पूरे देश की आस बंधी है मोदी से
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पूरे देश की आस बंधी है मोदी से

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May 17, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 May 2014 16:35:07

नरेंद्र मोदी की बनने जा रही सरकार से भाजपा या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को चाहे जितनी भी उम्मीदें हों, देश की जनता की उम्मीदों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। विकास के तकरीबन हर क्षेत्र में पिछड़ जाने के चलते भारत के हर प्रांत के निवासी एक सशक्त, दृढ़संकल्प और प्रभावी नेतृत्व वाली सरकार की राह देख रहे हैं। चूंकि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में नरेंद्र मोदी ही इस भूमिका में उपयुक्त नजर आ रहे थे इसीलिए जनता ने उन्हें ही अपने विश्वास का हकदार बनाया।

लेकिन जनता की अपार उम्मीदों के बल पर सत्ता में आना कांटों भरे ताज जैसा ही है,। क्योंकि जिस भरोसे को जीतकर आप कुर्सी हासिल करते हैं, उसके उतनी ही जल्दी टूटने की आशंका भी बनी रहती है। नरेंद्र मोदी व उनके करीबी लोग इस वास्तविकता से अनजान नहीं है। इसीलिए मोदी की ओर से यह संकेत साफ है कि उनकी सरकार का कोई ह्यहनीमून पीरियडह्णनहीं होगा।। अर्थात मोदी सरकार शपथ लेते ही अपने काम पर लग जाएगी। यह बात चुनाव प्रचार के दौरान ही स्पष्ट कर दी गई थी।

तो रास्ता साफ है। मगर देश के विकास से जुडे़ वे कौन से अहम क्षेत्र होंगे जो मोदी सरकार के लिए प्राथमिकता पर होंगे? मोदी के करीबी और पार्टी के अग्रणी नेता अरुण जेटली इन प्राथमिकताओं को कुछ इस तरह परिभाषित करते हैं। उनके मुताबिक अर्थव्यवस्था, शुचिता, सुरक्षा और नेतृत्व, यही वे सूत्र हैं जो नई सरकार का आधार बनेंगे। जिन मुद्दों का जिक्र जेटली ने कम शब्दों में किया उन्हीं को नरेंद्र मोदी ने खुद दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में संपन्न राष्ट्रीय परिषद की बैठक में विस्तार से बताने का प्रयास किया था। पार्टी के अधिवेशन में राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों और मीडिया के माध्यम से देशभर में प्रसारित उस भाषण से काफी हद तक यह पता लग गया था कि मोदी सरकार में आएंगे तो किन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देंगे। लोकसभा चुनाव के पहले चरण के बाद जारी हुए भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में उन बातों का विस्तार से पता लगता है। हालांकि इस घोषणा पत्र के बारे में यह शिकायत भी रही कि कुछ अहम विषयों पर वादे तो बड़े-बडे़ किए जा रहे हैं लेकिन उनके क्रियान्वयन को लेकर न तो कोई समय सीमा रखी गई है और न ही बारीकियों का ध्यान। शायद सत्ता में आने से पहले मोदी या उनके सिपहसालार समय सीमा और बारीकियों की बात कहकर मुश्किलेंं खड़ी नहीं करना चाहते।

बहरहाल, यह बात तो समझ में आ ही गई है कि मोदी सरकार आते ही पहले महंगाई पर काबू करने के उपाय लागू करेगी। कमरतोड़ महंगाई से निजात दिलाना मोदी सहित पार्टी के हर नेता का प्रमुख मुद्दा था। मोदी के विश्वसनीय अमित शाह ने वाराणसी में ऐलान भी किया था कि सरकार बनते ही इस पर फौरन अमल होगा। हालांकि मोदी एक व्यापक आर्थिक एजेंडे को लेकर भी चले हैं। इसमें बिजली आपूर्ति को दुरुस्त करना, आधारभूत ढांचे में लगभग थम से गए विकास को दोबारा पटरी पर लाना और उसे दोगुनी गति से आगे ले जाना प्रमुख है। लेकिन जैसा कि अरुण जेटली ने बताया, केवल आर्थिक मोर्चे पर फोकस करके सरकार उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकती जिसकी उम्मीद मोदी सरकार से लगाई जा रही है। लिहाजा, सरकारी तंत्र में ऐसी असंख्य खामियां हैं जिन्हें दूर करने के जल्द प्रयास करने होंगे ताकि शुचिता लाई जा सके।

