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आखिर नेपाल में दो महीने से चल रहा राजनीतिक गतिरोध समाप्त हो गया। नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष सुशील कोइराला माओवादी दल सीपीएन-यूएममल के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए। 74 वर्ष के कोइराला प्रधानमंत्री पद के लिए एक मात्र प्रत्याशी थे। 601 सदस्यीय संविधान सभा में श्री कोइराला को 405 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल नेपाल में हुए आम चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। तभी से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई थी। माना जा रहा है कि माओवादी दल सीपीएन-यूएममल ने कोइराला का समर्थन इसलिए किया है कि अगले वर्ष वे राष्ट्रपति का चुनाव कराने के लिए सहमत हो गए हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री कोइराला ने संसद में कहा है कि एक वर्ष के अन्दर नए संविधान का गठन कर लिया जाएगा। इसके लिए उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से सहयोग देने की अपील भी की है। श्री कोइराला ने 1955 में नेपाली कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। वे पूर्व प्रधानमंत्री श्री गिरिजा प्रसाद कोइराला के चचेरे भाई हैं और सादा जीवन के पक्षधर रहे हैं। 1960 में राजनीतिक निर्वासन के बाद वे 16 वर्ष तक भारत में रह चुके हैं। नेपाल की राजनीति को जानने और समझने वाले कह रहे हैं कि सुशील कोइराला के लिए सरकार चलाना आसान नहीं है। अब उनकी अग्निपरीक्षा का दौर शुरू हुआ है।
ब्रिटेन के एक स्कूल में स्कर्ट पर प्रतिबंध
खुले विचारों को लगभग पूरी दुनिया में पहुंचाने वाले ब्रिटेन भी अब उन विचारों से तंग आने लगा है। इसका उदाहरण है नॉरफॉक के डिस हाई स्कूल की प्राचार्या जेन हंट का वह फरमान,जिसमें कहा गया है कि लड़कियां मिनी स्कर्ट की जगह पैंट पहनकर स्कूल आएं। प्राचार्या का कहना है कि कुछ लड़कियां बहुत ही अशिष्ट स्कर्ट पहनकर स्कूल आने लगी हैं। उनका यह भी कहना है कि हमारे स्कूल में अधिकतर लड़कियां पैंट पहनकर आती हैं,लेकिन कुछ लड़कियां बहुत ही तंग कपड़ों में आ रही हैं। इसलिए स्कर्ट पर प्रतिबंध लगाया गया है। स्कूल के इस निर्णय का कुछ अभिभावकों ने समर्थन किया है,तो कुछ ने विरोध भी किया है। जेन हंट ने यह भी कहा है कि जो अभिभावक इस निर्णय का समर्थन करेंगे उन्हें वित्तीय मदद भी दी जाएगी। स्कूल ने यह भी कहा है कि ग्यारह वर्ष तक के बच्चे ह्यमेकअपह्ण करके भी नहीं आएंगे। ब्रिटेन के इस स्कूल के इस निर्णय से उन भारतीयों को सीख लेनी चाहिए,जो अपने बच्चों को आधुनिकता के नाम पर तंग कपड़े पहनाकर गौरवान्वित होते हैं।
बढ़ता ही जा रहा है इटली का 'दुस्साहस'
भारत की दब्बू विदेश नीति की वजह से हर कोई उसे आंख दिखाने में लगा है। पिछले ही दिनों भारत ने साफ कर दिया है कि केरल में मछुआरों के हत्यारे इटली के दोनों नौसैनिकों (मैसीमिलेनो लातेरे और सल्वातोरे गिरोन) को यदि मौत की सजा हो भी जाए फिर भी उन्हें यह सजा नहीं दी जाएगी। इसके बावजूद इटली इस मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र पहुंच गया है। हालांकि संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव बान की मून ने इस संदर्भ में कहा है कि यह मामला भारत और इटली के बीच द्विपक्षीय है और दोनों मिलकर ही इसका निपटारा करें। इससे पहले इटली के प्रधानमंत्री एनरिको लेता ने भी धमकी दी थी कि हमारे नौसैनिकों पर सुआ (सप्रेशन ऑफ अनलॉफुल एक्ट अगेंस्ट सेफ्टी ऑफ मरीटाइम नेवीगेशन एंड फिक्सड प्लेटफॉर्म ऑन कांटीनेन्टल शेल्फ एक्ट) के अन्तर्गत आरोप लगाने पर इटली के साथ-साथ यूरोपीय संघ से भी भारत के सम्बंध खराब होंगे। इधर नाटो ने भी इस मामले पर भारत को चेतावनी दी है। नाटो प्रमुख एंडर्स फॉग रेसमुसन ने कहा है कि इस सन्दर्भ में उचित प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा है कि मैं व्यक्तिगत रूप से इटली के दोनों नौसैनिकों को लेकर चिन्तित हंू। दरअसल, अपने इन नौसैनिकों को लेकर इटली बेवजह हाय-तौबा मचा रहा है। यही कारण है कि यूरोपीय संघ के साथ नाटो भी इस मामले में कूद पड़ा है। हकीकत यह है कि इटली अपने इन सैनिकों को ह्यगुनाहगारह्ण ही नहीं मान रहा है,जबकि इन दोनों ने 15 फरवरी, 2012 को केरल के समुद्र तट पर दो मछुआरों की गोली मार कर हत्या कर दी थी। अभी ये दोनों भारत में ही हैं। कुछ समय पहले ये दोनों जमानत पर इटली गए थे। इटली की सरकार के इशारे पर ये भारत आने को तैयार नहीं थे। यह भारत सरकार की विदेश नीति की बड़ी विफलता थी। सर्वोच्च न्यायालय के दबाव पर भारत सरकार इन्हें भारत लाने में सफल रही है। प्रस्तुति : अरुण कुमार सिंह
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