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बैंकों में जाकर नकद राशि जमा कराने व निकालने के लिए कतारों में लगना या बिजली, पानी, टेलीफोन के बिल संबंधित कार्यालयांे में जमा करने के दिन अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। आज लोग घर बैठकर ही सभी बिलों का भुगतान कर देते हैं और निकटतम एटीएम पर जाकर नकद राशि निकाल व जमा भी करा लेते हैं। यह सब ई-बैंकिंग के जरिए आसान हो सका है जिसने बैंकिंग के मायने ही बदल दिए।
पिछले कुछ वषार्ें में भारत में बैंकिंग के क्षेत्र में बहुत कुछ बदल गया। पहले ग्राहक बैंक में जाते थे, अब उल्टा हो गया है। बैंकों को ग्राहक ढूंढने पड़ रहे हैं और ग्राहकों के दरवाजे तक जाना पड़ता है। यह सब करने के लिए बैंकों में 'डिलीवरी चैनल' आवश्यक हो गए हैं। 'डिलीवरी चैनल' का अर्थ है, ऐसे माध्यम जिनके द्वारा बैंक अपनी सेवाएं ग्राहकों तक पहुंचा सकते हैं। कुछ वषार्ें पहले तक बैंकों में एक ही डिलीवरी चैनल होता था 'काउंटर'। यदि ग्राहक काउंटर तक पहंुच गया तो उन्हें बैंक से जुड़ी सेवाएं मिल जाती थीं वरना नहीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
ग्राहकों तक पहुंचना है तो एटीएम से लेकर इंटरनेट बैंकिंग तक सारे डिलीवरी चैनल्स आवश्यक हो गए हैं। इन 'डिलीवरी चैनल्स' के लिए आवश्यक है, बैंक में कोर बैंकिंग सिस्टम (सीबीएस) होना। कोर बैंकिंग का अर्थ है, सारे बैंक का डाटाबेस, ग्राहकों की जानकारी एक स्थान पर (अर्थात डाटा सेंटर में)रहती हैं और बैंक की सभी शाखाएं (ब्रान्चेज) उससे जुड़ी रहती हैं। किसी भी शाखा में किया गया व्यवहार(ट्रांजेक्शन) सीधा उस डाटा सेंटर में होता है। ग्राहक किसी भी शाखा में जाकर अपना बैंकिंग व्यवहार कर सकता है।
कुछ वर्ष पहले तक ऐसा नहीं था। बैंकों की शाखाएं एक-दूसरे से जुड़ी नहीं थी। कोई 'डिलीवरी चैनल' नहीं थे और न ही ग्राहक किसी दूसरी शाखा से अपना व्यवहार कर सकते थे। पांच-छ: वर्ष पहले राष्ट्रीयकृत बैंकों ने कोर बैंकिंग को अपनाया और बैंकिंग का चेहरा बदलने लगा। एचडीएफसी, आईसीआईसीआई जैसे निजी और विदेशी बैंकों ने शुरुआत से ही कोर बैंकिंग को अपनाया था। लेकिन राष्ट्रीयकृत और सहकारी बैंकों ने इसे अपनाने में काफी समय लगा दिया। कोर बैंकिंग अपनाने का अर्थ है, बैंकों का तकनीक पर पूर्णत: निर्भर हो जाना। अब किसी भी बैंक की सफलता का पैमाना यह है कि वह बैंक कितनी और कैसी तकनीक अपना रहा है। पूरे विश्व में आईटी और संचार के क्षेत्र में विकसित होने वाली नई तकनीक सबसे पहले बैंकिंग या आर्थिक क्षेत्र की संस्थाओं में प्रयोग की जाती है।
कोर बैंकिंग के होने से नेटवर्क में जुड़े एटीएम, एसएमएस बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिंग आदि सुविधाएं ग्राहकों को उपलब्ध होती हैं। ग्राहक घर बैठे अपने सारे बैंकिंग व्यवहार कर सकता है। बैंकिंग के क्षेत्र में आईटी के किए हुए ये बदलाव अचानक नहीं हुए हैं। दुनिया मंे 90 के दशक के पूर्वार्ध में जब सूचना क्रांति हो रही थी, तब हमारे देश में बैंकिंग में ऑटमेशन(स्वचालन) की सुगबुगाहट हो रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने रंगराजन समिति की स्थापना की थी, जिसने बैंकों में कम्प्यूटर का उपयोग करने का सुझाव दिया था। यह थी भारतीय बैंकिंग के क्षेत्र में आईटी की शुरुआत या यूं कहें कि भारतीय बैंकिंग में कम्प्यूटराइजेशन की पहली पीढ़ी थी। बैंकों ने अपनी शाखाओं में एक-दो कम्प्यूटर लगाकर 'बैंक ऑफिस कार्यप्रणाली' की शुरुआत की थी।
