पड़ोसी देशों के साथमित्रता की पहल
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ऐसा पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षेस देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया हो। वास्तव में अनेक दृष्टि से यह एक ऐतिहासिक कदम था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने इस निर्णय से यह बताने का प्रयास किया कि हम अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर विकास की राजनीति करना चाहते हैं। एक तरीके से मृतप्राय पर पड़े दक्षेस को जीवित करने के लिए भारत की ओर से यह सकारात्मक प्रयास समय के अनुसार जरूरी था, क्योंकि असल में अगर हमें मजबूत होना है तो अपने पड़ोसियों के साथ संबंध अच्छे करने होंगे और उनके दुख-सुख में भागीदार होना पड़ेगा। इसे कुशल राजनीति ही कहेंगे कि मोदी ने दक्षेस नेताओं से जहां अनौपचारिक बैठक कर ली वहीं पूरे दक्षिण एशिया में विस्तारवाद की राजनीति कर रहे चीन को भी कड़ा संदेश दे दिया कि अब भारत में एक सशक्त सरकार आ गई है,जो न तो किसी से डरेगी और न ही किसी को डराने का प्रयास करेगी बल्कि सभी के साथ मिलकर स्वयं का एवं पड़ोसियों के विकास पर जोर देगी। मोदी के इस कूटनीतिक फैसलों को अनेक विदेशी मीडिया में भी सराहना मिली वहीं देश ही नहीं विदेशों तक में उनके इस निर्णय से सभी उत्साहित दिखे। इतिहास को देखें तो मृतप्राय पड़े दक्षेस को कांग्रेस की सरकार ने क्षेत्रिय राजनीति के दबाव में आकर पड़ोसी देशों के संबंधों में गहरे गड्ढे खोद दिये थे, जिससे हमारे पड़ोसी देशों के साथ संबंध बिल्कुल न के बराबर ही थे, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने सरकार बनते एक अभूतपूर्व फैसले को लेकर अपनी मंशा से अवगत करा दिया कि वे पड़ोसियों से कैसे रिश्ते चाहते हैं।
-मृत्युंजय दीक्षित
फतेहगंज गल्ला मंडी,लखनऊ(उ.प्र.)
पाञ्चजन्य परिवार का मैं हृदय से धन्यवाद व्यक्त करती हूं कि, जिसने इस चुनाव में राजनैतिक, सामाजिक मुद्दों को एक नवीन आयाम में रखकर राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत किया। साथ ही प्रत्येक विषय को इस प्रकार खंगाल दिया मानो साक्षात दृश्य ही चल रहा हो। बाबा साहब के अनुच्छेद 370 पर दिये बयान पाठकों के लिए एक नये सच के रूप में हैं। साथ ही कांग्रेस की अनीतियों व उनके सच को इस पत्रिका ने ही उजागर किया जो शायद ही किसी मीडिया ने किया हो।
-हेमलता गोलछा, गुवाहाटी (असम)
पाञ्चजन्य सदैव से 'राष्ट्रहित सर्वोपरि' है के ध्येय को लेकर चल रहा है। अरुंधती राय जो अपने को देशहित और जनता की हितैषी बताती फिरती हैं उनकी हकीकत कुछ और ही है। वह गांवों की अशिक्षित और भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाकर अपना प्रलोभन सिद्ध करती हैं। यह वही अरुंधती राय हैं, जिन्होंने मकबूल फिदा हुसैन के देवी-देवताओं के गलत चित्र छापने पर कहा था कि 'यह तो चित्रकला है'। इससे पता चलता है कि इनकी मानसिकता क्या है।
-हरिओम चौधरी, कटिहार (बिहार)
मैं पाञ्चजन्य का एक लम्बे समय से नियमित पाठक हूं। नया स्वरूप अच्छा है। इसमें सभी वर्गों के लिए विषय वस्तु समाहित होती है। 11 मई अंक में छपा का लेख 'मेहनत से तय होगी राह सुनहरी' छात्रों के लिए अतिउपयोगी सामग्री है। इस प्रकार के लेखों से छात्रों को भविष्य में कहां जाना है एवं उनके लिए क्या उचित रहेगा का ज्ञान हो जाता है।
-भगीरथ कुमरावत
तात्याटोपे नगर, भोपाल (म.प्र.)
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