महात्मा की नजर में भारत की विविधता
May 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

महात्मा की नजर में भारत की विविधता

by
Jul 21, 2014, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 21 Jul 2014 12:05:16

महात्मा गांधी का यह प्रसिद्ध कथन कि भारत के प्रमुख धर्म/सम्प्रदाय/पंथ के सभी लोग भाई-भाई हैं, यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण, गंभीर तथा विचारणीय विषय है। यह सर्वज्ञात है कि गांधीजी भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के प्रमुख नेता ही न थे बल्कि हिन्दू धर्म के महान उपासक प्रेरक तथा सन्देशवाहक भी थे। अत: उनके उपरोक्त कथन का विशेष महत्व अवश्य रहा होगा। प्रश्न यह भी है कि क्या यह उनके जीवन का निष्कर्ष था, अध्ययन, अनुभव तथा अनुभूति का परिणाम था, अथवा उनकी तत्कालीन घोर निराशा तथा राष्ट्र की स्वतंत्रता के निमित्त भावी मनोकामना तथा महत्ती आकांक्षा का द्योतक है? क्या ये मनोभावना की अभिव्यक्ति है?
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
यह स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म हजारों साल पुराना, अनेक धार्मिक तथा दार्शनिक ग्रंथों का समुच्चय, अनेक सम्प्रदायों का संयोग तथा अनेक ऋषियों मनीषियों, सन्तों तथा भक्तों की देन है। यह सत्य, अहिंसा, समरसता तथा सहिष्णुता आदि गुणों से विभूषित है। ये प्रारंभ से विश्व बंधुत्व, सर्वे भवन्तु सुखिन: व मानव कल्याण की उदात्त भावनाओं से ओतप्रोत है तथा उसे किसी भी स्वतंत्र उपासना की गारंटी है। ईसाई सम्प्रदाय केवल 2014 वर्ष पुराना, महात्मा ईसा मसीह द्वारा प्रदत्त, बाईिबल पुस्तक पर आधारित है। इसका गत सहस्रो वर्षों का इतिहास परस्पर कलह तथा खून-खराबे से जुड़ा है। यह केवल ईसाई भाईचारे को मानता है। जहां तक इस्लाम का विषय है इसका जन्म ही सातवीं शताब्दी में हुआ। इसका विस्तार यूरोप तथा ऐशिया में तलवार का भय दिखाकर अथवा जबरदस्ती इस्लामीकरण से हुआ। यह केवल हजरत मोहम्मद साहब को 'पैगम्बर' तथा 'कुरान' को पवित्र पुस्तक मानता है। कांई भी व्यक्ति सुन्नत द्वारा मुसलमान बनता है। ये भी विश्व में मुस्लिम भाईचारे की बात कहता है। सिख पंथ हिन्दू धर्म का एक अंग तथा उसकी वीर भुजा के रूप में माना जाता है। गुरुनानक देव से गुरुतेगबहादुर तक ने हिन्दू जीवन के लिए अनेक संघर्ष झेले। इसकी रक्षा के लिए गुरुगोविंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की। 1849 में पंजाब के अंग्रेजी राज्य में विलय के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने अपनी विभेदकारी नीति के आधार पर इसे हिन्दू धर्म से अलग करने के भरसक प्रयत्न किये।
गांधी जी का हिन्दू चिंतन
महात्मा गांधी जीवनभर एक कर्तव्यनिष्ठ हिन्दू तथा इसके महान पोषक, उद्बोधक तथा प्रेरणास्रोत रहे। सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय, उनके पत्र यंग इंडिया तथा हरिजन हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता को व्यक्त करते हैं। उन्होंने स्वयं माना, 'मैं वंशानुगत गुणों के प्रभाव पर विश्वास रखता हूं और मेरा जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ है, इसलिए मैं हिन्दू हूं। जिन धर्मों को मैं जानता हूं उनमें मैंने इसे सबसे अधिक सहिष्णु पाया है। इसमें सैद्धांतिक कट्टरता नहीं है। आत्माभिव्यक्ति का अधिक से अधिक अवसर मिलता है…। इसके अनुयायी न सिर्फ दूसरे पंथों का आदर कर सकते हैं बल्कि वे सभी की अच्छी बातों को पसन्द कर सकते हैं और अपना सकते हैं। अहिंसा सभी धर्मों में है मगर हिन्दूधर्म मेंं इसकी उच्चतम अभिव्यक्ति और प्रयोग हुआ है। मैं जैन और बौद्ध धर्मों को भी हिन्दू धर्म से अलग नहीं मानता।' (देखें, यंग इंडिया, 20 अक्तूबर 1927) गांधी जी ने भारत के प्राचीन ग्रंथों पाश्चात्य साहित्य तथा समकालीन विभिन्न चिंतनधाराओं का अध्ययन किया था, वे वेदों की पवित्रता पर पूर्ण विश्वास रखते हैं (खण्ड 41, पृ. 542-43) वे गीता को माता तथा अपने दैनिक आध्यात्मिक आहार (खण्ड 28 पृ. 125) मानते हैं। वे गीता को सब समस्याओं का समाधान तथा अपने लिए कामधेनु, मार्गदर्शिका तथा सहायिका बतलाते हैं।
