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मई का मौसम बेदर्द है। फसल कटने के बाद खेतों से उड़ती धूल का जायजा भला कौन राजनेता लेना चाहेगा! जिसने विदेशी बर्फीली खुनक का मजा लिया हो वह तो हर्गिज नहीं। स्पेन इस वर्ष भी अच्छी जगह हो सकती थी, मगर नहीं…दरअसल स्पेन की बजाय सोलहवीं लोकसभा ज्यादा अहम है।एक वर्ष पहले उत्तराखंड त्रासदी के वक्त भी हफ्तेभर लापता रहे राहुल गांधी के लिए दिक्कत यह है कि इस बार राष्ट्रीय पटल पर मौजूदगी टाली नहीं जा सकती। लेकिन फौरी सक्रियता लंबी निष्क्रियता का गड्ढा तो नहीं पाट सकती!!सो, जब राहुल से उत्तर प्रदेश के एक ग्रामीण ने अमेठी के रास्ते में लगे हिचकोलों की बाबत पूछा तो वे बिफर गए। कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाले क्षेत्र की ताजा कहानी उस छवि के उलट है जो पिछली तीन पीढि़यों से दिल्ली के सत्ता गलियारों में स्थापित हो चुकी है। तो क्या गढ़ दरक चुका है? ठीक मतदान के दिन अमेठी में बूथ-बूथ घूमते राहुल गांधी का बुझा हुआ चेहरा और झुंझलाए तेवर बता रहे थे कि मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका वाड्रा की लगातार मेहनत के बावजूद कहीं ना कहीं बात बिगड़ चुकी है। अब भले ही गढ़ किसी तरह बच जाए, कांग्रेस के कर्णधार तीसरी बार सरकार बनाने की आस तो निश्चित ही खो चुके हैं।समाचार पत्रों की सुर्खियां, टीवी चैनल की बहसें, शेयर बाजार के रुझान और देर रात चलने वाली राजनीतिक मंत्रणाओं के दौर संभवत: उस एक बात पर सहमत हैं जिसका सिर्फ ऐलान होना बाकी है।भारतीय जनता पार्टी की अगुआई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जोरदार दस्तक फिलहाल कैलेंडर पर लिखे उस दिन की तरह तय लगती है जिसका पन्ना 16 मई को पलटा जाना है।ताजा रपट बताती है कि बनारस के घाट पर भारतीय लोकतंत्र का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। सवाल सिर्फ भाजपा का नहीं उस भविष्य का भी है जो आम आदमी पार्टी के उठान के साथ अरविंद केजरीवाल ने अपने लिए देखा था। क्या दिल्ली में चमका अभूतपूर्व नक्षत्र काशी के अनंत आकाश में धूमकेतु की तरह खोने जा रहा है!बहरहाल, भाजपा ने इस राजनैतिक रण में जिस एकता, कौशल व चातुर्य का प्रदर्शन किया है वह उसके प्रतिद्वंद्वियों के लिए ईर्ष्या का कारण हो सकती है। नरेंद्र मोदी का साहसपूर्ण, चमत्कारी प्रचार अभियान पार्टी की उदित होती संभावनाओं की धुरी बना है इसमें किसी को कुछ संदेह नहीं। विश्व के लोकतांत्रिक इतिहास में संभवत: यह पहला मौका है जब किसी राजनेता ने लगातार बिना थके तीन लाख किलोमीटर की चुनावी यात्राएं कीं और करीब 6000 रैली, कार्यक्रम और रोड शो के जरिए सवा अरब लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास किया।मोदी पर वार करने के लिए वाराणसी में सभी विरोधियों का एक होना बताता है कि भारतीय राजनीति के फलक पर यह ऐसी परिघटना है जो पहले कभी नहीं हुई। नतीजों की आहट के संकेत भाजपा विरोध की इस बौखलाहट में भी पढ़ने चाहिए।बहरहाल, 12 मई को नौवें चरण के मतदान (जिसमें बनारस सहित 41 लोकसभा सीटें शामिल हैं) तक विश्लेषक आंकड़ों के पहाड़ तले दबे हैं। मतदान के फौरन बाद ह्यएक्जिट पोलह्ण के नतीजों की बौछार शुरू होगी। वैसे, राजनीतिक महापंडित जहां मौन हो जाते हैं वहां बनारस के मल्लाह बोलते हैं। गंगा आरती के वक्त अस्सी घाट पर खड़े ह्यनिषादराजह्ण जब कहते हैं ह्यडाउट नहीं, कोई फाइट नहीं,ह्ण तो कई पत्रकारीय शंकाओं का स्वत: ही समाधान हो जाता है।सिर्फ नींबू शिकंजी पर नवरात्र काट देने वाले एक चायवाले ने वंशवादी राजनीति के युवराजों का पसीना अगर छुड़ा दिया है तो यह कोई छिपी बात नहीं। हर बात इस एक बात से जुड़ी है और जाहिर है, बस ऐलान बाकी है।
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