंदाजा नहीं लग पा रहा था या फिर अत्यंत तीव्र गति से बदलने वाले और कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले वातावरण का उनको अभ्यास नहीं था। प्रारंभ के दिनों में माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज सीई नाम से ओएस बनाया था। वो था तो न्यूनतन संसाधनों वाले उपकरणों के लिए, लेकिन विंडोज ने उसे प्रारंभिक दौर में मोबाइल फोन के लिए प्रयोग किया। यह चल नहीं पाया और बाद में सिम्बियन की असफलता के बाद नोकिया ने विंडोज का हाथ थामा। विंडोज ने भी इसका फायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन स्पर्धात्मक वातावरण में देरी से प्रवेश करने वाले खिलाड़ी को जो समस्या होती है, वही समस्या माइक्रोसॉफ्ट को विंडोज से रही। ़विंडोज8 ओएस काफी उन्नत और विकसित हैं, किन्तु उसमें एप्स की संख्या बहुत कम है। भविष्य के बाजार को देखते हुए माइक्रोसॉफ्ट ने नौ इंच से छोटे स्मार्ट फोन में विंडोज ओएस को निशुल्क किया है, जो कि बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाने का एक तरीका है।
आज स्मार्ट फोन की दुनिया अत्यंत अस्थिर है। कल जो शिखर पर था, वह आज गर्त में है, और कल बाजार में नगण्य सी दिखने वाली स्मार्टफोन कंपनियां आज शिखर पर पहुंच रही हैं। ऐसा संकेत है कि भविष्य में भी यही प्रचलन रहेगा। -प्रशांत पोल
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