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महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन की सरकार ने हाल ही में राज्य में मुसलमानों की 50 पिछड़ी जातियों को पांच फीसदी आरक्षण देने का शिगूफा छेड़ा है। आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ऐसी घोषणा महज मुस्लिम वोट बैंक हथियाने से ज्यादा और कुछ नहीं है। इसके ठीक बाद उत्तर प्रदेश में भी 2012 के विधानसभा चुनाव से पूर्व सपा के चुनाव घोषणापत्र मंे मुसलमानों की 30 वंचित जातियों को 27 फीसदी आरक्षण देने के वायदे को पूरा किए जाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। भारत में रहने वाले मुसलमान क्या वास्तव में आरक्षण के हकदार हैं? कम से कम सच्चर कमेटी द्वारा की गई सिफारिशों से तो यही साबित होता है। मुस्लिम आरक्षण पर पेश हैं अरुणाचल प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक राम कुमार ओहरी से पाञ्चजन्य संवाददाता राहुल शर्मा की बातचीत के प्रमुख अंश :
ल्ल क्या आप मानते हैं कि भारत में आजादी के 67 वर्ष बाद भी मुसलमानों की दशा दयनीय है और उन्हंे आरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है?
यदि आप मुसलमानों की बात करते हैं तो यह जान लीजिए कि भारत को छोड़कर किसी दूसरे मुसलमान देश के मुकाबले यहां रहने वाले मुसलमान ज्यादा सुरक्षित और संपन्न हैं। सच्चर कमेटी की सिफारिशें यूपीए सरकार के इशारे पर आनन-फानन में लागू करवाई गईं थीं। मैंने कुछ प्रमाण देकर सच्चर कमेटी का विरोध किया था, लेकिन कभी मुझे उसका जवाब तक नहीं दिया गया। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी से जुड़े प्रो. संजय कुमार और मैंने अपनी आपत्ति में बताया था कि शिशु मृत्युदर, बाल मृत्युदर, जन्म के समय जीवन की प्रत्याशा, शहर में रहने और साक्षरता के मामले में मुसलमान हिन्दुओं से पीछे नहीं रह गए हैं। सुरेश तेन्दुलकर समिति के अनुसार भारत की जनसंख्या का लगभग 37.2 फीसदी हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे है। करीब 36 करोड़ हिन्दू ग्रामीण क्षेत्रों और झुग्गी-झोपडि़यों में गुजर-बसर कर रहे हैं। इनके निर्धन बच्चों को 9 दिसम्बर, 2006 के 'मुसलमानों का हक पहले' वाली नीति के क्रियान्वयन में एक भी छात्रवृत्ति नहीं दी गई थी। आज मुसलमानों की दशा आरक्षण पाने की हकदार नहीं रह गई है, लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि इसे लेकर कोई गंभीर नहीं है।
ल्ल आपकी ओर से सच्चर कमेटी में क्या आपत्तियां दर्ज कराई गई थीं और उन पर सरकार ने क्या संज्ञान लिया था?
स्वयं सच्चर कमेटी की रपट में स्वीकार किया गया था कि देश के 13 राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों में मुसलमानों का साक्षरता प्रतिशत हिन्दुओं से बेहतर था। इसके बावजूद इन्हीं को सरकार ने लाखों छात्रवृत्तियां और ऋण मुहैया करवाया था। हैरानी की बात यह है कि निर्धन होने के बाद भी हिन्दू छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति से वंचित रखा गया। यही नहीं राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएससी) की सिफारिशों के आधार पर मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी और बौद्ध पंथ के छात्रों को विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सस्ती ब्याज दरों पर ऋण प्रदान किया गया, लेकिन किसी भी हिन्दू छात्र-छात्रा को यह लाभ नहीं दिया गया।
हिन्दुओं को छोड़कर दो करोड़ छात्रों को छात्रवृत्ति मुहैया कराई गई थी। 2 दिसम्बर, 2006 को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्टे्रशन द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में शोध पत्र के माध्यम से खुलासा किया गया था कि मुसलमानों और हिन्दुओं की आर्थिक और शैक्षणिक दशा में कोई अंतर नहीं है। इसके बावजूद सच्चर कमेटी की रपट में इन तथ्यों को अनदेखा कर दिया गया। हमारी ओर से प्रमुख तथ्य देने के बावजूद सरकार ने उन्हें अनदेखा कर सच्चर कमेटी की सिफारिशों को सही माना। मैंने चार पत्र लिखे जिसमें से एक का भी जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद हमने दिल्ली उच्चतम न्यायालय में सच्चर कमेटी की सिफारिशों के विरुद्ध याचिका दायर की। यह याचिका अभी सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, लेकिन कोई हल अभी तक नहीं निकाला गया।
ल्ल आपकी दृष्टि में मुस्लिम आरक्षण की व्यवस्था को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
देश के विभाजन के बाद संविधान सभा के समक्ष 25 मई, 1949 को सरदार पटेल ने कहा था कि 'जो अल्पमत जबरदस्ती देश का विभाजन करा सकता है, उसे अल्पसंख्यक क्यों समझते हैं। वह एक मजबूत सुसंगठित और सुसंबद्ध अल्पमत है, फिर उसे संरक्षण और विशेष सुविधाएं क्यों दी जाएं?' आज देश में वही भयावह स्थिति दुबारा बन चुकी है। कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार की मुसलमानों के वोट बैंक की राजनीति से वह दिन दूर नहीं कि जब देश में एक और पाकिस्तान का विभाजन होने का संकट खड़ा हो जाएगा। केन्द्र सरकार को राज्यों में चल रहे मुस्लिम आरक्षण के खेल पर तुरंत रोक लगानी चाहिए, यही राष्ट्रहित में सर्वोपरि होगा। सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर रोक लगाकर उन पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
ल्ल बंगलादेश से घुसपैठ कर भारत में घुस आए मुसलमान भी यहां के नागरिक होने का दावा करते हैं, इस पर आपका क्या मत है?
भारत में करीब 5 करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिये प्रवेश कर चुके हैं। इनमें बहुत से गलत साधनों से स्वयं को भारत का मूल निवासी दर्शाने के लिए जरूरी कागजात तैयार करवा लेते हैं। फिर अल्पसंख्यक बनकर सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठाते हैं और समय आने पर मतदान भी करते हैं। इनकी रोकथाम के लिए सरकार को ठोस नीति बनानी होगी। पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो 20 हजार इमामों और मौलवियों को वेतन देने की घोषणा तक कर डाली। यह राशि हिन्दू करदाताओं से वसूले जाने वाले 'जजिया' कर से ही दी जाती है। आज हिन्दुओं का भविष्य सचमुच अंधकारमय है। ल्ल
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