शोक मनाने का समय ही नहीं मिला
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शोक मनाने का समय ही नहीं मिला

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Apr 12, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Apr 2014 15:02:42

.हताशा नहीं मन में साहस बनाए रखकर एक मां ने लड़ी लंबी कानूनी लड़ाई नीतिश कटारा हत्याकांड में उत्तर प्रदेश के बाहुबली डीपी यादव के बेटे विकास यादव, भांजे विशाल यादव और सुखदेव पहलवान तीनों की उम्रकैद की सजा को उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है। बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए 14 वर्ष तक नीतिश की मां नीलम कटारा ने लंबी लड़ाई लड़ी। कई दौर ऐसे आए जब उन्हें हताशा हुई, लेकिन खुद को टूटने नहीं दिया, बेटे के हत्यारों को सजा तक पहुंचाने के लिए मैदान में डटी रही। एक मां को अपने बेटे के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए किस दौर से गुजरना पड़ा, क्या सहना पड़ा। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर पाञ्चजन्य संवाददाता आदित्य भारद्वाज ने नीलम कटारा से विशेष बातचीत की जिसके प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं।
आपने इतने लंबे समय तक बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी। इस बीच आपके पति की भी मृत्यु हो गई। लंबी न्यायिक प्रक्रिया को झेलते हुए क्या कभी आपको ऐसा लगा कि अब इंसाफ नहीं मिलेगा ?
कभी-कभी हताशा होती थी, अप्रैल 2002 में बेटा खोया। इसके बाद अगस्त 2003 में पति को खोया, लेकिन जब भी हताश होती थी ईश्वर की ओर से कुछ न कुछ ऐसा संकेत मिल जाता था कि कुछ अच्छा होने वाला है। समाज और मीडिया का भरपूर सहयोग मिला। जब डीपी यादव 2004 में भाजपा में शामिल हुए तो शोर मचा। मीडिया ने मुुद्दे को उठाया। पार्टी को उन्हें निकालना पड़ा। जब कभी भी ऐसा कोई मौका आया कि मन में हताशा हुई तो हमेशा ईश्वर ने शक्ति दी और मैं आगे बढ़ती रही। विश्वास था कि न्याय जरूर मिलेगा।
एक मां के तौर पर आपने बहुत कुछ सहा, झूठी शान के लिए बेटे की निर्ममता से हत्या कर दी गई। सामने वाले लोग ताकतवर थे। राजनीतिक गलियारों में उनकी खासी हनक थी। क्या कभी आपको डर नहीं लगा ?
जब बेटे के साथ ऐसा हुआ, तो मैं कुछ जानती नहीं थी। ये भी नहीं पता था कि न्याय कैसे मिलता है, उस दौरान बहुत से लोग मिलते थे। कुछ हितैषी भी होते थे, तो कुछ ऐसे होते थे तो बातों ही बातों में अपराधियों की वकालत करते थे। कई लोग ऐसे भी मिले जो कहते थे, आप छोडि़ए जाने दीजिए, भगवान न्याय करेगा। कई बार धमकी भरे फोन और चिट्ठियां भी आती थीं, जिन पर लिखा होता था कि अब बंद करो नहीं तो आपको भी आपके बेटे के पास पहुंचा दिया जाएगा, लेकिन मुझे इतना वक्त ही नहीं था कि मैं बेकार की बातों के बारे में सोचूं। इसलिए डर नहीं लगा और मैं लड़ाई लड़ती रही।
ल्ल जो अपराध उन्होंने किया, क्या आप उसके लिए न्यायालय द्वारा दी गई सजा से संतुष्ट हैं?
नहीं, अभी हमारी याचिका लंबित है, चूंकि उन्होंने उच्च न्यायालय में सजा के खिलाफ अपील की थी। इसलिए सजा बढ़ाए जाने को लेकर सुनवाई नहीं चल रही थी। 25 अप्रैल से इस संबंध में सुनवाई शुरू होनी है कि सजा बढ़ाई जाए या ना बढ़ाई जाए।
ल्ल जो दुख आपने सहा एक मां के लिए उससे बड़ा दुख कोई नहीं हो सकता, ऐसे कौन से मौके होते हैं जब आपको नीतिश की बहुत याद आती है?
बेटे को न्याय दिलाने के लिए लंबी न्यायिक लड़ाई लड़नी पड़ी। इस बीच इतना वक्त ही नहीं मिला कि मैं बैठकर शोक मनाऊं। गीता में भी यही लिखा है। जिंदगी के पहले 50 साल बड़े बेहतरीन गुजरे। मैं 50 साल की भी नहीं थी जब मेरे बेटे की हत्या हुई। इसके बाद सभी कुछ मुझे ही संभालना था। बीच-बीच में गीता पढ़ती थी, जिससे काफी आत्मिक बल मिला। ऑफिस जाना, न्यायालय में प्रस्तुत होना। इसी में इतनी व्यस्त रही कि कभी ऐसा सोचने का अवसर ही नहीं मिला। अब जबकि फैसला आ गया है मेरी उम्र भी 60 से ऊपर हो गई है। 20 अप्रैल को उसका जन्मदिन आता है। आज वह होता तो 36 साल का हो गया होता। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है जवान बेटे की जरूरत महसूस तो होती ही है।
ल्ल ऐसी विकट परेशानी के समय में अपने आपको मजबूत रखने के लिए आपने क्या किया, अपने आपको कैसे संभाला? समाज के लिए आपका क्या संदेश है ?
मैंने बताया ना जब मेरे बेटे के साथ ऐसा हुआ तो मुझे कुछ मालूम नहीं था कि क्या करना है। वक्त ने धीरे-धीरे सब कुछ सिखा दिया। नीतिश काफी हंसमुख था। वह परिवार के साथ काफी समय बिताता था। वह हमेशा हंसता रहता था। खुद को मजबूत और खुश रखने के लिए मैं हमेशा उन क्षणों को याद करती रही जब नीतिश हमारे साथ खुश होता था। आज भी मैं उसके साथ बिताए उन क्षणों को याद करके खुश होती हूं। जहां तक संदेश देने की बात है जाति के नाम पर झूठी शान के नाम पर समाज में जो होता है उसके बारे में समाज को गंभीरता से सोचना चाहिए।

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