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25 जून 1975 को भारत में जो आपातकाल लागू हुआ था वह देश के लोकतंत्र का एक अविस्मरणीय कलंक है। अभिव्यक्ति और व्यक्ति स्वातंत्र्य पर ग्रहण लगाने वाले इस कालखण्ड में समाज और राष्ट्र को समर्पित असंख्य कार्यकर्ता दमन और अत्याचार के संघर्ष की भट्टी से कुन्दन बनकर बाहर निकले और आज समाज व राष्ट्र का नेतृत्व कर रहे हैं। 'आपातकाल में गुजरात' एक ऐसी ही पुस्तक है जो आपातकाल का प्रामाणिक दस्तावेज कही जा सकती है। यह पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक समर्पित, सक्रिय और संघर्षरत प्रचारक द्वारा रचित जीवन्त संस्मरणात्मक दस्तावेज है जो आपातकाल के 20 महीनों में भूमिगत रहकर तानाशाही के विरुद्ध व्यूहरचना बनाने में ही सक्रिय रहे। यह पुस्तक श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लिखी गई संघर्ष गाथा है, जो गुजरात समेत देश के विभिन्न हिस्सों में आपातकाल में सक्रिय संगठनों, संस्थाओं और राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की ऐतिहासिक भूमिका का विवरण प्रस्तुत करती है। स्वयं लेखक ने यह आत्मस्वीकृति की है कि यह प्रथम रचना उन्होंने आपातकाल के एक संघर्षरत सिपाही के रूप में लिखी है- 'यह मेरी प्रथम पुस्तक है। भूमिगत संघर्ष के बारे में अब तक अनुत्तरित रहे कुछ कठिन प्रश्नों की कुंजी स्वरूप यह पुस्तक मैंने किसी लेखक की नहीं वरन् लड़ाई के एक सिपाही की हैसियत से लिखी है।'
'आपातकाल में गुजरात' नामक पुस्तक में कुल 22 अध्यायों के साथ परिशिष्ट में बहुत उपयेागी सामग्री संकलित है। आपातकाल में गुजरात पूरे देश के लिए एक नजीर इसलिए भी बना क्योंकि अखिल भारतीय स्तर पर आपातकाल के प्रतिरोध और प्रतिकार के लिए जो लोक संघर्ष समिति बनी थी, उसने जितने उपक्रम या लक्ष्य रखे, उनका सर्वाधिक क्रियान्वयन इसी प्रदेश ने किया था। इसका प्रमाण आपातकाल के एक और संघर्षरत नायक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा लिखित प्रस्तावना में मिलता है- 'इस संघर्ष में गुजरात का स्थान वैशिष्ट्यपूर्ण है जिसने संघर्षकारियों का साथ दिया।' लेखक ने पुस्तक के पहले अध्याय में ही जनता की इच्छा और अनुमति के नाम पर बढ़ती इन्दिरा की व्यक्तिवादी राजनीति को आपातकाल की भूमिका बताया है। गुजरात में कांग्रेस विधानसभा चुनाव टालने के पक्ष में थी किन्तु मोरारजी देसाई ने दिल्ली में आमरण अनशन किया। गुजरात में ही पहली बार द्विध्रुवीय चुनाव हुए और इन्दिरा कांग्रेस को करारी पराजय मिली, इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्दिरा गांधी के चुनाव परिणाम को रद्द कर दिया, 19 जून को श्री बाबूभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में मोर्चा सरकार सत्तारूढ़ हुई और 26 जून को इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया।
'आपातकाल में गुजरात' पुस्तक में लेखक नरेन्द्र मोदी ने आपातकाल का आंखों देखा हाल चित्रित किया है। पहली रात्रि को प्राप्त दूरभाष संदेशों को लिपिबद्ध करते हुए वे सूचना देते हैं कि जे.पी. गिरफ्तार हो चुके हैं, मोरारजी देसाई पकड़े गए, सरकार द्वारा नानाजी देशमुख की तलाश जारी, संघ कार्यालयों को पुलिस ने घेर लिया, लोगों के फोन पुलिस रिसीव कर रही थी, दिल्ली आरएसएस कार्यालय से प्रमुख कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, नागपुर से सूचना प्राप्त नहीं हो पाई थी, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी बंगलौर में थे इत्यादि… इत्यादि।
