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दरवाजे बंद होने से ठीक पहले मेट्रो में दौड़कर चढ़ते सिद्धार्थ किशोर के सकुशल डब्बे में चढ़ने के बाद सहयात्री ने उनसे भागदौड़ करने की वजह जाननी चाही तो वे बोले, 'अरे अब 9.20 तक रेल भवन स्टेशन नहीं पहंुचे तो 9.30 तक शास्त्री भवन में अपने दफ्तर नहीं पहंुच पाएंगे।' किशोर के हावभाव में बेतकल्लुफी देखकर उन्हें बेमांगी सलाह मिली 'तो क्या हुआ, थोड़ा देर-सबेर तो हो ही जाया करती है। अगली ट्रेन में बैठ कर आते।' अब किशोर गंभीर हो गए, बोले, 'वो दिन गए जब दफ्तर किसी भी वक्त पहंुच जाया करते थे, अब तो अफसर तक टाइम पर पहंुच जाते हैं, क्यों कि मंत्री उनसे पहले हाजिर रहते हैं और विभाग के कमरों का मुआयना करने निकल जाते हैं।' इधर कुछ दिनों से नई दिल्ली में केन्द्र सरकार के दफ्तरों में खासी गहमा-गहमी और काम में फुर्ती से जुटे दफ्तरी देखने में आए हैं। बाबुओं के कमरों के बाहर भी टूटी कुर्सी पर बिना इस्त्री की हुई कमीज पहने ऊंघते चपरासियों की जगह चाक-चौबंद सतर्क सेवादार दिखने लगे हैं। पहले कमरों में टीवी (बड़ी स्क्रीन का एलईडी) और एसी चलता छोड़कर अधिकारियोंं के नदारद रहने के दृश्य आम दिख जाया करते थे। उद्योग भवन, कृषि भवन, निर्माण भवन, रेल भवन के गिर्द बने पार्कों में पेड़ों की छैंया तले ताश की बाजियां लगाते और चने-मुरमुरे फांकते हुए सरकारी दफ्तरियों के झुण्ड 'लंच ब्रेक' में ही नहीं, दफ्तर के काम के वक्त भी दिख जाना बोट क्लब की एक पहचान बन गए थे। सुबह 11 से पहले की चार्टर्ड बस में आना और 4.15 के बाद की चार्टर्ड में जाना सरकारी बाबुओं के लिए मानो तौहीन की बात थी।
लेकिन आज हवा में बदलाव की खुनक है। भारत के नागरिकों के लिए जिन अच्छे दिनों को लाने का वादा करके मोदी सरकार बनी है उसने कुर्सी संभालते ही धूल चाटती फाइलों को मंजिल तक पहंुचाने के लिए कमर कसी है और चापलूसी के बल पर कुर्सी बचाए रखने वालों की नाक में नकेल कसी है। दफ्तर माने काम, काम माने वक्त पर सही तरह से काम। किसी को शिकायत का मौका न मिले, ऐसा इंतजाम। भ्रष्टाचार की गुंजाइश न रहे, उसकी पुख्ता तैयारी। 10 साल से नाकारा जैसे बना दिए गए सरकारी महकमों को चुस्त-चौकन्ने और जनहित में जुटने वाले जिम्मेदारी विभाग के रूप में परिवर्तित करने का बीड़ा उठाकर 26 मई को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में शपथ लेने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित तमाम मंत्री और अधिकारी काम में ऐसे जुटे हैं मानो मनमोहन सरकार के10 साल के शासन में धीमी और आड़ी-तिरछी चाल से देश को जो नुकसान झेलना पड़ा, उसकी पूर्ति करने के साथ ही विकास की रफ्तार तेज करके दुनिया के तमाम देशों की बिरादरी में भारत को उसका उचित स्थान दिलाने की एक उमंग जगी हो।
वक्त की पाबंदी और सम्मान
केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली सुबह 9.30 बजे नार्थ ब्लॉक के अपने दफ्तर में पहुंच जाते हैं और देर शाम तक काम में डूबे रहते हैं। केन्द्र सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालयों के अधिकारी भी इस बात को समझने लगे हैं कि मोदी सरकार माने वक्त की पाबंदी के साथ काम। शायद उनमें वो कहावत घर कर गई दिखती है कि-काल करै सो आज कर, आज करै सो अब….। अब बाबू यह टापते नहीं दिखते कि घड़ी में 5 कब बजेंगे। क्योंकि नई सरकार में प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों और बड़े अधिकारियों ने तय किया है कि जब तक काम नहीं निपट जाता तब तक जुटे रहना है। प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार जनता के हित की बात करने वाली सरकार के दो अहम