मगर इन चुनौतियों के बीच कुछ अहम मुद्दे ऐसे हैं जिन पर नरेंद्र मोदी लगातार अपनी चिंताएं जाहिर करते रहे हैं। स्पष्ट है कि उनकी सरकार इन मुद्दों व क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देगी और वह कर दिखाएगी जिसका वायदा मोदी व उनके साथी कर रहे हैं। इनमें पहला मुद्दा जल स्रोतों के उपयोग का है। मोदी सरकार में नदियों को जोड़ने और बाढ़ व सूखे से होने वाले नुकसान को न्यूनतम करने पर खास जोर होगा, यह तो तय है। अगर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी नदी जोड़ो परियोजना को लागू करना मुमकिन न भी हो पाए तो नदियों के लिए एक अलग केंद्रीय मंत्रालय तो बनेगा ही। इस मंत्रालय की जिम्मेदारी होगी प्रमुख नदियों की सफाई के लिए योजनाएं लागू करना, नदियों के किनारे बसे लोगों को तबाही से बचाने के उपाय करना और नदी तट के इलाकों की देख-रेख व सौंदर्यीकरण का जिम्मा उठाना। अमदाबाद के साबरमती फ्रंट पर मोदी ने यह कर दिखाया है।

इस संदर्भ में यह बताना जरूरी है कि वाराणसी से चुनाव लड़ने वाले मोदी ने खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके गंगा के प्रदूषण और बनारस के घाटों की सांस्कृतिक विरासत संवारने-सहेजने का वायदा भी किया है। राज्य सरकार पर निर्भरता न रहे इसके लिए एक गंगा अथॉरिटी के गठन की बात भी वाराणसी के लिए जारी दृष्टिपत्र में कही गई है। गंगा सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले जाने-माने वैज्ञानिक और वाराणसी की पहचान संकटमोचन मंदिर के महंत डा. विश्वंभर मिश्र कहते हैं कि गंगा एक्शन प्लान के नाम पर सैकड़ों करोड़ रुपए पानी में बहाए जाने के बाद पहली दफा नरेंद्र मोदी की बातों में उन्हें वाकई गंगा को बचाने का संकल्प दिखाई दिया है। डा. मिश्र ने अपने अनुभव और अपने शोध के आधार पर मोदी को ठोस सुझावों की एक लंबी फेहरिस्त भी सौंपी है। कुछ और मुद्दे भी हैं जिनपर मोदी की व्यक्तिगत नजर रहने वाली है और वह इन क्षेत्रों में दूरगामी बदलाव लाने के लिए कटिबद्घ मालूम होते हैं।

इनमें नासूर की तरह देश को खा रही घुसपैठ की समस्या है। बंगलादेशी घुसपैठियों पर उचित कार्रवाई न करने की पूववर्ती सरकारों की नीति पलटी जाएगी, यह संकेत भी साफ है। इसके साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के हालात की विस्तृत समीक्षा और प्रदेश में क्षेत्रीय संतुलन को बरकरार रखते हुए हर क्षेत्र का विकास भी शामिल है।

नरेंद्र मोदी तीन कार्यकाल से गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं। भाजपा व एनडीए गैर-कांग्रेस दलों के मुख्यमंत्रियों की तरह वह भी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये से लड़ते आए हैं। भाजपा के घोषणापत्र में साफ लिखा है कि बेहतर केंद्र-राज्य संबंध स्थपित करने का एक नया अध्याय इस सरकार में प्रारंभ होगा। इस नए अध्याय के तहत चुने हुए मुख्यमंत्रियों का न केवल उचित सम्मान होगा बल्कि केंद्र व राज्य प्रतिद्वंद्वियों के बजाय सहयोगी बनकर काम करेंगे।

 

-स्मिता मिश्रा

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