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मुग़ल सम्राटों तथा ब्रिटिश शासकों की सदैव नीति रही है कि जो भी प्रांत या प्रदेश राजधानी दिल्ली से दूर है, उतनी ही उसकी घोर उपेक्षा, उसके साधनों तथा सम्पदाओं का शोषण तथा स्वार्थवश उनका दुरुपयोग होता है। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू से लेकर कांग्रेस के अंतिम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इसी नीति का अक्षश: पालन करते रहे हैं। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र इसका जीता जागता उदाहरण है। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई मान रहे हैं कि असम ज्वालामुखी पर बैठा है। वह त्यागपत्र देने दिल्ली आकर गिड़गिड़ा रहे हैं, पर उजड़ा-बिखरा कांग्रेस नेतृत्व अपना बेरुखा आदेश देकर उन्हें वापस लौटने को कहता है। रोम जल गया पर नीरो अभी भी बांसुरी बजा रहा है। अब भी गैरकानूनी रूप से आये बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठियों से उन्हें आशा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठ की परम हितैषी बन रही हैं। अब भी कहती रहीं कि 'हिम्मत है तो एक भी बंगलादेशी को छूकर दिखाएं, मैं दिल्ली तक हड़कंप मचा दूंगी।' कैसा दुर्भाग्य है असम झुलस रहा है। अभी 15 मई, 2014 को मेघालय के उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में 24 मार्च, 1971 तक की तिथि में बसे मुसलमानों को स्वीकृति दी है। यह चिंता का विषय है कि विश्व के पूर्व गोलार्द्ध तथा समस्त विकसित देशों में से आज भारत एकमात्र देश है, जहां घुसपैठियों की संख्या सर्वाधिक है। संयुक्त राष्ट्र के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनोमिक एंड सोशल अफेयर्स (यूएन डीईएसए) के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि 2013 में 3.2 मिलियन बंगलादेशी भारत में घुसपैठ कर यहां बस चुके हैं। इससे हिंसा, उपद्रव, घरों की बर्बादी, असन्तुलन तथा देश की असुरक्षा बढ़ी है।
असम : एक मुस्लिम राज्य की योजना
असम में मुस्लिम घुसपैठ की समस्या लगभग 108 वर्ष पुरानी है। पहले यह पूर्वी बंगाल, तत्पश्चात पूर्वी पाकिस्तान तथा 1971 के पश्चात बंगलादेश से भारी मात्रा में मुस्लिम घुसपैठ के रूप में रही है। 1905 में भारत के साम्राज्यवादी तक क्रूर अंग्रेज वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन, उसका अलग से मुस्लिम बाहुल्य प्रांत बनाना, उसकी योजना का अंग था। इस विचार को प्रोत्साहन तब हुआ जब ढाका के नवाब सलीम उल्ला खां के निमंत्रण पर कुछ प्रभावी मुसलमान मुस्लिम लीग की स्थापना के विचार के लिए एकत्रित हुए (बीपी शुक्ला, व्हाट ऐल्स, इंडियाज नार्थ-ईस्ट, पृ. 14) 1908 में ढाका के नये नवाब हबीउल्लाह ने कहा था, 'असम के पास बहुत जमीन है, इसे मुस्लिम बहुल प्रदेश बनाना चाहिए।' 1911 में असम की कुल जनसंख्या 3.5 लाख थी, जो कि 1931 में असामान्य रूप से बढ़कर 9.5 लाख हो गई थी। यह 1961-71 के काल में 44 फीसदी तक बढ़ी थी।
1931 में ही असम के सुपरिटेन्डेंट सीएस मुल्लन ने असम में मुस्लिम घुसपैठ को देखते हुए कहा था, 'यदि घुसपैठ की यही रफ्तार रही तो शीघ्र ही शिवसागर जिले को छोड़कर शेष असम हिन्दू बाहुल्य राज्य नहीं रहेगा (देखें, डा. एस. शर्मा, प्रागज्योतिपुर थ्रू द एजेज, गुवाहाटी, 1996) 1939 के मुस्लिम लीग के धुबरी अधिवेशन में एक प्रस्ताव द्वारा मुस्लिम घुसपैठियों को स्थानीय व्यक्तियों से असम की भूमि तथा सम्पत्ति को जबरदस्ती छीनने के लिए प्रोत्साहित किया गया। अंतरिम शासनकाल में तत्कालीन असम के मुख्यमंत्री गोपीनाथ बादोलोई के त्यागपत्र देने पर मुस्लिम लीग के मोहम्मद सादुल्लाह को यहां का मुख्यमंत्री बनाया गया। उसके काल में 10 लाख मुस्लिम असम में घुस गये। इस काल में मोहम्मद अली जिन्ना ने पूरे बंगाल तथा असम को भावी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की मांग की। जिन्ना ने अपने निजी सचिव मोइनउल हक चौधरी से कहा था-'10 वर्ष प्रतीक्षा करो, मैं तुम्हे असम चांदी की तश्तरी में भेंट करूगा।'डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अथक प्रयत्नों से पश्चिम बंगाल तथा गोपीनाथ बादोलोई के प्रयत्न से असम (केवल सिल्हट जिला छोड़कर) पाकिस्तान का हिस्सा न बन गया।
