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* नागपुर में तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का समापन * श्री श्री रविशंकर विशिष्ट अतिथि के तौर पर थे उपस्थिति
– वि.सं. केन्द्र, नागपुर-
गत 12 जून को नागपुर में रेशिमबाग में तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का समापन कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम में संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, नागपुर महानगर संघचालक डॉ. दिलीप गुप्ता उपस्थित थे। इस अवसर पर आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर विशिष्ट अतिथि के नाते उपस्थित थे। इस वर्ग में पूरे भारत से 716 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। सबसे अधिक 144 स्वयंसेवक मालवा, मध्य भारत, महाकौशल और छतीसगढ़ से थे। प्रशिक्षणार्थियों में 460 व्यवसायिक क्षेत्र से जुड़े स्वयंसेवक थे, जिनमें 6 डॉक्टर, 14 इंजीनियर, 14 वकील और एक चार्टड एकाउंटटेेंट थे। जबकि 91 स्वयंसेवक अपने व्यवसाय करने वाले थे। वर्ग में 147 शिक्षक, पांच पत्रकार, 49 कृषि क्षेत्र से जुड़े स्वयंसेवक और 153 छात्र थे। वर्ग के सर्वाधिकारी श्री विश्वनाथ लाल निगम थे। प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि संघ लंबे समय से राष्ट्रवाद का भाव निर्माण करने में रत है और इसने अनेक योग्य नेता दिए हैं। जिन्होंने देश के आसाधारण बदलावों सूत्रपात किया है। यह प्रक्रिया आज भी जारी है जैसा कि हमने हाल ही में देखा भी है। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक जो भी करते हैं उसे पूरी निष्ठा से करते हैं। वह फिर चाहे शारीरिक हो या सूनामी अथवा बाढ़ जैसी आपदाओं के वक्त किए गए राहत कार्य। वे हर कार्य पूरी तरह समर्पित होकर करते हैं। श्री श्री ने आगे कहा कि राष्ट्रसेवा का अर्थ ईश्वर सेवा ही है।
स्वयंसेवक का कर्तव्य है राष्ट्र में जोश, होश और समपर्ण जगाना। सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि शिवाजी ने राष्ट्र के नेतृत्व का फैसला करके आसुरी शक्तियों के विरुद्ध आम नागरिकों को जगाया था। आज हम वैसे ही एक व्यक्ति को गरीब परिवार से उठकर राष्ट्र का नेतृत्व करते हुए देख रहे हैं। आज हमारा नेतृत्व हमारा अपना व्यक्ति कर रहा है ना कि विदेशी शरीर और आत्मा वाला व्यक्ति। सरंसघचालक ने आगे कहा कि समाज का विकास, सुधार अथवा उन्नयन समाज के ही लोगों द्वारा बेहतर तौर पर किया जा सकता है।
कार्यक्रम में स्वयंसेवकों ने शारीरिक, व्यायाम, योग का सुंदर प्रदर्शन किया। घोष की मधुर स्वर लहरियां गूंजी। इस अवसर पर बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक भी उपस्थिति थे। ल्ल
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