गुण होते हैं-पारदर्शिता और जवाबदेही। ये दो चीजें जनता को सरकार के नजदीक लाती हैं और जनता को निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बनाती हैं। कायदे और नीतियां बंद एसी कमरों में नहीं बल्कि लोगों के बीच बना करती हैं। योजनाओं का लाभ किसी तरह की लालफीताशाही से दूर रहते हुए जनता को सीधे मिलना चाहिए। मोदी इन लाइनों पर चलते हुए एक खुली, पारदर्शर्ी और लोगों को केन्द्र में रखकर चलने वाली सरकार का सपना साकार करने की दिशा में बढ़ते दिखते हैं। पीएमओ में उनके शुरू में किए औचक निरीक्षण के पीछे कार्यालय के लोगों को जानना और उनकी योग्यता के अनुसार उनको जिम्मेदारी देने का ही मकसद रहा होगा।
पीएमओ में नए अधिकारी
पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय की बात आई है तो प्रधानमंत्री की टीम में जुडे़ उन अधिकारियों का जिक्र करना स्वाभाविक ही है जिनको नौकरशाहा का लंबा अनुभव रहा है। प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव बने नृपेन्द्र मिश्र उत्तर प्रदेश कैडर के 1967 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। मिश्रा पीएमओ, विभिन्न मंत्रियों और सरकारी महकमों केे सचिवों के बीच एक अहम सूत्र की तरह काम देख रहे हैं। उनके साथ ही अजित डोवल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाए गए। डोवल केरल कैडर के 1967 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। आईबी प्रमुख रहे डोवल ने भारत की सुरक्षा चिंताओं का गहन अध्ययन किया है और कई अवसरों पर अपनी सूझबूझ का परिचय दिया है। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते जिन दो अधिकारियों के काम को परखा और उनके कौशल को पहचाना उन दोनों, अरविन्द कुमार शर्मा (1988 बैच के आईएएस) और भरत लाल (1988 बैच के आईएएस)ने गुजरात में नरेन्द्र मोदी सरकार में अहम जिम्मेदारियां निभाई थीं। इनके अलावा गुजरात के जनसंपर्क अधिकारी रहे जगदीश ठक्कर अब प्रधानमंत्री कार्यालय में जनसंपर्क अधिकारी के नाते काम देख रहे हैं। गुजरात में ही नरेन्द्र मोदी सरकार में सोशल मीडिया की जिम्मेदारी संभालने वाले हीरेन जोशी भी पीएमओ में काम देख रहे हैं।
मंत्रालयों में बढ़ी रफ्तार
पीएमओ के अलावा प्रधानमंत्री के उस निर्देश, कि कोई मंत्री अपने रिश्तेदार को अपने स्टाफ में न रखे, के तहत सभी मंत्रियों ने काम में माहिर लोगों को जिम्मेदारी सौंपी है और फैसले जल्दी से जल्दी लेकर काम आगे बढ़ाने के लिए फॉलोअप मीटिंग करने के निर्देश दिए हैं। दफ्तरों को साफ रखकर काम की गति बढ़ाने से अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। फाइलों के अब टेबलों पर जमे रहने या अल्मारियों में धूल फांकते रहने के दिन गए। कैबिनेट सचिव अजय सेठ ने 5 जून को साफ निर्देश दिया है कि अब से सरकारी फाइलों के लटके रहने या कई कई अधिकरियों की टेबलों के चक्कर कटवाने की आदत नहीं चलेगी। सेठ का आदेश है कि कोई फाइल चार टेबलों से ज्यादा से नहीं गुजरनी चाहिए। सरकार की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए कैबिनेट सचिव ने कुछ सूत्र सुझाए हैं। जैसे,
मोटे नहीं, छोटे फार्म
फार्म एक पेज से ज्यादा मोटे न हों, जहां तक हो आईसीटी सुविधा की मदद ली जाए। विभाग छोटे से छोटे और सिर्फ जरूरी जानकारी देने वाले फार्म ही प्रयोग करें।
फैसलों में देरी न करें
विभागों से कहा गया है कि फाइलों को एक से दूसरे अधिकारियों के पास ही न भेजा जाता रहे, उन्हें चार स्तर से ज्यादा से न गुजरने दें। कोई विवाद हो तो पीएमओ या कैबिनेट सचिवालय के पास भेज दें।
कार्य संस्कृति सुधारें
