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'पूर्वोत्तर के लिए फौलादी और कर्मवीर नेतृत्व चाहिए'

by
Feb 22, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Feb 2014 14:15:47

पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश के 19 वर्षीय छात्र नीदो तानिया की जघन्य हत्या से पूरे भारत में एक आक्रोश और संताप की लहर उठी। पूर्वोत्तर भारत में गुस्से का उबाल उठना स्वाभाविक ही था। इस स्थिति में भाजपा सांसद और पूर्वोत्तर भारत के लिए वर्षों से काम कर रहे श्री तरुण विजय ने अरुणाचल के छात्र नीतोन के साथ दिल्ली के पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी से भेंट कर सबसे पहले मांग की है कि जिन पुलिस वालों ने नीदो के साथ हमदर्दी दिखाने और उसका उपचार कराने की बजाए आरोपी दुकानदार को 10 हजार रुपये दिलवा दिए, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। अब केन्द्र सरकार ने भी इसे स्वीकार किया है। श्री तरुण विजय लाजपत नगर में हुए प्रदर्शन से लेकर जंतर-मंतर के प्रदर्शन और फिर इस विषय को संसद में उठाने वाले पहले सांसद हैं। प्रस्तुत हैं इस संदर्भ में उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
अब तक पूर्वोत्तर के लोगों की उपेक्षा क्यों होती रही है?
० सबसे बड़ा कारण जानकारी का अभाव और हमारी दृष्टि में संकीर्णता है। पूर्वोत्तर के लोगों के नाम तक हम सही नहीं बोल सकते, नीदो तानिया का नाम प्राय: हर चैनल और अखबार में गलत लिखा गया। कोई बता सकता है अरुणाचल और नागालैंड के हमारे कारगिल के वीरों के बारे में? किसको नागालैण्ड से महावीर चक्र मिला? रानी गाइदिन्ल्यू का जन्मदिन कितने शेष भारत के प्रदेशों में मनाया जाता है? अवकाश के दिन हम या तो शिमला, मसूरी की बात करेंगे या नेपाल और सिंगापुर की। विश्व के सबसे सुंदर क्षेत्र उत्तर पूर्व में हंै। मणिपुर की होली के सामने बरसाने और वृंदावन की होली फीकी पड़ जाएगी, पर कितने लोग इसके बारे में जानते या समझते हैं और होली पर इम्फाल जाना चाहेंेगे?
अभी नीदो तानिया के द:ुखद अवसान पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर सर्वपंथ प्रार्थना सभा हुई। लगभग सभी कांग्रेसी वहां थे। उस सभा के संयोजक कांग्रेसी सांसद श्री संजय तकाम ने कहा कि हम उस प्रदेश से हैं जहां की मिसहिमी जाति की रुक्मिणी से द्वारका के कृष्ण ने आकर विवाह किया था। हमारा आपका संबंध नया नहीं, अति प्राचीन है। फिर भी आप हमें जानते नहीं, हमारी शक्ल पहचानते नहीं।
दिल्ली के शासकों ने भी उत्तर पूर्वांचल के प्रति उपेक्षा बरती। गुवाहाटी के अलावा वहां की किसी राजधानी को दिल्ली, मुंबई, कोलकाता से जोड़ने वाली एक भी हवाई सेवा नहीं है। कहीं भी अंतरराष्ट्रीय स्तर का ओलंपिक खेल खेलने वाला स्टेडियम नहीं है। डिब्रूगढ़ के आगे कहीं रेलगाड़ी नहीं जाती। आजादी के 67 साल बाद भी उत्तर-पूर्व रेल विहीन है। सीमा क्षेत्रों में सड़कें नहीं बनी हैं। चर्च पोषित आतंकवाद और विद्रोही संगठन सेकुलर दिल्ली का संरक्षण प्राप्त करते हैं। नीदो तानिया की मां श्रीमती मारिया नीदो ने मुझसे कहा कि अगर अरुणाचल में अच्छे इंस्टीट्यूट होते तो वे क्यों नीदो को बाहर पढ़ने भेजते? नीदो तो ईसाई परिवार में जन्मा पर उसकी 11 साल तक शिक्षा रामकृष्ण मिशन के स्कूल में हुई। उसने बपतिस्मा कराने से भी मना कर दिया था,वह बोलता था-ह्यमम्मी मैं ऐसे ही ठीक हूं।ह्ण उसके लिए दिल्ली सबसे ज्यादा सुरक्षित होनी चाहिए थी, पर दिल्ली वालों के अहंकार और अज्ञान ने उसको मार दिया।
परम पूज्य श्रीगुरुजी इस दुर्बलता को जानते थे, इसलिए उन्होंने 50 साल पहले ही पूर्वोत्तर के लिए विशेष संघ नीति बनाई थी। उसका ही परिणाम है कि लाखों पूर्वोत्तरवासी भारत राष्ट्र के साथ एकात्म महसूस करते हैं और उनमें से हजारों, देश के विभिन्न भागों में परिवारों के साथ रहते हैं। जिस कारण शेष भारत में भी अपने श्रेष्ठ पूर्वोत्तरवासियों के प्रति आत्मीयता का भाव पैदा हुआ है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, विवेकानंद केन्द्र जैसे संगठनों ने वास्तव में उत्तर-पूर्व और शेष भारत के बीच सेतुबंध बांधा और विद्रोह एवं अभारतीय विचारों को बहुत सीमा तक रोका। यही पद्धति आगे ले जाने और पुष्ट करने की आवश्यकता है।
पूर्वोत्तर के लोगों का विश्वास जीतने के लिए सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर किस तरह के प्रयास होने चाहिए?
० परम पूज्य श्रीगुरु जी ने पूर्वोत्तर के लिए एक ही सूत्र दिया था-'तू-मैं एक रक्त'। पूर्वांचल हो या दक्षिणांचल, हम सब भारतीय एक रक्त, एक जाति, एक नस्ल, एक पूर्वजों की संतान और एक बहुआयामी, बहुरंगी संस्कृति को मानने वाले हैं। इस भाव को जगाने के लिए हमारी पाठ्य-पुस्तकों में पूर्वोत्तर के बारे में विशेष पाठ शामिल किया जाना चाहिए। उनके रंग, नैन-नक्श, संस्कार, जीवनपद्धति, इस बारे में शेष भारत को विस्तार से जानकारी दी जानी चाहिए। पूर्वोत्तर भारत में पर्यटन को बचाने के लिए विशेष सुविधाएं, विशेष रियायती दरों पर टिकट, सस्ती दरों पर सुविधाएं दी जाएं। पूर्वात्तर भारत के युवाओं के साथ तादात्म्य और आत्मीयता बढ़ाने के लिए केन्द्रीय युवा मंत्रालय को विद्यार्थी परिषद की ह्यमाई इंडिया माई होमह्ण योजना अंगीकार कर लेनी चाहिए। वहां के छात्रों को बड़ी संख्या में शेष भारत के परिवारों में रहने के अनुभव की योजना वृहद् स्तर पर चलनी चाहिए। इसके लिए यह भी जरूरी है कि पूर्वोत्तर में व्यापक स्तर पर आधारभूत ढांचागत सुविधाएं यानी-बिजली, पानी, सड़क और अंतरराष्ट्रीय स्तर के हवाई अड्डे बनें तथा भारत के महानगरों के साथ सीधे उनको जोड़ा जाए। इन योजनाओं की सफलता वहां पनप रहे आतंकवाद और बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों पर प्रभावी नियंत्रण की मांग करती है। एक फौलादी और कर्मवीर नेतृत्व ही यह सब कर सकता है।

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