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पूरी दुनिया की साझी चिन्ता

by
May 31, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 31 May 2014 16:34:32

पर्यावरण दिवस (5 जून ) पर विशेष

– गौरीशंकर वैश्य 'विनम्र'

हमारे चारों ओर जो भी वस्तुएं परिस्थितियां और शक्तियां विद्यमान हैं, वे मानव क्रिया-कलापों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं, उनकी इसी आवृत्ति को पर्यावरण की संज्ञा दी जाती है। हमारे पुरखों को पर्यावरण की हमसे भी गहरी समझ थी तभी उन्होंने 'वसुधैव कुटुम्बकम' की परिकल्पना को अपनाया। मानव जब से जन्म लेता है और जब तक इस धरा पर सांस लेता है, पर्यावरण से जुड़ा रहता है।
वर्तमान में बढ़ती हुई भौतिकवादी प्रवृत्ति के कारण मनुष्य अपनी सुख सुविधाओं में अधिकाधिक वृद्धि करने के उद्देश्य से प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन कर रहा है। व्यापक स्तर पर पर्यावरण के दोहन तथा असीमित मात्रा में निकले गन्दगी और उत्सर्जित पदार्थों के कारण आज न सिर्फ मानव जीवन संकटग्रस्त है अपितु समस्त पृथ्वी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
वायु, जल, भूमि, वनस्पति और प्राणी पर्यावरण के अवयव हैं। यदि इन संसाधनों का मानव अन्धाधुंध दोहन करता है तो पर्यावरण में हानिकारक अवांछनीय परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं, जिससे जीवन प्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रभावित होता है।
दैनिक एवं दीर्घकालीन सुख-सुविधाएं (फ्रिज, एसी, कपड़े धोने की मशीन रसोई व ईंधन गैस, पेट्रोल, डीजल, दवाइयां, भवन, कपड़ा, भोजन आदि) जुटाने हेतु प्रकृति की अनमोल पूंजी का निवेश होता है। इस प्रक्रिया से नैसर्गिक स्रोत पानी हवा ऊर्जा, मिट्टी, पेड़-पौधे जीव-जन्तु प्रभावित होते हैं। मनुष्य ने इन स्रोतों को दुष्प्रभावित और प्रदूषित करके अपने लिए अनगिनत विपत्तियां आमंत्रित कर ली हैं। प्रदूषण के कारण ही आज वैश्विक ताप वृद्धि, ओजोन परत क्षय, अम्ल वर्षा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़, भूकम्प, भू-स्खलन, मरुभूमि निर्माण, वन्य जीवों का विलुप्तीकरण आदि परिणाम सामने आ रहे हैं। वह चाहे वायु, जल, भूमि, ध्वनि प्रदूषण हो नाभिकीय प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण या ग्रीन हाउस प्रभाव।
आज जिस हवा में हम सांस ले रहे हैं, वह दिन प्रतिदिन प्रदूषित होती जा रही है। वायु में हानिकारक गैसें यथा कार्बन, मोनो आक्साइड, कार्बनडाईआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, मीथेन आदि हैं। इसके प्रमुख कारक हैं ईंधनों का जलना, परिवहन माध्यमों द्वारा धुआं, औद्योगिक संस्थानों से उत्सर्जित धुआं एवं गैसें, परमाणु ऊर्जा, उपक्रम, तापीय विद्युतग्रहों द्वारा उत्सर्जित पदार्थ आदि।
21वीं सदी का संकट जल संकट है। प्राकृतिक या अन्य स्रोत से कोई वाह्य पदार्थ जो जल आपूर्ति या स्रोत को प्रदूषित करता है, जल प्रदूषण कहलाता है। इसके प्रमुख कारकों में घरेलू व्यर्थ पदार्थ, वाहित मल, औद्योगिक अपशिष्ट, कीटनाशी पदार्थ, उर्वरकों के रासायनिक तत्व, पेट्रोलियम पदार्थ सम्मिलित हैं। ध्वनि प्रदूषण आधुनिकीकरण की देन है। ध्वनि प्रदूषण वायुयानों का शोर, मोटर गाडि़यों के पौं-पौं, रेलगाडि़यों की सीटियां, कारखानों की मशीनों की आवाजें, बैण्डबाजों की ध्वनि, पटाखों का शोर आदि।
नाभिकीय प्रदूषण प्रमुखत: वायुमण्डल में परमाणु बमों के विस्फोट व परीक्षण द्वारा, परमाणु बिजली घरों के अवशिष्ट कचरे द्वारा और परमाणु संयंत्रों में नाभिकीय रिसाव से होता है। इसके दुष्प्रभावों से जीन व गुणसूत्रों में परिवर्तन हो जाता है। गर्भाशय में शिशुओं की मृत्यु हो जाती है, ल्यूकोमिया, अस्थि कैंसर, असामयिक बुढ़ापा, स्नायुतंत्र के विकार, त्वचा का कैंसर, सिर के बालों का गिरना, अपंग एवं विकृत सन्तानों का पैदा होना आदि संकट आते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न रूपों ने पर्यावरण तथा आम आदमी को बहुत क्षति पहुंचायी है। उससे परिस्थितिकीय असन्तुलन का खतरा बढ़ता जा रहा है, मनुष्य के साथ-साथ वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं का जीवन संकट में है, इससे उबरने के लिए पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबंधन ही एकमात्र मार्ग है, जिसके द्वारा पर्यावरण संकट को नियंत्रित किया जा सकता है। प्रत्येक शहर एवं गांव के चारों ओर हरी पट्टी होनी चाहिए। औद्योगिक संयंत्रों में प्रदूषण नियंत्रण के उपाय किए जाने चाहिए। जैव ईंधन के स्थान पर सौर चूल्हे का प्रयोग किया जाना चाहिए। पैदल या साइकिल से चलने को प्राथमिकता देनी चाहिए। डेविड स्पर्जन कहते हैं कि प्रकृति में एक विशाल आन्तरिक शक्ति छिपी है। यदि हम आज भी मन से पश्चाताप करें तो पर्यावरण क्षति का कलंक हमारे माथे से धुल सकता है।
हम अपने पर्यावरण के प्रति गंभीर चिन्तन करें भारतीय संस्कृति में प्राकृतिक शक्तियों को देवता स्वरूप माना गया है। सूर्य चन्द्रमा, वायु, अग्नि, जल आदि देव हैं नदियां देवियां। धरती माता है। वृक्षों पर देवताओं का वास है। कुएं तालाब, तीर्थ, बावडि़यां धिार्मक सांस्कृतिक स्थल हैं। पशु-पक्षियों को भी इसी प्रकार श्रेष्ठता प्रदान की गयी है।

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