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ब्राजील के फोर्तालेजा में 15 और 16 जुलाई को आयोजित ब्रिक्स देशों के छठे वार्षिक सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक परिपक्व राजनेता होने का परिचय दिया। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के लिए यह पहला वैश्विक सम्मेलन था। इसके बावजूद उन्होंने बड़ी दमदारी के साथ भारत का पक्ष रखा। उनकी इस कूटनीतिक क्षमता की प्रशंसा उनके विरोधी भी कर रहे हैं। मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन को तो अंग्रेजी में सम्बोधित किया, पर ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों से हिन्दी में बात की। हिन्दी में ही उन्होंने ब्रिक्स देशों के नेताओं को भारत का महत्व और भारत की ताकत का अहसास कराया। इसी का परिणाम है कि सम्मेलन में ब्रिक्स विकास बैंक के पहले अध्यक्ष पद पर किसी भारतीय को बैठाने का निर्णय लिया गया। उल्लेखनीय है कि सम्मेलन के अन्तिम दिन ब्रिक्स के सभी सदस्य देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना पर सहमति जता दी है। इस सम्मेलन की यह सबसे बड़ी उपलब्धि रही। अनुमान है कि दो वर्ष केअन्दर ब्रिक्स विकास बैंक का गठन हो जाएगा। इसका मुख्यालय शंघाई (चीन) में होगा और दक्षिण अफ्रीका में क्षेत्रीय कार्यालय बनाया जाएगा। बैंक की शुरुआत 50 अरब डॉलर की पंूजी से होगी और सभी संस्थापक देश बराबर की पंूजी देंगे। बैंक की सुरक्षित पंूजी 100 अरब डॉलर की होगी।
बैंक की स्थापना का उद्देश्य है ढांचागत सुविधाओं के विकास के लिए सदस्य देशों और विकासशील देशों को कर्ज उपलब्ध कराना। इस बैंक के अस्तित्व में आने से ब्रिक्स के सदस्य देशों को विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष की ओर ताकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके साथ ही ब्रिक्स देशों को विश्व बैंक पर प्रभुत्व जमाए बैठे अमरीका की दादागिरी भी नहीं सहनी पड़ेगी। माना यह भी जा रहा है कि ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना विश्व बैंक की विफलता का परिणाम है। इस समय विश्व बैंक विकासशील देशों को 40 से 60 अरब डॉलर का कर्ज देता है,जबकि उन्हें एक खरब डॉलर की आवश्यकता है। ब्रिक्स विकास बैंक की पहल दो साल पहले भारत ने ही की थी। नरेन्द्र मोदी भारत की इस पहल को अंजाम तक पहंुचाने में सफल रहे। इसलिए भी उनकी वाहवाही हो रही है। आशंका थी कि चीन बड़ी आर्थिक ताकत होने के कारण इस बैंक के लिए तैयार नहीं होगा,लेकिन मोदी की कूटनीति ने चीन को तैयार कर लिया। यही नहीं, चीन सबसे अधिक सुरक्षित पंूजी 41 अरब डॉलर देने को तैयार हो गया। दक्षिण अफ्रीका सबसे कम 5 अरब डॉलर देगा, जबकि भारत,रूस और ब्राजील 18-18 अरब डॉलर देंगे। भारत को छह वर्ष तक ब्रिक्स बैंक की अध्यक्षता करने का अवसर मिलेगा,तो अन्य देशों को पांच-पांच वर्ष तक। ब्रिक्स बैंक की संचालन समिति का अध्यक्ष रूस का होगा और निदेशक मण्डल का निदेशक ब्राजील का होगा।
सम्मेलन में ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच नरेन्द्र मोदी को लेकर एक उत्सुकता दिखी। वह उत्सुकता थी, नरेन्द्र मोदी क्या कहेंगे और किस रूप में कहेंगे।
इस तरह आगे बढ़ा 'ब्रिक्स'
' ब्रिक्स का नामकरण उसके सदस्य देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के अंग्रेजी नाम के पहले अक्षरों को मिलाकर हुआ है।
' दिसम्बर, 2010 से पहले ब्रिक्स सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका शामिल नहीं था। इससे पहले इसे ब्रिक कहा जाता था।
' ब्रिक का सुझाव सबसे पहले 2001 में 'इनवेस्ट बैंक गोल्डमैन सैक्स' के अध्यक्ष जिम ओ नील ने दिया था।
' इसके बाद 2008 में वैश्विक मंदी के दौर में ब्रिक अस्तित्व में आया।
' 2009 में ब्रिक के सदस्य देशों का पहला सम्मेलन रूस में हुआ।
' 2010 में ब्राजील में इसके सदस्य देशों की बैठक हुई।
' 2011 में चीन ने ब्रिक्स देशों की बैठक की मेजबानी की।
' 2012 में यह बैठक भारत में हुई। इसी बैठक में पहली बार ब्रिक्स बैंक की स्थापना पर चर्चा हुई।
' विश्व के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में इन पांचों देश की भागीदारी लगभग 21 प्रतिशत है।
पिछले 15 वषार्ें में विश्व के कुल जी.डी.पी. में इन देशों की भागीदारी तीन गुना बढ़ी है।
' ब्रिक्स देशों में विश्व की लगभग 43 प्रतिशत जनसंख्या रहती है।
' इन देशों के पास लगभग 44 खरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है।
' इस समय ब्रिक्स देशों के बीच आपसी व्यापार लगभग 300 अरब डॉलर का होता है। उम्मीद जताई जा रही है कि 2015 तक यह व्यापार 500 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
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