जीवट संघर्ष ही है जिनकी पहचान
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जिसने अपना पूरा जीवन देशवासियों की स्वतंत्रता के लिए न्योछावर कर दिया । दमन और उत्पीड़न को सहते हुए बाहरी दुनिया से बिल्कुल कट चुके अपने लोगों को खुली हवा में लाने के लिए स्वयं बंद रहकर पारिवारिक जीवन को तिलाजंलि दे दी। जिनका पूरा जीवन त्याग और बलिदान का पर्याय है और विश्व के लोगों के सामने अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित होने का उदाहरण। यह समर्पण म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के लिए अथक संघर्ष करने वाली समाजप्रेमी आंग सान सू की का है,जो आज सिर्फ म्यांमार में ही नहीं विश्व में चर्चित हैं। उन्हें यह संघर्ष अपने पिता से विरासत में मिला।
सू की ने घृणा का जवाब प्रेम से और गोली का जवाब बोली से देकर सैनिक शासकों को इस स्थिति में ला दिया कि वे इस जीवट महिला के जज्बे के आगे झुकने को विवश हो गए। सन 1980 के दशक से सू की ने लोकतंत्र बहाली हेतु संघर्ष की कमान थाम रखी है। आज दुनियाभर के देशों के लिए वे शांतिपूर्ण संघर्ष और लोकतंत्र समर्थकों की प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं।
लेखक शशिधर खान ने सू की के संघर्षपूर्ण जीवन को केन्द्र में रखकर ह्णंसंघर्ष की विरासत औंग सान सू कीह्ण पुस्तक को लिखा है। उन्होंेने सू की के जीवन के रोचक पहलू को पुस्तक की भूमिका में उद्धृत करते हुए लिखा है कि उनके पिता सान सू म्यांमार में राष्ट्रपिता माने जाते हैं, जिन्होंने अपने देश की आजादी एक सैनिक के रूप में लड़ी और अपने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। बचपन से ही भारत में रहकर पली-बढ़ी सू की भारतीय संस्कार और संस्कृति में रची-बसी हैं। भारत के राजनैतिक और आध्यात्मिक विचारों ने उनके मन-मस्तिष्क पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि संघर्ष के दिनों में अपने देश,समाज और परिवार से एकदम कट चुकीं सू की ने ह्यरामायणह्ण और ह्यमहाभारतह्ण जैसे पौराणिक ग्रन्थों में डूबकर कठिन चुनौती का सामना करने की शक्ति अर्जित की। उनकी विश्व प्रसिद्ध किताब ह्यफ्रीडम फ्रॉम फियरह्ण की भूमिका में उनके पति ने लिखा कि नजरबंदी के दौरान उन्होंने मुझे पत्र लिखकर ह्यरामायण ह्ण और ह्यमहाभारतह्ण के थाइलैण्ड भाषावाले संस्करण की प्रतियां भेजने को कहा था।
एक लम्बे समय तक घर में नजरबंद और जेल में रहने वाली सू की का राजनैतिक जीवन वर्ष 1988 में शुरू हुआ। लेखक ने ह्यसू की का राजनैतिक करियर और जनान्दोलनह्ण खंड में उनके जीवन के अनेक पहलुओं को क्रमश: संकलित किया है। वर्ष 1988 के संक्रमण काल में सैनिक शासन ने म्यांमार में सभी मानवीय भावनाओं को तार-तार कर दिया था। हर आन्दोलनकारी को गोली मारने के आदेश दे दिये थे। देश में व्यापक अंसतोष और बुनियादी नागरिक सुविधाओं से वंचित गरीबी व बेरोजगारी से त्राहि-त्राहि कर रही भूखी जनता के पास सड़कों पर उतरे बिना कोई चारा नहीं था। सैनिक शासन ने म्यांमार के लोगों की मांग पर विचार