दुर्ग्याणा मंदिर की अनूठी छटा
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दुर्ग्याणा मंदिर हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है और अमृतसर के केन्द्र में सुशोभित है। एक दीर्घ पवित्र सरोवर के बीच इस स्थान का आध्यात्मिक दिव्य स्थान है। यह दिव्य सौंदर्य का अनुपम स्वरूप है। एक लौकिक बैकुण्ठ, देवलोक, शांति, शक्ति, भक्ति, धैर्य, संपूर्ण आशीर्वाद, शुभकामना का बहूमुल्य स्थान है। इस स्थान पर आत्मा को शांति मिलती है और सभी इच्छाएं भी पूरी होती हैं। देश ही नहीं, बल्कि विश्व के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुचते हैं। इस स्थान पर जब कभी भी कोई प्रसिद्ध पर्व या त्योहार मनाया जाता है तो रात को दीप माला की जाती है तो आकाशगंगा के निम्न आकीर्ण सरोवर तथा बीच मंदिर का अस्तित्व आध्यात्मिक होकर आदि शक्ति देवलोक पर्याय हो जाता है। इस मंदिर की परिकल्पना एवं निर्माण उस समय के प्रसिद्ध विचारक गुरु सहायमल कपूर द्वारा किया गया।
गंगा दशमी के दिन 1925 में इस मंदिर की नींव पं. मदनमोहन मालवीय द्वारा रखी गई थी। मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने मां वैष्णो शक्ति स्वरूप जगत जननी ज्वाला मां की प्रतीक अखण्ड ज्योति प्रज्ज्वलित है जिसके दर्शन कर भक्तों को भगवती की शक्ति का आभास होता है। अखण्ड ज्योति मां की शक्ति है और ऊर्जा की जननी है।
मंदिर के कपाट प्रात:काल भक्तों के दर्शनों हेतु खोल दिए जाते हैं और आरती की जाती है। यहां पर लक्ष्मी नारायण मंदिर दुर्ग्याणा तीर्थ के केन्द्र में सरोवर के मध्य स्थित है। लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमा अपनी पूर्ण छटा बिखेरती है। लक्ष्मी-नारायण के एक तरफ राम दरबार और दूसरी तरफ राधा-कृष्ण की प्रतिमा गिरिराज महाराज के साथ स्थित हैं। लक्ष्मी-नारायण मंदिर के भीतर वाले हिस्से को गर्भ गृह भी कहा जाता है। मंदिर में कांगड़ा शैली की चित्रकला और शीशे का अद्भुत कार्य किया गया है। सुनहरी गुंबदों और चांदी के कपाटों से सुसज्जित दुर्ग्याणा मंदिर सरोवर के बीचों-बीच अपनी अनूठी छटा बिखेरता है।
प्रात: पांच बजे से लेकर रात्रि में 10 बजे तक प्रसिद्ध गायकों द्वारा यहां पर भगवान के अनेक रूपों और लीलाओं का गुणगान किया जाता है। जिस तरह संसार को भवसागर का नाम दिया गया है, उसी प्रकार यहां भावनाओं के सागर रूपी सरोवर के बीचों-बीच स्वयं लक्ष्मी-नारायण और उनके चारों तरफ लगी सुंदर मूर्तियां मानो मनुष्य को भवसागर से पार करवाने हेतु प्रतीत होती हैं। लक्ष्मी-नारायण मंदिर के समीप ही श्रीकृष्ण के पदचिन्ह अंकित हैं। कहा जाता है कि इस तीर्थस्थल पर स्वयं ठाकुरजी का वास रहता है। ऐसा माना जाता है कि बाल रूप में श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, वरना किसी के पदचिन्ह यूं ही नहीं बनते। मंदिर के ठीक पीछे की पौड़ी पर जब श्रद्धालु पहंचते हैं तो वहां विराजमान भगवान शिव की मूर्ति सरोवर के पानी को गंगा सा पवित्र कर देती है। इससे सरोवर हरिद्वार स्थित हर की पैड़ी जैसा प्रतीत होता है। परिक्रमा के आरंभ में ही शिव मंदिर और बाहर मां दुर्गा का मंदिर है, जो कि शिव और शक्ति की अवधारणा को दर्शाता है। परिक्रमा में सबसे पहले सत्य-नारायण मंदिर है और उसके बाद छोटे-छोटे मंदिरों की श्रृंखला शुरू हो जाती है।
मंदिरों में मूर्तियों के माध्यम से हमारी कथाआंे और प्रसंगों को दर्शाया गया है। ये प्रसंग वेद, रामायण और भागवत से लिए गए हैं। यहां पर गोस्वामी तुलसीदास का मंदिर भी है, जहां श्रद्धालुओं को मंदिर में लयबद्ध तरीके से रामचरितमानस का पाठ कराया जाता है। इस मंदिर में एक करोड़ बार श्रीराम का नाम अंकित है। परिक्रमा में स्थित वेद कथा भवन में समय-समय पर प्रसिद्ध संत एवं विचारक प्रवचन द्वारा भक्तों को ईश्वर के निकट लाने का प्रयास करते हैं। दुर्ग्याणा मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है और देवी कल्याणकारी रूप में यहां पर भक्तों को शीतलता प्रदान करती है। चेचक के रोग से ग्रसित बच्चों को उनके परिवारजन यहां पर माथा टिकाने लाते हैं। इससे यहां आया बच्चा सामान्य हो जाता है। इसके लिए चेचक से ग्रस्त बच्चे पर शीतला माता पर अर्पित कच्ची लस्सी के अमृत से वर्षा की जाती है।
वेद कथा भवन से सटा यहां बड़ा हनुमान मंदिर है। यह मंदिर दुर्ग्याणा मंदिर परिसर में अपनी अलग पहचान रखता है, जो कि रामायण कालीन बताया जाता है। परिक्रमा पथ से एक द्वार के अतिरिक्त दुर्ग्याणा परिसर के बाहर से इसका मुख्य द्वार है। इस मंदिर में भगवान हनुमान की बैठी अवस्था में मूर्ति है। ऐसी मान्यता है कि जब लव-कुश ने भगवान राम के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को रोक लिया था, उस समय बच्चों के साहस को देखकर हनुमान समझ गए थे कि दोनों बच्चे प्रभु की संतान हैं। इसके बाद जब लव-कुश ने उन्हें बांधना चाहता तो हनुमान सहर्ष ही उनसे बंधने को तैयार हो गए थे। भगवान राम ने जब हनुमान को पहंुचकर मुक्त किया तो अपने पुत्रों के मिलन से प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया कि जिस तरह उनसे पुत्रों का मिलन हुआ है, उसी प्रकार पुत्र की कामना करने के लिए यहां जो भी श्रद्धालु पहंुचेगा उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी। जिस वृक्ष से भगवान हनुमान को बांधा गया, वह वृक्ष आज भी दुर्ग्याणा तीर्थ स्थल पर स्थित है। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु नवरात्र के दिनों में अपने बच्चों को लाल चोला पहनाकर लंगूर के वेश में ढोल-नगाड़ों के साथ पहंुचते हैं।
बलविंदर
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