गांधी जी के अनुसार हिन्दू धर्म एक जीवित धर्म है। इसका आधार एक ही धर्म पुस्तक नहीं है (नवजीवन, सात फरवरी 1926) वे हिन्दू धर्म को सत्य की आत्मिक खोज का दूसरा नाम- वह धर्म जो सत्तारोपित नहीं है, जिस धर्म में सब धर्मों से अधिक सहिष्णुता है तथा जिसके अनुयायी को अधिक से अधिक आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है।
गांधी जी विश्व में राजनीति में सक्रिय रहते पहले हिन्दू थे जिन्होंने विश्वव्यापी प्रभाव स्थापित किया। उन्होंने साहसपूर्वक घोषित किया था कि राजनीति धर्म की अनुचरी है। धर्महीन राजनीति को एक फांसी ही समझा जाए, क्योंकि उसकी आत्मा मर जाती है। (देखें, यंग इंडिया, 3 अप्रैल 1924) गांधी जी ने हिन्दू धर्म के विश्वव्यापी चिंतन के स्वरूप को बतलाते हुए लिखा, हिन्दू धर्म सारे मानवों को ही नहीं, समस्त जीवों के भाईचारे का आग्रह करता है। वे इसी एकता में विश्वास व्यक्त करते बतलाते हैं कि हिन्दू धर्म में गाय की पूजा मानवीयता के विश्वास की दिशा में उसका एक अनोखा योगदान है। महात्मा गांधी हिन्दू धर्म की विश्वव्यापी श्रेष्ठता के कारण तत्कालीन विश्वव्यापी चिन्तनधाराओं को अस्वीकार करते हैं। वे बैंथम तथा जेएस मिल के उपयोगितावाद को नहीं मानते जो हिन्दू धर्म के सर्वजनहिताय या सर्वजन सुखाय की बजाय केवल बहुजन हिताय को मानते हैं। वे एडम स्मिथ के व्यक्तिवाद को नहीं मानते। वे इटली के चिंतक मैकियावेली को अस्वीकार करते हैं जो साध्य और साधन में कोई अन्तर नहीं मानता। और न ही ब्रिटिश हाब्स को मानते जो अधिनायकवाद का समर्थक है।
गांधी जी तथा अन्य सम्प्रदाय
गांधी जी ने अपने चिंतन में बार-बार हिन्दू, मुस्लिम, पारसी तथा ईसाई का वर्णन किया है (देखें, हिन्द स्वराज्य, पृ. 26, 32, 35, 76) गांधी जी ने धर्म को साम्प्रदायिक मत के रूप में नहीं लिया। वे हिन्दू मार्ग पर अटूट आस्था रखते थे, परन्तु उन्होंने हिन्दू धर्म को एक मानव धर्म के रूप में अपनाया। वे देशभक्ति तथा मानवीयता का एक समान अर्थ मानते हैं। इसके लिए उन्होंने कहा मैं संबंधी और अजनवी, स्वदेशी या विदेशी, श्वेत अथवा काले हिन्दू तथा भारत के सभी व्यक्ति मेरे भाई हैं और न ही कोई मानव एक दूसरे के लिए अजनवी। सबका कल्याण सर्वोदय का एक ही उद्देश्य चाहिए (कृष्ण कृपलानी, ऑल आर माई ब्रदर्स)
उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा कि मैंने दक्षिण अफ्रीका में पहले भी अनुभव किया था कि हिन्दू मुसलमान में कोई विशुद्ध मित्रता नहीं थी। उन्होंने माना कि यद्यपि हिन्दुस्तान के अधिकांश मुसलमान और हिन्दू एक ही नस्ल के हैं तो भी धार्मिक वातावरण ने उनको एक दूसरे से भिन्न बना दिया है… 1300 साल के साम्राज्य विस्तार करते आने के कारण मुसलमान जाति, लड़ाकू जाति हो गई है। इसलिए उनमें धींगामस्ती की आदत पड़ गई है। गुण्डापन धींगामस्ती का स्वाभाविक परिणाम है। हिन्दू लोगों की सभ्यता अत्यन्त प्राचीन है और उनमें अहिंसा समाई है। (गांधी वाडमय, खण्ड 24, पृ. 276-77) 1927 में रहे कांग्रेस के अध्यक्ष मुख्तार अहमद अंसारी ने 13 फरवरी 1930 के एक पत्र में गांधीजी को लिखा अब हिन्दू मुस्लिम एकता निम्नतम हैं। इस पर गांधी ने निराश हो 16 फरवरी के उत्तर में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रश्न को समस्याओं की समस्या स्वीकार किया। बाद में गांधी ने घोर निराशा में कहा, हिन्दुओं और मुसलमानों को एक दूसरे से लड़ने दो… एक दूसरे के सिर फोड़ने और उससे खून बहने दो (खण्ड 16 पृ. 215) पं. मोतीलाल नेहरू इस एकता की बुरी तरह असफलता स्वीकार करते हैं।