करने के आश्वासन के बजाए विरोध में उठी आवाज को दबाने में सैनिकों ने इस तरह से पूरी ताकत झोंेक दी ,मानो किसी शत्रु देश के हमलावर बलवा मचाने घुस आये हों। उस समय जो भी विरोध करता हुआ पाया जाता उसे सैनिक गोली से मार रहे थे। सैनिक शासन ने इस आन्दोलन में मानवीयता की सभी हदंे पार कर दी और वह दिन आ गया, जब सू की ने अपने शैक्षणिक भविष्य और पारिवारिक जीवन को तिलाजंलि देकर म्यांमार के लोगों को एक नई दिशा देने की कमान थाम ली। इसी कड़ी में सू की ने 8अगस्त,1988 को राजधानी रंगून में सैनिक शासन के खिलाफ विशाल प्रदर्शन किया। जिसमें देश का प्रत्येक तबका शामिल हुआ। लेकिन सैनिक शासन ने इस प्रदर्शन में शामिल लोगों पर गोली चलाने के आदेश दे दिये । छात्रों को उनके छात्रावास से पकड़-पकड़ कर गोलियों का शिकार बनाया जा रहा था। लेकिन सू की फिर भी आन्दोलन से पीछे नहीं हटी।
तमाम विपत्तियों को सहते हुए उनका एक मात्र लक्ष्य लोकतंत्र की बहाली तक शांतिपूर्ण आन्दोलन जारी रखना था। अपने जीवन के पूरे 21 वर्ष नजरबंदी में काट दिये। इस घटना के बाद से अब तक वह अपने देशवासियों के हित और लोकतंत्र की बहाली के लिए साधना कर रही हैं। उनकी मां ने उनको भगवान बुद्ध के धम्म और भारतीय संस्कृति से शिक्षा लेने को कहा था, जो उनको आज भी याद है –
जो तोको कांटा बुवै,ताहि बुवै तू फूल।
तोको फूल को फूल है,बाको है तिरसूल।।
कुल मिलाकर यह पुस्तक सभी वर्ग के लिए पठनीय है। क्योंकि यह ऐसे व्यक्तित्व से परिचित कराती है,जो देश,समाज के प्रतिसमर्पण व प्रेम की जीती-जागती निशानी है।
पुस्तक का नाम – संघर्ष की विरासत
औंग सान सू की
लेखक – शशिधर खान
प्रकाशक – सत्साहित्य प्रकाशन 205-बी चावड़ी बाजार,
दिल्ली -110006
मूल्य -200 रु., पृष्ठ – 150
चाणक्य जिसने जीवन भर जो कहा,वह इतिहास बन गया। उनके कथन नजीर बन गए। वे कथन उस समय में जितने प्रासंगिक थे, उतने आज भी हैं। एक-एक कथन कठोर अनुभवों की कसौटी पर कसा खरे सोने जैसा है। चाणक्य का जीवन कठोर धरातल पर अनेक विसंगतियों से जूझता हुआ आगे बढ़ता है। कुछ लोग सोच सकते हैं कि उनका जीवन-दर्शन प्रतिशोध लेने की प्रेरणा देता है, लेकिन चाणक्य का प्रतिशोध निजी प्रतिशोध न होकर सार्वजनिक कल्याण के लिए था। स. महेश शर्मा ने चाणक्य के जीवन और उनकी कही बातों को केन्द्र में रखकर एक पुस्तक लिखी है,जिसका नाम ह्यमैं चाणक्य बोल रहा हूंह्ण है।
लेखक ने ह्यचाणक्य:संक्षिप्त परिचयह्ण में लिखा है कि चाणक्य अपनी मां से असीम प्रेम करते थे। एक घटना का जिक्र करते हुए लेखक ने लिखा कि एक दिन एक ज्योतिषी चाणक्य के घर आ गए और मां ने अपने पुत्र के भविष्य के प्रति आश्वस्त होने के लिए जन्म कुण्डली दिखाई। जैसे ही ज्योतिषी ने चाणक्य की जन्म कुण्डली देखी उन्होंने उनकी मां से कहा कि आपका पुत्र एक यशस्वी चकवर्ती सम्राट बनेगा और मेरी कही बात पर अगर आप को विश्वास न हो तो उसके एक दांत को देखना,जिसपर नागराज का चिन्ह अंकित होगा। यह सुनकर मां चिन्तित हो गई। उनको लगा कि अगर मेरा पुत्र सम्राट बन जाएगा तो वह मेरे पास नही रह पायेगा और वह मुझसे दूर हो जायेगा। मन ही मन वह चाणक्य के वियोग में रुदन करने लगी।
