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सम्राट विक्रमादित्य अपनी वीरता और न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार दरबार में दो औरतें एक बच्चे को लेकर झगड़ती हुई आ पहुंचीं। दोनों औरतें उसी एक बच्चे को अपना-अपना कहकर लड़-झगड़ रही थीं और न्याय की गुहार कर रही थीं। वहां काफी भीड़ एकत्र हो गई।
सम्राट विक्रमादित्य ने दोनों औरतों का पक्ष सुना। दोनों ने उस बच्चे को पुन: अपना-अपना बेटा बताया। सम्राट असमंजस में पड़ गए। उन्होंने तत्काल दरबान को एक तेज धार वाली तलवार लाने का हुक्म दिया और कहा कि बच्चे के इस तलवार से दो टुकड़े करके आधा-आधा हिस्सा औरतों में बांट दो। इतना सुनते ही एक औरत रो पड़ी और कहने लगी महाराज यह बच्चा दूसरी औरत का ही है। बच्चे को उसे दे दिया जाए लेकिन उसके टुकड़े न किए जाएं। सम्राट को समझते देर न लगी। उन्होंने अपने आदेश को तुरंत रोक दिया और कहा कि बच्चा उस औरत को सौंप दिया जाए जो रो रही है। इस प्रकार वास्तविक मां अपना बच्चा पाकर गद्गद हुई। समूचे साम्राज्य में सम्राट विक्रमादित्य के सच्चे न्याय की धूम मच गई। ल्ल
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