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प्रतिभा तो हमारे पास भी थी, किन्तु भारतीय आईटी कंपनियों ने वह हिम्मत नहीं दिखायी

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Mar 25, 2014, 12:00 am IST
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खेलना था दाव, ताल ठोककर रह गए

दिंनाक: 25 Mar 2014 15:06:37

इस समय सारी दुनिया में आईटी के क्षेत्र में भारत का दबदबा है। माइक्रोसॉफ्ट में भारतीय मूल के सत्या नडेला की सीईओ के रूप में हुई नियुक्तिके बाद तो ऐसा चित्र प्रस्तुत किया जाने लगा, जैसे मानो हम भारतीयों ने दुनिया जीत ली हो।
यह बात सही है कि आईटी के क्षेत्र में पूरी दुनिया में भारत की तूती बोलती है। दुनिया की अनेक बड़ी आईटी कंपनियों ने भारत में अपने डवलपमेंट सेंटर्स खोले हैं। गूगल, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल, आईबीएम, नोकिया जैसी कंपनियों ने अपने उत्पाद को तैयार करने के अनेक विकास केंद्र भारत के बेंगलुरू, पुणे, गुड़गांव, चेन्नई, हैदराबाद आदि शहरों में खोले हैं। इसका मुख्य कारण हैं, भारतीय प्रतिभा। आईटी के क्षेत्र में महारत रखने वाले अनेक युवक-युवतियां भारत में बहुतायत में मिल जाते हैं और वह भी सस्ते में 80, के दशक के उत्तरार्ध से भारत में आईटी की गूंज सुनायी देने लगी। उस समय अमरीका और यूरोप में कंप्यूटर की संख्या बढ़ रही थी। उनके लिए लगने वाले अलग-अलग सॉफ्टवेयर की आवश्यकता थी और इसी अवसर का लाभ उठाया भारतीय आईटी कंपनियों ने़, इन्फोसिस के प्रारंभ होने का यही समय था। वर्ष 1981 में 7 इंजीनियर्स ने मिलकर इन्फोसिस की शुरुआत की थी। टीसीएस हालांकि 1968 में शुरू हुई पुरानी आईटी कंपनी थी, लेकिन उसकी बढ़ोतरी भी 80 के दशक के शुरू में ही हुई थी।
वह दिन भारत में आईटी युग के प्रारंभिक दिन थे। गुड़गांव अभी गांव ही था और बेंगलुरू एक शांत, हरा-भरा कन्नड़ संस्कृति से भरपूर महानगर। भारत की प्रतिभा को पहचान कर अमरीकी आईटी कंपनियों ने भारत की ओर रुख करना शुरू ही किया था। उन दिनों आईटी के मामले में हमारे देश में कितना अज्ञान था उसका उदाहरण ह्यटेक्सास इन्स्ट्रूमेंटह्ण हैं। बेंगलुरू के मिलर्स रोड पर अमरीकी कंपनी टेक्सास इन्स्ट्रूमेंट ने भारत में अपना पहला डवलपमेंट सेंटर खोला। ऐसा करने वाली वह शायद पहली विदेशी कंपनी थी।
उन दिनों, बेंगलुरू से सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट करने के लिए टेक्सास इन्स्ट्रूमेंट को अमरीका तक 2 इंच की एक डेटा लिंक की आवश्यक थी। इंटरनेट आने में अभी समय था। ऑप्टिकल फायबर की सबमरीन केबल अभी बिछी नहीं थी। इसलिए तत्कालीन विदेश संचार निगम ने टेक्सास इन्स्ट्रूमेंट को यह लिंक सेटेलाइट के माध्यम से दी। यह एक अत्यंत सामान्य प्रक्रिया थी। आज सारे समाचार और दूरदर्शन चैनल अपना प्रक्षेपण सेटेलाइट से ही करते हैं, किन्तु अपने देश के लिए यह सब कुछ नया था। यह वह दौर था, जब अपने देश में सेटेलाइट अजूबा थी। सेटेलाइट टीवी आने में समय था। संचार के क्षेत्र में हम बहुत पिछड़े थे। इसलिए यह मामला संसद में जिसमें वर्षाकालीन सत्र में संसद सदस्यों ने कहा की टेक्सास इन्स्ट्रूमेंट इस सेटेलाइट द्वारा भारत की रक्षा संबंधी सभी जानकारी अमरीका भेज सकेगी। इसलिए भारतीय संसद में तब सॉफ्टवेयर के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने की बात उठी थी।
90 के दशक के पूर्वार्ध में जब सूचना क्रांति ने आकार लेना शुरू किया, तब भारतीय आईटी उद्योग ने विस्तार शुरू किया। अमरीका और यूरोप में आईटी उद्योग में अचानक प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता पड़ी। भारत में ऐसे प्रशिक्षित आईटी प्रोफेशनल्स उपलब्ध हो रहे थे। ये अच्छा अवसर था, ऐसे प्रशिक्षित लोगों को अमरीका और यूरोप में भेजने का।
शुरुआत के दिनों में टीसीएस, इन्फोसिस, सत्यम, विप्रो आदि कंपनियों ने यही किया। बाद में अमरीकी या यूरोपियन कंपनियों से संबंध स्थापित होने के बाद भारतीय आईटी कंपनियों ने डवलपमेंट के प्रोजेक्ट्स लेना प्रारंभ किया। यह आउटसोर्सिंग युग की शुरुआत थी।
जब 20वीं शताब्दी समाप्त होकर दुनिया 21वीं शताब्दी में प्रवेश कर रही थी, तब ह्य2ह्यह्ण परियोजनाओं (दुनिया भर में डर था कि अगर कम्प्यूटरों में यह तिथि नहीं बदली तो 31/12/1999 के बाद, वर्ष के अंतिम 2 अंक ही अनेक स्थानों पर लिए जाने के कारण अनर्थ हो जाएगा और दुनिया का गणित ही गड़बड़ा जाएगा) ने भारतीय आईटी कंपनियों को अनेक नए अवसर उपलब्ध कराए।
यह एक मोड़ था, इस मोड़ पर भारतीय आईटी उद्योग ने यदि ठीक कदम उठाए होते तो आज हम दुनिया के आईटी जगत में प्रभुत्व जमाए होते, किन्तु हम वह कर न सके। हमने सॉफ्टवेयर के प्रोडक्ट्स बनाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। हम आईटी के क्षेत्र में ह्यसम्भ्रान्त पेशेवरह्ण बनकर रह गए और इसीलिए भारतीय मूल के सत्या नडेला माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ बन गए तो हम खुशियां मनाने लगे। आज हम दुनिया में ह्यआउटसोर्सिंगह्ण के एक बड़े केंद्र के रूप में जाने जाते हैं। दुनिया हमें सॉफ्टवेयर के अच्छे उत्पाद निर्माण करने वाले देश के रूप में नहीं पहचानती है। हमारी आईटी कंपनियों ने अपना क्षेत्र प्रमुखता से सेवा (सर्विसेज) तक ही सीमित रखा है।
अर्थात हम क्या कर रहे हैं? हम यानी भारतीय आईटी कंपनियां अमरीका, यूरोप, जापान आदि देशों के सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट बनाने में मदद कर रही हैं। किसी इमारत के बनने में मजदूरों का जितना योगदान होता हैं, बस अलग संदर्भो में उतना ही योगदान भारतीय आईटी कंपनियों का है। हमारी आईटी कंपनियां ह्यप्रोडक्ट्सह्ण बनाने में रुचि नहीं ले रही हैं।
ऐसा क्यों? प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों का कारोबार और मुनाफा जबरदस्त होता है। हमारी सबसे बड़ी आईटी कंपनी टीसीएस का सालाना कारोबार है 11़57 बिलियन अमरीकी डॉलर, वहीं गूगल का सालाना कारोबार है 59़82 बिलियन अमरीकी डॉलर। अर्थात विश्व की आईटी का सबसे बड़ा ह्यरिसोर्स पूलह्ण होने के बाद भी हमारी भारतीय आईटी कंपनियां अमरीकी कंपनियों से बहुत पीछे हैं।
हमारी आईटी कंपनियों ने अपने उत्पाद क्यों नहीं बनाए? विंडोज जैसी या लिनक्स जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम हमारी किसी भारतीय आईटी कंपनी ने क्यों नहीं तैयार कि या? हम कर सकते थे़, प्रतिभा तो हमारे पास भी थी, किन्तु भारतीय आईटी कंपनियों ने वह हिम्मत नहीं दिखायी। इन्फोसिस ने ह्यफिनेकलह्ण जैसा बैंकिंग क्षेत्र का उत्पाद बनाया। लेकिन इन्फोसिस के कुल कारोबार में इन उत्पादों का योगदान नगण्य है। भारत की एक छोटी सी कंपनी,ह्यटैलीह्ण जैसा अकाउंटिंग के क्षेत्र का उत्पाद बनाकर सारे भारत में छा जाती हैं, ह्यटैलीह्ण का निर्यात करती हैं।
100 मिलियन अमरीकी डॉलर्स का व्यवसाय करती हैं।

टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो जैसी बड़ी कंपनियां भी ऐसा कर सकती थी। उनके पास पूंजी थी, आधारभूत संरचना थी, आवश्यक प्रतिभाएं थी। नहीं थी तो केवल जोखिम लेने की हिम्मत। उत्पाद बनाने में खतरा होता है, जोखिम होता है, ज्यादा परिश्रम और और कष्ट लगते हैं। दस उत्पाद बनाने का प्रयास किया तो एक या दो उत्पाद चल निकलते हैं। प्रारंभिक खर्चा बहुत रहता है, लेकिन इसके फायदे अनेक रहते हैं। कंपनी का कारोबार बढ़ता है, आवक बनी रहती है और कंपनी को स्थायित्व आता है। मंदी के दिनों में भी स्थिति अच्छी रहती हैं। देश की अर्थव्यवस्था को मदद मिलती है।
दुर्भाग्य से हमारी केन्द्र सरकार ने भी ह्यउत्पाद आधारितह्ण अर्थव्यवस्था पर कभी जोर नहीं दिया। हम ह्यसेवा क्षेत्रह्ण का गुणगान करते ही रह गए। उत्पाद क्षेत्र और सेवा क्षेत्र का ठीक ठाक समन्वय हम रखते तो आज विश्व में हम आईटी के बेताज बादशाह होते। अब परिस्थिति बहुत बदली है। संचार क्षेत्र का बहुत बड़ा प्रभाव आईटी पर पड़ा है। मोबाइल फोन में प्रयोग की जाने वाली ह्यएंड्राइडह्ण ऑपरेटिंग सिस्टम ने माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी की है। इस परिस्थिति में हमारी आईटी कंपनियों के सामने उत्पाद आधारित व्यवस्था के अनेक अवसर निर्माण हुए हैं। देखते हैं, वे इसका कैसा उपयोग करते हैं।

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