अखण्ड भारत का तेजस्वी पुनर्दर्शन करेंगे
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'वास्तव में तो हम सब हिंदू समाज एक ही हंै। एक देश,एक मातृभाषा,एक देव,एक ही परमार्थिक सुख की कल्पना आदि सभी बातें संपूर्ण देश में एक हैं। कुछ लोग कहते हैं कि कश्मीर से आसाम तक जाने में अनेक भाषाएं मिलती हैं किन्तु यदि बुद्धि का ठीक उपयोग किया तो पता चलेगा कि सभी भाषाएं एक ही भाषा से उद्गम पाई हैं। इसी प्रकार ऊपर से दिखने वाली सभी विभिन्नताओं में एकत्व का अखंड-भारतीय सूत्र छिपा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक प.पू.श्री गुरुजी ने पूना के ग्रीष्मकालीन शिक्षण-वर्ग में आए स्वयंसेवकों,प्रान्तीय बैठक में उपस्थित हुए स्वयंसेवकों एवं पूना शहर के निमंत्रित नागरिकों के बीच बोलते हुए कहा कि-'अपनी मातृभूमि के किसी एक कण पर भी परकीयों का अधिकार होने का अर्थ है अपनी मातृभूमि पर विदेशियों का आक्रमण किन्तु जिन के हृदय में इस प्रकार की भावना नहीं और जो यह भी मानने के लिए तैयार नहीं कि हमारी मातृभूमि का विभाजन हुआ है वो वास्तव में महान बौद्धिक रोग से ही पीडि़त है। उनकी बुद्धि की संवेदन शक्ति ही लुप्त हो गई है और इसी कारण अखंड भारत के पुन:दर्शन की महान पुनीत तथा उदात्त कल्पना उन्हें सहन नहीं होती। मुझे तो एक सज्जन ने यहां तक कहा कि अब आप अखंड भारत की कल्पना छोड़ दीजिए। किन्तु मैं पुन: पुन: घोषणा करता हूं कि मैं उस कल्पना का कभी परित्याग नहीं कर सकता। अपने हिन्दू समाज के राष्ट्रीयत्व का एकमेव आधार और मातृभूमि के पवित्र प्यार तथा श्रद्धा से ओतप्रोत प्रभावी हुई यह अखंड भारत की इच्छा का कभी परित्याग नहीं होगा। उसका घोष भी कभी बन्द नहीं होगा फिर चाहे अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के चक्कर में कोई कितना ही आवे।
दिनांक 7 मई को हुए इस कार्यक्रम के कुछ घंटे पूर्व ही पूना नगर में भयंकर आंधी पानी का प्रकोप रहा। घरों के छप्पर उड़ गए और मार्ग ओले और अंधड़ के कारण अवरुद्ध हो गए। किन्तु इसके बाद भी कार्यक्रम निश्चित समय पर ठीक ढंग से प्रारम्भ हो गया।
आपने अपने भाषण में देश की वर्तमान स्थिति पर बोलते हुए कहा कि आज तक अनेकों बार इस देश पर परकीयों ने आक्रमण किए किन्तु अंग्रेजों ने जिस ढंग से आक्रमण किया वह सबसे निराला था। एक अंग्रेज ने अपने अंग्रेज देश बांधवों को संबोधित करते हुए कहा था कि 'यदि हिन्दुस्थान को अपने अधिकार में किए रखना है तो हिन्दुस्थान के लोगों को इस प्रकार की शिक्षा दो कि हिन्दुस्थान एक देश कभी रहा ही नहीं। जिस प्रकार यूरोप में अनेक देश हैं उसी प्रकार विभिन्न राज्यों का यह भूखंड है। यहां प्रान्त भिन्नता,भाषा भिन्नता,संस्कृति भिन्नता है। हम अंग्रेज यहां हैं इसलिए शांति है नहीं तो सब आपस में लड़ेंगे'बस इसी प्रकार कुटिल ढंग से आभास निर्माण कर उन्होंने यह पारस्परिक फूट फैलाने का भरसक यत्न किया।
'वास्तव में तो हम सब हिंदू समाज एक ही हंै। एक देश,एक मातृभाषा,एक देव,एक ही परमार्थिक सुख की कल्पना आदि सभी बातें संपूर्ण देश में एक हैं। कुछ लोग कहते हैं कि कश्मीर से आसाम तक जाने में अनेक भाषाएं मिलती हैं किन्तु यदि बुद्धि का ठीक उपयोग किया तो पता चलेगा कि सभी भाषाएं एक ही भाषा से उद्गम पाई हैं। इसी प्रकार रुपर से दिखने वाली सभी विभिन्नताओं में एकत्व का अखंड-भारतीय सूत्र छिपा है।
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