स्वतंत्रता के बाद घुसपैठ
स्वतंत्रता के पश्चात हजारों की संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से मुस्लिम घुसपैठिये भारत मंे घुस गये। भारत सरकार ने संसद में 13 फरवरी, 1950 को इमीग्रेशन (एक्सपल्सन) एक्ट पास किया तथा असम सरकार से गैरकानूनी रूप से पूर्वी पाकिस्तान के घुसपैठियों को भगाने को कहा (देखें, डा. एन. एन. आचार्य, ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ असम, गुवाहाटी, पृ. 245) पर कोई सफलता न मिली। 6 अप्रैल, 1950 को पं. नेहरू तथा लियाकत अली खां के बीच एक समझौता भी हुआ, पर कोई परिणाम नहीं हुआ। 1951 में नागरिकों का नेशनल रजिस्टर भी बनाया गया। पूर्व के इमीग्रेशन एक्ट को खत्म कर दिया गया। अक्तूबर, 1952 में पासपोर्ट एक्ट तथा 1955 में सिटीजनशिप एक्ट भी बना। 1961 की जनगणना के अनुसार 1951-1961 के दौरान 7,50,000 पूर्वी-पाकिस्तानी मुस्लिम घुसपैठिये असम में घुस आये। कांग्रेस ने अपने घटते जनाधार को देखते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का सहारा लिया। 1961-1971 के दौरान बिना रोक-टोक के तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से मुसलमान झुण्ड के झुण्ड के रूप में न केवल असम में घुस आये, बल्कि गैर कानूनी ढंग से भारत के नागरिक भी बन गए। 1965 में भारत के प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में भारतीय संसद में एक वक्तव्य भी दिया, परन्तु तत्कालीन असम के मुख्यमंत्री बी.पी. चालीहा ने घुसपैठियों की संख्या कुल 3.5 लाख बताई (देखें ओरिएन्टल टाइम्स, असम प्राब्लम्स ऑफ फारेन इनफिलट्रेशन,7 जुलाई से 21 जुलाई 1999) जांच के लिए 10 ट्रिब्यूनल भी नियुक्त किये गये। 1967-1968 तथा 1971 में 1.29 लाख घुसपैठियों को असम से निकाला गया। इस पर कांग्रेस के मुस्लिम समुदाय के 33 विधायकों ने मोइनउल हक चौधरी- देवकान्त बरुआ तथा शरत चन्द्र सिन्हा के नेतृत्व में मुख्यमंत्री के विरुद्ध प्रदर्शन किये तथा धमकी दी कि यदि मुस्लिम घुसपैठियों की वापसी को न रोका गया तो कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक बिल्कुल समाप्त हो जायेगा (देखें ओरिएण्टल टाइम्स, पूर्व उद्धरित) अनेक स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने मुस्लिम घुसपैठियों को नौगांव, कामरूप दरंग, गोलपारा तथा उत्तरी कछार के पर्वतीय प्रदेश में बसने में सहायता की। 1971 में भारत की सेना की सहायता से बंगलादेश पश्चिमी पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त हुआ। शेख मुजीबुर रहमान ने खुलकर कहा कि असम बंगलादेश के विस्तार का स्वाभाविक स्थान है। 25 मार्च, 1971 से लेकर 12 दिसम्बर, 1971 तक जनसैलाब की भांति 12 लाख से अधिक मुस्लिम घुसपैठियों ने अपने मित्रों एवं परिवारों के साथ असम में शरण ली। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व शेख मुजीबुर रहमान के बीच बातचीत भी हुई जिसके प्रभावानुसार 25 मार्च, 1971 से पहले मुस्लिम घुसपैठिये, जो गैरकानूनी रूप से असम में घुस आये थे उन्हें असम से न निकाला जायेगा ऐसा समझौता स्वयं में राष्ट्रहित विरोधी था।
इसके विपरीत भारत के संविधान के अनुच्छेद 5 तथा 6 के अन्तर्गत कहा गया कि मुस्लिमों के घुसने से रोकने का कोई औचित्य नहीं है। विशाल घुसपैठ के साथ आर्थिक संकट, हिंसात्मक दंगे तथा हत्याएं भी तेजी से बढ़ीं। तत्कालीन रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने बंगलादेश के निर्माण पर कहा था, पाकिस्तान का एक और टुकड़ा हो गया है, लेकिन शीघ्र ही भारत के लिए सिरदर्द बनकर समस्या खड़ी करेगा। असम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद तथा अन्य छात्र संगठनों ने बंगलादेश से आये मुस्लिम घुसपैठियों के विरुद्ध विशाल प्रदर्शन किये। (देखें, असम इन क्राइसेस: