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-संदीप देव-
काले धन पर जांच को लेकर केंद्र सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने बेहद सख्त लहजे में कहा है कि वह अदालती आदेशों की अवहेलना कर रही है। 23 अप्रैल 2014 को देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार की ओर से पेश महान्यायवादी को कहा कि 3 साल पहले काले धन के पूरे मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया गया था और उन लोगों का नाम उजागर करने के लिए भी कहा गया था, जिनके नाम सरकार के पास आ चुके हैं, इसके बावजूद सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय की इस फटकार का नतीजा यह हुआ कि 29 अप्रैल 2014 को सरकार ने उन 26 नामों की सूची अदालत को सौंप दी है, जो उसे जर्मनी के लिंचेस्टीन बैंक से प्राप्त हुए हैं। सरकार के मुताबिक इनमें से 18 के खिलाफ जांच पूरी हो चुकी है।
इससे पूर्व 26 मार्च 2014 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एचएल दत्तू की अगुआई वाली खंडपीठ ने केंद्र सरकार की उस अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने कालेधन की जांच के लिए गठित एसआईटी को भंग करने की मांग की थी। अदालत ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकार ने अपनी भूमिका का सही निर्वहन नहीं किया, जिसके कारण मजबूरन एसआईटी के गठन का आदेश दिया गया।
पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कालेधन की जांच को लेकर गठित एसआईटी को भ्ंाग न किए जाने और उसके बाद जर्मनी से आए नामों को उजागर करने का निर्देश देने का असर यह हुआ कि 29 अप्रैल 2014 को केंद्र सरकार ने जर्मनी के लिंचेस्टीन बैंक में अपना काला धन छुपा कर रखने वाले 26 खाताधारकों के नाम और उनके दस्तावेज एक सीलबंद लिफाफे में सर्वोच्च न्यायालय को सौंप दिए। साथ ही, सरकार ने न्यायालय को सूचित किया कि इनमें से 18 मामलों में आयकर की जांच पूरी हो गई है और 17 के खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई शुरू हो चुकी है जबकि एक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है।
जानकारों का कहना है कि सरकार के पास विदेशी बैंकों में खाता रखने वाले करीब 50 लोगों की सूची विदेशों से आ चुकी है, लेकिन इसमें से केवल 26 नाम ही सरकार ने
अदालत को सौंपे हैं। न्यायाधीश बी़ सुदर्शन रेड्डी और न्यायाधीश एस़ एस़ निज्जर की पीठ ने 19 जनवरी 2011 को सरकार से पूछा था कि इसे सार्वजनिक करने में क्या परेशानी है? अदालत ने कहा था कि न केवल जर्मनी, बल्कि सभी देशों के सभी बैंकों की सूचनाएं जरूरी हैं। अदालत ने यहां तक कह दिया कि देश को लूटा जा रहा है। बावजूद इसके यूपीए सरकार को अपने पास मौजूद उन 26 नामों को सौंपने में भी करीब तीन साल का वक्त लग गया। ल्ल
डरा रहे हैं जेठमलानी
एसआईटी के गठन से पूर्व 14 व 19 जनवरी 2011 को सर्वोच्च न्यायालय ने विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नामों को सार्वजनिक न करने को लेकर यूपीए सरकार की जमकर खिंचाई की थी। न्यायालय ने पूछा था कि आखिर देश को लूटने वालों का नाम सरकार क्यों नहीं बताना चाहती है? दरअसल राम जेठमलानी ने अपनी जनहित याचिका में एक स्विस पत्रिका ह्यह्यरूँ६ी्र९ी१ कह्णह्ण४२३१्री१३ीह्णह्ण के 19 नवम्बर, 1991 के अंक में प्रकाशित एक खोजपरक समाचार का उल्लेख किया है। इसमें तीसरी दुनिया के उन 14 नेताओं के नाम छापे गए हंै, जिनके स्विस बैंकों में खाते हैं और जिसमें अकूत धन जमा है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम भी इसमें शामिल है।
एसआईटी की फांस
राम जेठमलानी की याचिका के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने काला धन मामले में 4 जुलाई 2011 को एक उच्च स्तरीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन कर दिया। एसआईटी को सीधे सर्वोच्च न्यायालय को रिपोर्ट करने को कहा गया। लेकिन केंद्र सरकार ने एसआईटी को काम ही नहीं करने दिया। उल्टा करीब तीन साल बाद 26 मार्च 2014 को सर्वोच्च न्यायालय में यह कहने के लिए पहुंच गई कि काले धन की जांच के लिए एसआईटी की जरूरत नहीं है, इसलिए इसे भंग कर दिया जाए! कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस अर्जी को खारिज कर कहा कि जब एसआईटी की अगुवाई सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश कर रहे हैं तब फिर केंद्र सरकार एसआईटी को स्वीकार क्यों नहीं कर पा रही है?