वियोग में बैठी मां को जब चाणक्य ने देखा तो मां से चिन्तित होने का कारण पूछा । मां ने पूरे घटनाक्रम को बता दिया पर चाणक्य ने अपने दांत की घटना को जैसे ही सुना तत्काल अपने दांत को एक पत्थर से तोड़कर अपनी मां के चरणों में समर्पित कर दिया और कहा कि मां मंैने तो अपना दांत तोड़ दिया, जिस पर नागराज का चिन्ह अंकित था। अब तो सम्राट बनने का प्रश्न ही नहीं रहा। मुझे तो मेरी मां का वात्सल्य चाहिए। नागराज के चिन्ह वाला दांत टूट जाने से चाणक्य चक्रवर्ती सम्राट तो नहीं बन सकें,पर अपनी मां के आशीर्वाद से चक्रवर्ती सम्राट निर्माता अवश्य ही बन गए।
चाणक्य को एक महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री के रूप में जाना जाता है। उनका नीतिशास्त्र ह्यचाणक्य नीतिह्णआज भी प्रासंगिक है । उनके कहे वचन लोगों को भूत,भविष्य और वर्तमान से अवगत कराते हैं । उन्होंने जीवन के हर पहलू पर समाज को ज्ञान दिया है।
पुस्तक के ह्यअपमान ह्णखंड में चाणक्य ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात को कहा कि अपमान मृत्यु से भी अधिक पीड़ादायक और अहितकारी है। अपनी मर्यादा के विपरीत कर्म करके ये दो प्रकार के लोग संसार में अपमान के भागी बनते हैं- एक कर्महीन,गृहस्थ और सांसारिक मोहमाया में फंसे संन्याशी। वहीं ह्यचरित्रह्ण अध्याय में समाज को दिशा दिखाते हुए कहा है कि चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता रहता है साथ ही धन के नष्ट होने पर भी चरित्र सुरक्षित रहता है,लेकिन चरित्र नष्ट होने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है।
चाणक्य जो जन्म से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। विद्या व तर्क के क्षेत्र में उनकी कोई बराबरी नहीं करता था। ह्यविद्याह्ण पर उन्होंने कहा है कि विद्याविहीन मनुष्य कहीं भी मान-सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता। जिस प्रकार कामधेनु से युक्त व्यक्ति भूखा नहीं मर सकता,उसी प्रकार विद्या से पूर्ण व्यक्ति संसार में कहीं भी जाये उसकी पूजा ही होती है। विद्या के समान बहुमूल्य वस्तु इस दुनिया में कोई दूसरी नहीं है। चाणक्य ने जीवन के प्रत्येक पहलू को जिया और उस अनुभव को ह्यचाणक्य नीतिह्ण के माध्यम से समाज में साझा किया। यह पुस्तक हम सभी को जीवन पथ पर कैसे चलना चाहिए उसकी प्रेरणा तो देती ही है साथ ही क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए वह भी बताती है। चाणक्य के संस्मरण उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता और चातुर्य को परिलक्षित करते हैं। यह अनिवार्यत: पठनीय और अनुकरणीय पुस्तक है।
पुस्तक का नाम -मैं चाणक्य बोल रहा हूं
लेखक – स. महेश शर्मा
प्रकाशक -प्रतिभा प्रतिष्ठान,1661 दखनीराय स्ट्रीट,नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली-02
मूल्य -150 ़रु., पृष्ठ – 128
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