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हल्ला बोलने से चले मगररपट में नहीं लिया कोई भी नाम

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Feb 15, 2014, 12:00 am IST
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दिंनाक: 15 Feb 2014 14:39:32

-विवेक शुक्ला-

अरविंद केजरीवाल खबरों में रहने में माहिर हैं। उन्होंने गैस मूल्य निर्धारण में रिलायंस उद्योग समूह के अध्यक्ष मुकेशअंबानी, पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली देवड़ा प्राथमिकी दर्ज कराने की हवा तो उड़ाई, प्राथमिकी भी दर्ज हुई, लेकिन नामजद किसी को नहीं किया गया। केंद्र सरकार में पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. एच. ताहिलियानी, जानी मानी वकील कामिनी जायसवाल और पूर्व केंद्रीय सचिव ई. ए. एस. सरमा की संयुक्त शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्णय दिल्ली सरकार ने लिया। इस तरह का आदेश देकर भारत की राजनीति एकअनूठा पन्ना जुड़ गया है। एक प्रदेश सरकार केंद्र सरकार के किसी निर्णय के खिलाफ तो जा सकती है, लेकिन उस पर आपराधिक मामला दर्ज हो, यह पहले कभी नहीं सुना है।
यह समझने की जरूरत है कि तेल निकालने का काम कुएं से बाल्टी से पानी निकालने जैसा नहीं है। इसकी प्रक्रिया जटिल होती है और इसलिए कीमत निर्धारण की प्रक्रिया भी आसान नहीं होती, लेकिन यदि इस जटिलता को पारदर्शी रखा जाता, तो संदेह का वह माहौल नहीं बनता, जो इस अभी बना हुआ है। हैरानी की बात है कि केंद्र सरकार ने एक अप्रामाणिक सर्वेक्षण के आधार पर जून 2013 में यह तय कर लिया कि अप्रैल 2014 से उत्पादकों के लिए गैस की कीमत क्या रहेगी। ये फैसला कई सवाल खड़े करता है। पहला, जब उत्पादन क्षेत्र, उत्पादक और उपभोक्ता सभी भारतीय हैं, तब कीमतें डॉलर में तय करने का क्या मतलब ? दूसरा, जिस चीज के दाम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बदलते रहे हैं, उसके लिए साल भर पहले से मूल्य निर्धारण कहां तक उचित है? तीसरा, क्यों गैस उत्पादन में प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को खड़े करने पर विचार नहीं हुआ , जिससे इस क्षेत्र में निवेश बढ़ता और कीमतों पर नियंत्रण भी रहता?
पेट्रोलियम और गैस क्षेत्र के जानकार राजीव कुमार सवाल पूछते हैं कि, मुकेश अंबानी की कंपनी आरआईएल को लाखों करोड़ का अतिरिक्त फायदा पहुंचाने के लिए कीमत क्यों बढ़ाई गई? यह बताने की जरूरत नहीं है कि प्राकृतिक गैस देश का संसाधन है। जनता के हित के लिए इसका इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन, अंबानी के फायदे के लिए इसके दाम लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। हाल में, इसकी कीमत 4़2 डॉलर प्रति एमएमबीयूटी से बढ़ाकर 84 डॉलर प्रति एमएमबीयूटी कर दी गई।
अभी तो आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हुआ है। जांच के बाद ही पता चलेगा कि कौन सच्चा और कौन झूठा, पर ये साफ है कि गैस के दामों में एक अप्रैल से होने वाली बढ़ोतरी के दूरगामी असर होंगे, बिजली की कीमतें, सीएनजी और पीएनजी का बिल, टैक्सी,ऑटो और बस के किराए बढ़ेंगे।
बहरहाल, गैस मूल्य निर्धारण मामले में केजरीवाल के आरोपों को पेट्रोलियम मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने खारिज कर दिया। मोइली ने कहा, उनकी अज्ञानता पर दया करनी चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए सरकार कैसे चलती है, कैसे काम होता है, मैंने यह सुनिश्चित करने में विशेष रुचि ली कि सीएनजी और पीएनजी की कीमतें घटें। आपको ये पता होना चाहिए।
दरअसल सुर्खियों में रहना केजरीवाल की शैली बन गई है। अपनी बात को हर सूरत में मनवाने की जिद के कारण वे खबरों में बने रहते हैं, पर उन्हें समझ आना चाहिए कि गैस की कीमतें तय करने की व्यवस्थाएं होती हैं, विशेषज्ञों की सलाह जरूरी होती है।
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह कि देश में शीघ्र ही नयी केंद्र सरकार का गठन होगा। फिर इस प्रकार का दूरगामी फैसला लेने का क्या अर्थ? नयी सरकार पर दबाव होगा कि वह पुरानी सरकार के फैसले को चाहे-अनचाहे माने और न माने तो उसे बदलने के लिए फिर जटिल प्रक्रिया से गुजरे। केजरीवाल के तमाम आरोपों के बीच जानकारों का कहना है कि गैस की कीमतों के बारे में अभी तक देश को सारे तथ्य मालूम नहीं हैं।
यहां अंतरराष्ट्रीय बाजारों के आधार पर पेट्रोलियम और गैस की कीमतों में जब चाहे घट बढ़ हो जाती है लोगों को यह समझ में नहीं आता कि जब देश में ही गैस का उत्पादन बढ़ता चला जा रहा है तब यहां अन्य देशों की तुलना में कीमतें इतनी अधिक क्यों हैं यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजर डालें तो वर्तमान में संयुक्त अरब अमीरात में गैस की जो कीमतें हैं भारत में वे उससे 6 गुना अधिक हैं। रूस एवं अमरीका की तुलना में भी भारत में कीमतें तिगुने के करीब हैं। दूसरी ओर भारत में गैस के उत्पादन के लिये नये-नये क्षेत्र खोले जा रहे हैं और उनसे करोड़ों टन गैस का उत्पादन हो रहा है। सवाल यह है कि आज जब भारत में गैस उत्पादन के साथ शोधन की सुविधाएं अन्य देशों की तुलना में अधिक हैं तो यहां कीमतें निरंतर क्यों बढ़ती जा रही हैं। बहरहाल, एक बात तो साफ है कि गैस और पेट्रोलियम सेक्टर में खनन से लेकर मूल्य निर्धारण जैसे मसलों पर पारदर्शी नीति बनाने की जरूरत है। याद रखना चाहिए कि ये ऐसा क्षेत्र है,जिसका हर हिन्दुस्थानी की जिंदगी से नाता है।

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