मंत्रालयों को ऐसे 10 नियम चुनकर बताने को कहा गया है जिनकी आज सार्थकता नहीं रही। काम करने का तरीका सुधरेगा तो काम की रफ्तार बढ़ेगी ही।
जल्दी निपटारा हो
फैसले लेने में देरी होने से काम अटकता है इसलिए फाइलें इस मंत्रालय से उस मंत्रालय के चक्कर ही न काटें और पीएमओ और कैबिनेट सचिवालय दर्शक जैसे ही न बैठे रहें।
सहयोग
विभागों के बीच आपसी विमर्श होता रहे जिससे निर्णय साझेदारी के साथ लिए जाएं।
फैसलों में देरी और देश से सीधे जुड़े मुद्दों के लंबे खिंचते जाने के पीछे एक बड़ी वजह पहले की सरकार की हर चीज के लिए एक मंत्री समूह बना देना थी, जिसकी महीनों में जाकर बैठकें होती थीं। प्रधानमंत्री मोदी ने कुर्सी संभालते ही पिछली सरकार के बनाए 21 मंत्री समूहों और 9 सशक्त (एम्पावर्ड) मंत्री समूहों को खत्म करते हुए मंत्रियों को अपने फैसले खुद लेने का स्पष्ट निर्देश दिया है, वे दूसरे मंत्रियों से सलाह कर सकते हैं। इतना ही नहीं मोदी ने 4 कैबिनेट कमेटियों को भी खत्म करके काम में तेजी लाने के संकेत दिए हैं।
पीएमओ में मामले लटकाए रखने के ढर्रे को तुरत प्रभाव से बाहर कर दिए जाने के चलते तमाम सरकारी मंत्रालयों में फुर्ती आना स्वाभाविक ही है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय में एडीजी के. एस. धतवालिया ने पाञ्चजन्य से बात करते हुए वह उक्ति दोहराई-यथा राजा तथा प्रजा। उन्होंने कहा कि सरकार का प्रमुख जैसा होगा उसके मातहत सरकार के विभाग और मंत्रालय के अधिकारी वैसा ही तो काम करेंगे। उनके अनुसार, अगर विभागों में कामकाज में फुर्ती आ रही है तो इसका सीधा संबंध पीएमओ में आई चुस्ती से है। धतवालिया कहते हैं कि जब मंत्रालयों के कर्मचारियों को यह पता हो कि ऊपर के अधिकारी मुस्तैदी से काम में जुटे हैं तो वे खुद भी काम में कोताही नहीं आने देंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने जिम्मेदारी संभालते ही काले धन की वापसी पर एसआईटी गठित की है, जिससे भ्रष्टाचारियों की कंपकपी छूटने लगी है,जमाखोरों के हाथ पांव फूलने लगे हैं। काम में मुस्तैदी है ही।
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विदेश विभाग के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन पाञ्चजन्य की इस बात से सहमत थे कि पीएमओ से लेकर तमाम मंत्रालयों के कामकाज में नई तेजी और जिम्मेदारी का अहसास दिखता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ही जब छुट्टी नहीं करते तो दूसरे अधिकारी छुट्टी कैसे ले सकते हैं। प्रधानमंत्री के शपथ लेने के बाद से ही विभाग में लगातार काम जारी है। सैयद अकबरुद्दीन की मानें तो रविवार भी अब दफ्तर के काम में ही गुजरता है। पिछले दिनों चौबीसों घंटे विदेश विभाग सक्रिय रहा क्योंकि 26 मई से ही विदेशों के राष्ट्राध्यक्षों और मंत्रियों के आने का सिलसिला जारी है, महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ताओं के दौर जारी हैं। ऐसे में विभाग के अधिकारी छुट्टी की सोच भी नहीं सकते थे।
सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर नवगठित सरकार ने सकारात्मक संकेत दिया था। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में चली बहस के बाद 11 जून 2014 को धन्यवाद प्रस्ताव के अपने भाषण में मोदी ने देश के नागरिकों की भलाई में जुटने वाले सरकार के एजेंडे का खाका खींचा। समाज के आखिरी व्यक्ति को ऊपर उठाने में हर तरह की मदद का वायदा किया। उनके इस वायदे के पूरा होने में उनकी सरकार के अब तक के कामों और इरादों पर विहंगम दृष्टि डालें तो मंजिल दूर नहीं दिखती। बेहतर कल के लिए नई दिल्ली से बही बदलाव की बयार के संकेत को समझना चाहिए।* -आलोक गोस्वामी-
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