काले धन पर दूसरे देशों का रवैया
आर्थिक मंदी में फंसे अमरीका की इंटरनल रेवेन्यू सर्विस (आईआरएस) को यह सूचना हासिल हुई कि उसके देश के करीब 4450 धन कुबेरों की दौलत विदेशी बैंकों में जमा है। उसने वर्ष 2009 में सबसे बड़े निजी स्विस बैंक यूबीएस को धमकाया और 780 मिलियन डालर जुर्माने का दावा ठोकते हुए उस पर मुकदमा कर दिया। महज एक साल के भीतर वर्ष 2010 में यूबीएस बैंक ने 2000 अमरीकियों की सूची अमरीका को सौंप दी और अमरीका ने धन की वसूली कर ली। बाकी बचे अमरीकियों की जानकारी देने का जिम्मा स्विस सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। केमैन आइलैंड दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा वित्तीय केंद्र था। अमरीका ने केमैन को सूचना के आदान-प्रदान समझौते में फंसाकर उसे लगभग बर्बाद कर दिया। फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने भी अपनी ताकत दिखाकर काले धन की वसूली कर ली है या करने की ओर अग्रसर हैं। भारत का कितना काला धन विदेशों में जमा है इसकी सही-सही सूचना तो नहीं है, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व आए वाशिंगटन स्थित रिसर्च ऐंड एडवोकेसी आर्गनाइजेशन ग्लोबल फाइनैंशल इंटीग्रिटी (जीएफआई) की रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2002 से 2011 के बीच भारत दुनिया में काले धन का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक देश रहा है। इस दौरान 343़04 अरब डालर के बराबर काला धन देश से बाहर भेजा गया है। यही नहीं 2011 में तो भारत ने ऊपर के तीन देशों में जगह बना ली थी। वर्ष 2011 में 84़93 अरब डालर काले धन के रूप में देश का धन बाहर गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अपराध, भ्रष्टाचार और कर चोरी के कारण ही देश का रुपया विदेशों में जा रहा है। ल्ल
हसन अली, अदनान खशोगी और कांग्रेसी नेता
6 मई 2011 को प्रवर्तन निदेशालय ने कर की चोरी और काला धन मामले में पुणे के घोड़ा व्यवसायी हसन अली खान और कोलकाता के व्यापारी काशीनाथ टापुरिया के खिलाफ ह्यप्रिवेंशन आफ मनी लांडरिंग एक्टह्ण के अंतर्गत चार्जशीट दाखिल की गई। हसन अली खान को 7 मार्च 2011 को गिरफ्तार किया गया था। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक हसन अली और उसके सहयोगी कोलकाता के व्यापारी काशीनाथ टापुरिया पर 70,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर बकाया है।
हसन अली के खिलाफ जांच 2007 से ही चल रही थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार को फटकार लगाने के बाद ही उसे 2011 में गिरफ्तार किया जा सका। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की वकील नीति पुंडे ने अदालत में कहा था कि ह्यह्यहसन अली के अंतरराष्ट्रीय हथियार व्यवसायी अदनान खशोगी से संबंध हैं और उसने स्विस बैंक (यूबीएस) में 8 अरब अमरीकी डालर(करीब 40 हजार करोड़ रुपए) जमा कर रखे हैं।ह्णह्ण सरकार ने भी 2009 में एक शपथ पत्र के जरिए अदालत को बताया था कि हसन अली, उसकी पत्नी रहीमा और सहयोगियों से 71,848़59 करोड़ रुपये का टैक्स चुकाने को कहा गया है। स्विट्जरलैंड ने सत्रह खाताधारकों की एक सूची सरकार को भेजी थी। कहा जाता है कि इसमें हसन अली के अलावा 10 जनपथ के एक करीबी नेता और महाराष्ट्र के एक पूर्व मुख्यमंत्री का नाम भी शामिल था, वैसे, ईडी की पूछताछ में भी हसन अली ने यह खुलासा किया था कि उसके खाते में महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों का पैसा जमा होता है।
यही नहीं, मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले के बाद राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) के डीसीपी अशोक देशभरतार की जांच में हसन अली के फर्जी पासपोर्ट का मामला सामने आया था। हसन अली की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में खुफिया कैमरे से रिकाडिंर्ग में हसन अली ने अंतरराष्ट्रीय हथियार व्यवसायी अदनान खशोगी से अपने संबंधों को खुलकर स्वीकारा ही था। हसन अली ने कांग्रेस नेता अहमद पटेल, पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख जैसे कई कांग्रेसी दिग्गज नेताओं के साथ अपने रिश्ते का जिक्र भी किया था। बाद में डीसीपी अशोक देशभरतार को सरकार ने निलंबित कर दिया था। जांच में 1992 से 1998 के बीच राज्यसभा के सदस्य रहे बिहार के कांग्रेसी नेता अमलेंदु पांडे उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव विजय शंकर और पुदुच्चेरी के उपराज्यपाल इकबाल सिंह का नाम भी हसन अली से जुड़ा पाया गया। *
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