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भारत कृषि प्रधान देश है और देश के ग्रामीणों की सवारधिक संख्या की जीविका का माध्यम कृषि ही है। कृषि के द्वारा किसान अपने साथ समूचे देशवासियों को अन्न उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप खाद्यान्न आत्मनिर्भरता वाला भारत का किसान आज आत्महत्या को विवश है जो हमारे आर्थिक विशेषज्ञों और समाजवेत्ताओं के लिए गहन चिंता का विषय बना हुआ है।
आज देश में कृषि घाटे का सौदा है। कृषि कर्म में लागत बढ़ गई है और उपज कम हो गई है। पूरी उत्पादन प्रणाली पर बड़ी-बड़ी कम्पनियों का कब्जा हो चुका है। दुष्परिणाम यह हो रहा है कि बीज किसान की पहंुच से दूर हो रहे हैं, उनके हाथ से जमीन भी जा रही है। छोटे किसान खेती छोड़कर शहरों में मजदूरी करने को मजबूर हैं। जो किसान आत्मविश्वास खो रहे हैं,वे आत्महत्या कर रहे हैं। खेती पर जो शोध हो रहा है वह किसान-हित में नहीं,बल्कि कम्पनियों के हित में हो रहा है। आवश्यकता है परम्परागत कृषि ज्ञान-विज्ञान को बढ़ावा देने और कृषि को विषमुक्त,प्रकृति से सुसंगत और किसान-हितैषी बनाने की। सरकार ह्यराष्ट्रीय जैविक कृषि आयोगह्णभी बनाए।
-उमेन्द्र दत्त
कार्यकारी निदेशक,खेती विरासत मिशन
क्या हो दृष्टिकोण
रसायन उर्वरकोंे पर सब्सिडी हेतु पुनर्विचार किया जाना चाहिए। कृषि उत्पादों के आवागमन पर लगी रोक हटनी चाहिए। कृषि वस्तुओं की कीमतें औद्योगिक वस्तुओं की तुलना में कम नहीं की जानी चाहिए। कृषि सिंचाई के तंत्र की समीक्षा करते हुए नई सिंचाई नीति बनाई जानी चाहिए। हमारा आंतरिक कृषि व्यापार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्तर का ही होना चाहिए।
फौरन करना होगा
ल्ल रासायनिक खाद पर तुरंत रोक लगानी होगी। जैविक खेती को बढ़वा देना होगा। किसानों को स्वावलंबी बनाना होगा।
दीर्घकालिक लक्ष्य
ल्ल कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का प्राथमिक और महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाने के प्रयत्न।
ल्ल कृषि उत्पादों के वैश्विक निर्यात हेतु गुणवत्ता युक्त विपणन व्यवस्था करना।
यह है वादा
ल्ल कृषि और ग्रामीण विकास में सरकारी निवेश बढ़ाया जाएगा। जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ बढ़े,
ल्ल यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लागत का 50 प्रतिशत लाभ हो। सस्ते कृषि उत्पाद और कर्ज उपलब्ध कराए जाएंगे।
ल्ल 60 साल से ज्यादा उम्र के किसानों के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई जाएंगी
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