इसके आगे का कदम था, प्रत्येक शाखा को पूर्णत: कंप्यूटरीकृत करना अर्थात शाखाओं में ऑनलाइन कार्य शुरू करना। बैंकिंग की भाषा में इसे टीबीए यानी टोटल ब्रांच ऑटमेशन कहा गया। यह थी बैंकिंग कम्प्यूटराइजेशन की दूसरी पीढ़ी। अनेक बैंकों में यह अवधि काफी लंबी रही। कुछ गिने-चुने छोटे सहकारी बैंक तो अभी भी इस अवस्था में हैं। इस प्रणाली को चलाने के लिए 'डाटा सेंटर' की आवश्यकता होती है, जो कि इसका तीसरा पड़ाव था। कुछ बैंकों ने अपने डाटा सेंटर बनाए, तो कुछ ने अन्य बैंकों के साथ उन्हें साझा किया।
सभी आधुनिक 'डिलीवरी चैनल्स' द्वारा सुलभता से ग्राहकों तक पहुंचना यह तो कोर बैंकिंग की विशेषता है ही, साथ ही बैंक के प्रबंधन को एमआईएस यानी मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम द्वारा बैंक की सही और ठीक-ठीक जानकारी मिल जाती है। इसके कारण समय रहते उचित निर्णय लिए जा सकते हैं। रिजर्व बैंक भी आधुनिक तकनीक का उपयोग करने पर जोर दे रहा है। देश में रुपयों का लेन-देन जल्द और आसान हो, इसलिए भारत सरकार ने एनपीसीआई यानी नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का गठन
किया। यह अत्यन्त कारगर साबित हुआ। एनपीसीआई ने पिछले दो वषार्ें में भारतीय 'पेमेंटगेट-वे' को एक पूर्णतया नया और आधुनिक रूप दिया है।
एनपीसीआई ने सबसे पहले सभी बैंकों के एटीएम को जोड़ने के लिए 'नेशनल फाइनेंशियल स्विच' बनाया। आज इस स्विच से देश के एक लाख साठ हजार से भी ज्यादा एटीएम जुड़े हैं। किसी भी बैंक का ग्राहक, उसके एटीएम कार्ड से, किसी भी एटीएम से रुपये निकाल सकता है। मोबाइल से, पूरी सुरक्षा के साथ, बैंकिंग व्यवहार करने के लिए 'आईएमपीएस' (इंडियन मोबाइल पेमेंट सिस्टम) को प्रारंभ किया। अब हमारे मोबाइल पर मात्र कुछ कुंजियां दबाने से हम दुकानदार, व्यवसायी, टेलीफोन या बिजली कंपनी, रेलवे या एयरलाइंस को बिल का भुगतान कर सकते हैं।
अभी लोकसभा चुनाव की धूमधाम के बीच, बीते 8 मई को एनपीसीआई ने महामहिम राष्ट्रपति द्वारा 'रुपे कार्ड' लोकार्पित किया। यह भारतीय बैंकिंग में स्वदेशी का एक बहुत बड़ा कदम है। अभी हमारे देश में भुगतान के लिए मास्टर, वीजा या अमरीकन एक्सप्रेस जैसे कार्ड चलते हैं अर्थात हमारे देश के अंदर ही, रुपयों में व्यवहार करने पर भी हमें इन विदेशी कार्ड कंपनियों को विदेशी मुद्रा में भुगतान करना पड़ता है, किन्तु 'रुपे कार्ड' ने इस आवश्यकता को ही समाप्त कर दिया है। अभी 'रुपे कार्ड' देश के आठ लाख अस्सी हजार से भी ज्यादा आउटलेट्स पर चलता है। इसका उपयोग देश के अंदर सभी प्रकार के भुगतान करने में होता है।
एनपीसीआई और रिजर्व बैंक मिलकर आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए अनेक नई सुविधाएं ला रहे हैं। देश के बहुत बड़े हिस्से में अब चेक क्लीयरिंग के लिए नहीं भेजे जाते। 'चेक ट्रांजेक्शन सिस्टम'(सीटीएस) द्वारा उनकी इमेज एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती है। अर्थात एक दिन के अंदर शहर के बाहर के चेक का भी क्लियरेंस हो जाता है।
भारतीय बैंकिंग में बहुत कुछ बदल गया है और अभी भी बदल रहा है, लेकिन बहुत कुछ करना अभी बाकी है। भारत के 6 लाख गांवों में से मात्र 40 हजार गांवों में ही बैंक की शाखाएं हैं, शहरों में मात्र 11 फीसदी व्यवहार (ट्रांजेक्शन्स) नकद लिए-दिए बिना होते
हैं। इसका प्रतिशत केवल 4.3 फीसदी है।
इसे बढ़ाने के लिए आईटी पर आधारित अत्याधुनिक तकनीक ही उपाय है। इसलिए भारतीय बैंकिंग पूर्णत: आईटी पर आधारित हो गया है। ग्राहकों के लिए अनेक नई सुविधाएं
आ रही हैं और दुनिया का यह विशालतम
बैंकिंग बाजार आधुनिक तकनीक के साथ आगे बढ़ रहा है। ल्ल
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