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कांग्रेस की गोद में सपा

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Apr 7, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2014 12:20:15

 

न रायबरेली में दी टक्कर न अमेठी में दिखाई हिम्मत

धीरज त्रिपाठी

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ऐलान तो करते रहते हैं कि केंद्र की यूपीए-2 सरकार ने जनता को बदहाल किया है। देश की सीमाओं को असुरक्षित कर दिया है, कांग्रेस को पराजित करना उनका पहला लक्ष्य है। कांग्रेस भी सपा तमाम गंभीर आरोप लगाती है। पर, कांग्रेस को रोकने का दावा करने वाले सपा नेता सोनिया गांधी और कांग्रेस की तरफ से बिना कुछ कहे प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे राहुुल गांधी को रोकने में दिलचस्पी लेते नहीं दिखते। कांग्रेस के नेता भी सपा सरकार पर नाक भौंह तो सिकोड़ते हैं पर जैसे ही सपा संकट में दिखती है तो समर्थन में खड़े हो जाते हैं।
सपा ने न सोनिया के खिलाफ रायबरेली में और न ही राहुल के खिलाफ अमेठी में उम्मीदवार उतारा है। कांग्रेस की तरफ से भी चुनाव में सपा की सहायता में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। मैनपुरी में मुलायम, कन्नौज में डिंपल यादव, बदायंू में धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद में अक्षय यादव के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार नहीं है। यह सिर्फ संयोग ही नहीं है। दरअसल, सपा और कांग्रेस दोनों ही नहीं चाहतीं कि दोनों में किसी की भी जीत का रास्ता रुके। दोनों का ही लक्ष्य भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है।
बहुत पीछे न जाएं और सिर्फ मुजफ्फरनगर दंगे पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि सपा की चिंता कांग्रेस नहीं बल्कि मोदी हैं। इसका प्रमाण मुजफफरनगर है। तभी तो कंग्रेस नेताओं को तो मुजफ्फरनगर जाने की इजाजत मिल जाती है लेकिन भाजपा नेताओं को नहीं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रायबरेली व अमेठी कांग्रेस व सपा की घबराहट और राजनीति करने के तौर-तरीकों का प्रमाण है। मुलायम जानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच ही होना है। जिस तरह मोदी गुजरात के विकास मॉडल को लेकर वोट मांग रहे हैं। उससे मुलायम व कांग्रेस का चिंतित होना स्वाभाविक है। इसलिए दोनों मिलकर मोदी के विकास एजेंडे की तरफ लोगों का ध्यान हटाना चाहते हैं।
यदि अमेठी और रायबरेली की जमीनी स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो कांग्रेस व मुलायम की चिंता के कारण समझ में आ जाते हैं। देश की तकदीर तय करने वाले नेहरू व इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारियों के इन क्षेत्रों में सड़कों से लेकर उद्योगों तक का हाल बेहाल है। पिछले कुछ वर्षो में लगभग दो दर्जन से अधिक कारखानों में ताला लग चुका है। लगातार बंद हो रही फैक्ट्रियों केचलते बेरोजगार लोग सोनिया और राहुल गांधी के काफिले को रोककर विरोध करने लगे हैं। दौरे पर आने पर सोनिया-राहुल को अक्सर विरोध के सुर सुनाई देते हैं। लोग उन्हें काले झंडे तक दिखाने में भी पीछे नहीं रहते हैं।
इन दोनों जगहों पर जनता के भीतर नए विकल्प तलाशने की इच्छा का आकलन सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में सपा को रायबरेली संसदीय क्षेत्र की पांच सीटों में चार पर तो अमेठी में विधानसभा की पांच सीटों में से तीन पर जीत मिली। पर, सपा ने भी जनता की इच्छा के साथ छल किया। कांग्रेस के विरोध में वोट लिया फिर उसी के साथ खड़े हो गए। अब जब विकास लोकसभा चुनाव का मुद्दा बनता जा रहा है तो कांग्रेस व सपा दोनों में घबराहट है।
दरअसल सपा दिल्ली की गद्दी पर ऐसी सरकार चाहती है जो उसे संरक्षण दे सके और सपा नेताओं के खिलाफ तमाम भ्रष्टाचार के मामलों की जांच दबी रहे। इसीलिए सपा सबकुछ भूलकर कांग्रेस की चुनावी राह आसान बनाने में जुटी है। और उसके लिए समीकरण बना रहे हैं। सपाई जानते हैं कि सपा का वजूद तभी तब है जब तक कांग्रेस अस्तित्व में है। कांग्रेस भी जानती है कि सपा जैसे दल न रहे तो भाजपा से सीधी लड़ाई उसके लिए भी घातक होगी।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डा़ चन्द्र मोहन कहते हैं कि कांग्रेस और सपा एक सिक्के के दो पहलू हैं। यह बात लगातार सपा-कांग्रेस की मिलीभगत के चलते उजागर होती रहती है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद तो सपा सरकार कांग्रेस नेताओं को जाने देती है लेकिन भाजपा नेताओं को नहीं। कांग्रेस भी मुलायम सिंह को भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआई से राहत दिलाती रही है। समय-समय पर कांग्रेस सपा को तो सपा कांग्रेस की सहायता करती रहती हैं। दोनों ने जनता को मूर्ख बनाने का काम किया है। लेकिन अब प्रदेश की जनता के सामने से झूठ का पर्दा उठ चुका है। बहती हवा का रूख पहचानें तो भाजपा उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक सीटें जीतने के अलावा केंद्र में भी अपनी सरकार बनाने जा रही है। ल्ल

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