ए हिस्टोरिक मांस अपसर्ज ऑफ असमीज फार सरवाइवल एण्ड नेशनल स्ट्रग्ल फॉर सिक्योरिटी एंड टिग्रिटी) 1983 से निरंतर भयंकर दंगों का हत्याओं का दौरा प्रारंभ हुआ। अकेले नेल्ली (मौरी जिला) में एक दिन में सैकड़ों पुरुष, महिलाएं तथा बच्चे मारे गये। (देखें द जैनरसेस ऑफ असम ऐथनिक वायलैंस, द टाइम्स ऑफ इंडिया, 12 अगस्त 2010) 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने छात्रों से बातचीत कर एक समझौता किया जिसमें नेशनल रजिस्टर की अवहेलना कर मार्च, 1971 तक आये बंगलादेशी घुसपैठियों को छोड़कर, आगे आने पर रोक लगाई गई। साथ ही कहा गया कि 1966-1971 के बीच घुसपैठियों को 10 वर्षों तक वोट का अधिकार न होगा। उल्लेखनीय है कि 1971-1991 के बीच असम में मुस्लिम जनसंख्या 77 प्रतिशत बढ़ी। यह सर्वाधिक अतिक्रमण था। अक्तूबर, 1993 से बोडो-मुस्लिम घुसपैठ, टकराव तथा दंगे बढ़ते गये। कोकराझार, बोनगाई गांव में 4000 परिवारों को बुरी तरह प्रभावित किया। सैकड़ों लोग मारे गए। लाखों लोग बेघर हो गए। बारपेटा, कार्बी-कूकी संघर्ष में भयंकर संघर्ष हुए। एक आंकड़े के अनुसार 2005 में 103 व्यक्ति मारे गये तथा 30 हजार लोग बेघर हुए। बोडो-मुसलमानों के संघर्ष में 2008 में 65 लोग मरे तथा 2 लाख लोग बेघर हुए। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने स्वयं कहा, राज्य ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है और केन्द्र सरकार की उदासीनता तथा ढुलमुल की नीति चलती रही। जुलाई, 2012 में इन हिंसात्मक दंगों का ज्वालामुखी पुन: फूट पड़ा। ये दंगे 19 जुलाई को कोकराझार से प्रारंभ हुए। शीघ्र ही चिराग तथा धुबरी जिलों में फैल गए। विदेशी समाचार पत्रों तथा मीडिया से ज्ञात होता है कि यह किसी भयंकर युद्ध से कम न था। (देखें लेख, के. एस. किरण, बंगलादेशी इनफल्ट्रेशन एण्ड 2012 असम राइटस, सम्वाद पत्रिका) एक आंकड़े के अनुसार 8 अगस्त, 2012 तक 77 व्यक्ति मारे गए, 4 लाख लोग बेघर हुए, 400 गांव इनसे प्रभावित हुए तथा इसके लिए 270 सहायता शिविर लगाये गये।
एक अनुमान के अनुसार इस समय लगभग चार करोड़ घुसपैठिए भारत में हैं जिसमें से अनेकों ने भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली है। इस समय में भी कई मुस्लिम संगठन सक्रिय हैं जिनका उद्देश्य मुस्लिम घुसपैठियों को शरण देकर उन्हें भारत की नागरिकता दिलाना है। असम में 126 विधानसभा क्षेत्रों में 56ं मुस्लिम बाहुल्य हो चुके हैं। ऐसे में जरूरत है घुसपैठ रोकने के लिए ठोस नीति बनाने की। |
बंगलादेशी घुसपैठ के नकारात्मक तथा शर्मनाक प्रभाव न केवल असम पर पड़े, बल्कि पूर्वोत्तर के छात्रों को मुसलमानों द्वारा असुरक्षा, आक्रमण, भय, हिंसा की अफवाहों तथा एम.एस द्वारा भयभीत किया गया। परिणामस्वरूप मुम्बई, पूना, कोलकाता, बेंगलुरू, हैदराबाद आदि में हजारों छात्रों तथा विभिन्न कार्यरत व्यक्तियों ने अपने भविष्य को दांव पर लगाकर भगदड़ मची। 11 अगस्त, 2012 को मुम्बई में 50,000 मुसलमान हिंसात्मक प्रदर्शन करते रहे और गुप्तचर विभाग को उसकी भनक तक नहीं लगी। मई, 2014 के प्रारंभ से पुन: हिंसात्मक दंगों का दौर प्रारंभ हुआ जिसमें 34 व्यक्ति मारे गये 14 घायल हुए तथा अनेक बेघर। एक अनुमान के अनुसार इस समय लगभग चार करोड़ घुसपैठिये भारत में हैं जिसमें से अनेकों ने भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली है। इस समय में भी कई मुस्लिम संगठन सक्रिय हैं जिनका उद्देश्य मुस्लिम घुसपैठियों को शरण देकर उन्हें भारत की नागरिकता दिलाना है। असम में 126 विधानसभा क्षेत्रों में 56 मुस्लिम बाहुल्य हो चुके हैं। अभी देश में सत्ता परिवर्तन हुआ है। आशा है कि अब बंगलादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ पर रोक लगेगी। घुसपैठियों द्वारा 20 प्रतिशत असम की भूमि पर जो जबरदस्ती कब्जा किया हुआ है। भारत की राष्ट्रीयता, एकता, स्वतंत्रता, अखण्डता तथा सुरक्षा के लिए ़ठोस नीति अपनायी जाए।
— डा. सतीश चन्द्र मित्तल
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