गांधीजी ने देश में स्वराज्य प्राप्ति के लिए हिन्दू मुस्लिम सहयोग तथा एकता को नितांत आवश्यक समझा तथा राष्ट्रीय आन्दोलन में मुसलमानों के सहयोग का पूर्ण प्रयत्न किया (देखें मोहम्मद शकीर, खिलाफ टू पार्टिशन, पृ. 69) गांधी जी ने हिन्दुओं के लिए इसे महानतम, श्रेष्ठतम आन्दोलन तथा खिलाफात को कामधेनु कहा। उन्होंने घोषणा की हिन्दू मुसलमान में जितनी इस समय एकता है, उतनी एकता इस युग में कभी न रही (खण्ड 17, पृ. 64) उन्होंने हिन्दुओं का आह्वान किया कि अलगाव छोड़ो, परस्पर विश्वास तथा मुसलमानों को रक्त बंधु समझो।
परन्तु गांधी का यह विश्वास फिसलनकारी आधारभूमि पर खड़ा था। वस्तुत: यह हिन्दू मुस्लिम संबंध पूर्णत अस्थायी तथा अवसरवादी सिद्ध हुआ। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद करीम छागला ने राष्ट्रीय कार्यक्रम में खिलाफत प्रश्न के जोड़ने की महान भूल कहा, क्योंकि इसने मुसलमानों में एक अतिरिक्त भूमिगत वफादारी की भावना को बढ़ाया, जिससे वे अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए सीमाओं के पार देखने लगे (द पीपुल्स, 26 सितम्बर 1925) वस्तुत: यह समझौता, हिन्दू मुस्लिम एकता- राष्ट्रवाद तथा देशभक्ति की आधारशिला पर न टिका था, यह शुद्ध रूप से मजहबी था।
गांधीजी ने भारत में ईसाइयों के कुचक्रों तथा ईसाई पादरियों के कुप्रयासो पर कठोर प्रहार किया। वे ईसाइयों द्वारा हिन्दू विरोधी प्रचार के कटु आलोचक थे। उन्होंने ईसाइयों के इस कथन को बिल्कुल नकार दिया कि ईसाइयत धर्म है या हिन्दू धर्म झूठा है (खण्ड 55, पृ. 544-45) उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि आज जो प्रयास हो रहे हैं उससे तो यही दिखलाई देता है कि ये तो हिन्दू धर्म को जड़मूल से उखाड़ फेंकने और उसके स्थान पर दूसरा धर्म कायम करने की तैयारी में है। गांधी ने स्वयं लिखा कि उन्हें भी ईसाई बनाने के प्रयास हुए। किसी ने उन्हें प्रोटेस्टेंड माना और किसी ने प्रेसीबीटेरियन तो किसी ने प्रछन्न ईसाई कहा। उन्होंने छद्मवेश में ईसाइयों के सर्वधर्म सम्मेलन तथा विश्व बन्धुत्व आदि शब्दों को निरर्थक बताया। तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। एक ईसाई मित्र सीएफ एन्ड्रयूज ने जब उनसे पूछा, यदि कोई कहे कि ईसाई बने बिना मुझे शांति तथा मुक्ति नहीं मिलती तो क्या करना चाहिए। गांधी जी ने स्पष्ट कहा किसी को धर्म नहीं बदलना चाहिए (खण्ड 64, पृ. 21-22) अत: हिन्दू धर्म की मानवीय दृष्टि से ईसाइयों को भाई-भाई कहा परन्तु उनकी सदा आलोचना की। यह उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन से पूर्व कहीं भी सिखों को अलग से भाई-भाई नहीं कहा क्योंकि वे उन्हें हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग मानते रहे। यह अवश्य है कि ब्रिटिश राजनीतिज्ञों की विभेद तथा हिन्दुओं से अलगाववादी नीति तथा एम ए मैकालिफ की छद्म योजना ने अलगाव को बढ़ाया, गांधी जी को इस अलगाव की पहली अनुभूति तब हुई जब वे अमृतसर में हिन्दू सिख एकता पर जमकर बोले। परन्तु तभी वहां के एक प्रमुख सिख कार्यकर्ता ने अलग ले जाकर कहा कि ऐसा न बोलें, यह हानिकारक होगा। तभी से गांधी जी ने सिखों के प्रति सावधानीपूर्वक बोलना श्ुारू किया तथा उन्हें अलग से भाई कहा।

