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कहां खो गई गौरेया की चहचहाहट ?

by
Mar 25, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Mar 2014 15:14:45

कुछ बरस पहले घरों व उसके आस-पास फुदकती और चहचहाती नजर आने वाले गौरेया जिसे आम बोलचाल में चिरैया भी कहा जाता है, आज भंयकर संकट में है। अब सुबह सवेर उठने पर गौरेया की चहचहाट नहीं सुनाई देती। अपने बच्चे को चुग्गा खिलाती गौरेया कहां चली गई ?
कुछ साल पहले सुबह सवेरे चिडि़यों की चहचहाट सुनकर आंखे खुल जाती थी, चिडि़यों के चहचहाने से पता चलता था कि सुबह हो गई। घरों की छत पर, खिड़कियों पर गौरेया अक्सर दिखाई देती थी। गौरेया को देखना हमारी रोजाना की दिनचर्या में शामिल था, लेकिन अब गौरेया नहीं दिखाई देती। सवेरा आज भी होता है, लेकिन हमारी खिडि़कियों और दरवाजों पर नहीं दिखाई देती।
विशेषज्ञों के मुताबिक गौरेया की संख्या में तेजी से कमी आई है। चिडि़यों की यह प्रजाति आज विलुप्त होने की कगार पर है। जबकि गौरेया लुप्तप्राय हो गई तो हमें उसकी कमी महसूस होने लगी है। यह देखते हुए गौरेया को संकटग्रस्त प्रजाति की सूची में शामिल किया गया है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत में ही गौरेया की संख्या में गिरावट आई है बल्कि पूरे विश्व में इनकी संख्या तेजी से घटी है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, चेक गणराज्य, बेल्जियम, इटली और फिनलैंड के शहरी इलाकों में गौरेया की संख्या घटी है। बढ़ता प्रदूषण, कम होते पेड़ पौधे, ऊंची इमारतें गौरेया के लुप्त होने का एक मुख्य कारण है। गौरेया आम तौर पर झुंड में रहती है और उड़ती है। इसका मुख्य आहार अनाज के दाने, छोटे कीड़े-मकोड़े होते हैं। कीड़ा खाने की आदत के चलते गौरेया को किसानों का मित्र कहा जाता है। गौरेया इंसानों के आसपास रहने वाली चिडि़या है। घरों की रोशनदानों और यहां तक की पंखा लटकाने वाले छोटे से सुराख में भी गौरेया घोंसला बनाकर रह लेती है, लेकिन गौरेया की संख्या इतनी कम हो गई है कि वह दिखाई ही नहीं देती। इसकी घटती जनसंख्या को देखते हुए 20 मार्च को पूरे विश्व में गौरेया दिवस मनाया जाने लगा है। यदि हमें गौरेया को बचाना है तो हमें अपनी जीवन शैली में बदलाव करने होंगे, पेड़ पौधे लगाने होंगे। घरों में व आस-पास गौरेया के घोंसला बनाने के लिए जगह छोड़नी होगी। तभी हम गौरेयों की चहचहाहट फिर से सुन पाएंगे।

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