इसी क्रम में लेखक ने 30 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक बालासाहब देवरस की गिरफ्तारी, भूमिगत हो चुके श्री नानाजी देशमुख की सक्रियता, गुजरात के विभिन्न जनपदों में आपातकाल के विरुद्ध जनांदोलन, संपर्क कड़ी के रूप में अमदाबाद के चयन तथा संघ सहित 25 संस्थाओं पर प्रतिबंध आदि घटनाओं को क्रमश: विस्तार से वर्णित किया है। 4 जुलाई 1975 को प्रतिबंध लगने के बाद 7 जुलाई 1975 को संघ के विभाग प्रचारकों की पहली बैठक अमदाबाद में हुई। मोरारजी देसाई आपातकाल में स्वयंसेवकों से प्रभावित हुए थे, 'इन प्रचारकों का एक वर्ग संपूर्ण भारत में फैला हुआ है। भूमिगत अवस्था के दौरान प्रचारकों ने जो भूमिका निभाई एवं भूगर्भ प्रवृत्ति को जिस प्रकार उन्होंने आगे बढ़ाया उससे मारेारजी भाई तक बहुत प्रभावित हुए थे। ऐसे समर्पित प्रचारकों की गुजरात में यह प्रथम बैठक थी।' लेखक ने संघ के साथ-साथ गुजरात में आनन्द मार्ग, प्राडटिस्ट ब्लॉक और जमायत-ए- इस्लामी से जुड़े कार्यकर्त्ताओं की धरपकड़, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन, पत्र-पत्रिकाओं के प्रतिबंध के बावजूद गुजराती साप्ताहिक पत्रिका 'साधना' द्वारा आपातकाल पर केन्दिंत विशेषांक जिसमें जे.पी., मोरारजी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और विजयाराजे सिंधिया के चित्र छपे थे, का विशेष उल्लेख किया है। इसके साथ ही 9 से 15 अगस्त तक अमदाबाद में लोकतंत्र पुन:स्थापना सप्ताह के अभियान, भद्र के किले पर जनता ध्वज वंदन के विशाल कार्यक्रम' समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस के गुजरात प्रवास, वेश बदले हुए नानाजी देशमुख को न पहचान पाने, 20 एकदिवसीय शिविरों के आयोजन जनता छापुं (जनता अखबार), गुजरात आचार्य मंडल, गुजरात हाइकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन, शिक्षक प्रतिकार समिति, विद्यागुर्जरी समिति, जनतांत्रिक नागरिक समिति, संविधान रक्षा परिषद आदि जन-जागरण करने वाली संस्थाओं का विस्तृत ब्योरा दिया है। इस अवधि में जनसंघ कार्यकारिणी समिति व विद्यार्थी परिषद की बैठक, कॉमनवेल्थ कॉन्फ्रेंस, गुजरात लोकसंघर्ष समिति के अभियान, श्री दत्तापंत ठेंगड़ी के गुजरात प्रवास के साथ 25 दिसम्बर को अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर सार्वजनिक सभाएं और प्रार्थना सभाएं आयोजित किए जाने का उल्लेख किया है। 29 एवं 30 दिसम्बर1975 को गुजरात देशभर के रणबांकुरों की मेजबानी का प्रमुख केन्द्र बना था। इसी अवधि में नानाजी देशमुख और रवीन्द्र वर्मा के बाद श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी को संघर्ष समिति का मंत्री बनाया गया। इस प्रकार यह अभियान गुजरात से समूचे देश में पहुंचा। इसके बाद मीसा के तहत कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई। परिशिष्ट में लेखक ने संघर्ष घटनाक्रम का 26 जून 1975 से तिथिवार विवरण प्रस्तुत करते हुए 18 जनवरी 1977 को चुनावों की घोषणा और इसी क्रम में 22 मार्च 1977 को आपातकाल की समाप्ति, संघ समेत सभी संस्थाओं से प्रतिबंध हटने और सबसे बाद में जेलों से स्वयंसेवकों के मुक्त हाने का उल्लेख किया है। कुल मिलाकर 'आपातकाल में गुजरात' नामक पुस्तक और इसके लेखक के विषय में 21 जनवरी 1978 को पुस्तक के गुजराती संस्करण पर जनसत्ता में शेखादम आबूवाला द्वारा लिखित शब्द सटीक बैठते हैं- 'आपात स्थिति के दौरान भूमिगत रहकर भूमिगत प्रवृत्तियों में लगातार सक्रिय रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक श्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पुस्तक में आपातकाल की काली छाया तथा आपात स्थिति विरोधी संग्राम की किरणों का एक दस्तावेजी संकलन प्रस्तुत किया है।'
-सूर्य प्रकाश सेमवाल-
पुस्तक का नाम – आपातकाल में गुजरात
लेखक – श्री नरेन्द्र मोदी
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ – 227 मूल्य – रुपए 250/-
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