गांधी जी के बाद

गांधी जी की मृत्यु के पश्चात, गांधी जी के भाई-भाई की मनोकामना एक हास्यास्पद नारा बनकर रह गया। पंडित नेहरू ने प्रारंभ से ही हिन्दू प्रतिरोध तथा मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाई। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने संविधान में सेकुलरिज्म शब्द को जोड़कर उसे सैद्धांतिक आधार देने की बजाय राजनीतिक हथकंडा बनाया तथा हिन्दू प्रतिरोध बनाये रखा। राजीव गांधी ने जहां शाहबानो के प्रकरण में मुसलमानों को खुश करने तथा दिल्ली में सिख हत्याकाण्ड में सिख विरोध प्रदर्शित किया, वहां पोप का राजकीय स्वागत कर अपने ईसाई प्रेम को दर्शाया। इसी भांति सोनिया गांधी की सरकार ने बहुसंख्यक हिन्दू समाज की घोर उपेक्षा कर मुस्लिम तुष्टीकरण की सभी हदें पार कर दीं। संभवत: इस कारण विगत चुनाव में ऐतिहासिक तथा शर्मनाक पराजय हुई। प्रश्न यही है कि क्या महात्मा गांधी की मनोकामना शतांश में भी पूरी हुई। महात्मा गांधी ने स्वयं एकता तथा भाईचारे का आधार, देशभक्ति तथा राष्ट्रीय एकात्मता की भावना को माना है जो आज भी नितांत आवश्यक है। 

-डॉ. सतीश चन्द्र मित्तल

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

पाकिस्तानी हमले में मलबा बनी इमारत

दुस्साहस को किया चित

पंजाब में पकड़े गए पाकिस्तानी जासूस : गजाला और यमीन मोहम्मद ने दुश्मनों को दी सेना की खुफिया जानकारी

India Pakistan Ceasefire News Live: ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकवादियों का सफाया करना था, DGMO राजीव घई

Congress MP Shashi Tharoor

वादा करना उससे मुकर जाना उनकी फितरत में है, पाकिस्तान के सीजफायर तोड़ने पर बोले शशि थरूर

तुर्की के सोंगर ड्रोन, चीन की PL-15 मिसाइल : पाकिस्तान ने भारत पर किए इन विदेशी हथियारों से हमले, देखें पूरी रिपोर्ट

मुस्लिम समुदाय की आतंक के खिलाफ आवाज, पाकिस्तान को जवाब देने का वक्त आ गया

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

पाकिस्तानी हमले में मलबा बनी इमारत

दुस्साहस को किया चित

पंजाब में पकड़े गए पाकिस्तानी जासूस : गजाला और यमीन मोहम्मद ने दुश्मनों को दी सेना की खुफिया जानकारी

India Pakistan Ceasefire News Live: ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकवादियों का सफाया करना था, DGMO राजीव घई

Congress MP Shashi Tharoor

वादा करना उससे मुकर जाना उनकी फितरत में है, पाकिस्तान के सीजफायर तोड़ने पर बोले शशि थरूर

तुर्की के सोंगर ड्रोन, चीन की PL-15 मिसाइल : पाकिस्तान ने भारत पर किए इन विदेशी हथियारों से हमले, देखें पूरी रिपोर्ट

मुस्लिम समुदाय की आतंक के खिलाफ आवाज, पाकिस्तान को जवाब देने का वक्त आ गया

प्रतीकात्मक चित्र

मलेरकोटला से पकड़े गए 2 जासूस, पाकिस्तान के लिए कर रहे थे काम

प्रतीकात्मक तस्वीर

बुलंदशहर : पाकिस्तान के समर्थन में पोस्ट करने वाला शहजाद गिरफ्तार

Brahmos Missile

‘आतंकवाद कुत्ते की दुम’… ब्रह्मोस की ताकत क्या है पाकिस्तान से पूछ लीजिए- CM योगी

रिहायशी इलाकों में पाकिस्तान की ओर से की जा रही गालीबारी में क्षतिग्रस्त घर

संभल जाए ‘आतंकिस्तान’!

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies