कश्मीर समस्या दिल्ली की देन है
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कश्मीर समस्या दिल्ली की देन है

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Jan 11, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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चौतरफा घिरी आआपा

दिंनाक: 11 Jan 2014 12:52:17

संवेदनशील कश्मीर मसले पर जनमत संग्रह कराने का राग छेड़कर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रशांत भूषण एक बार फिर से विवादों  में घिर गए हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री  व ह्यआअपाह्ण  के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने उनकी राय से किनारा करते हुए कहा कि यह प्रशांत भूषण की निजी राय हो सकती है। भाजपा समेत दूसरे विपक्षी दलों ने भी उनके इस बयान की कड़ी आलोचना कर डाली।
प्रशांत भूषण ने 5 जनवरी को टीवी  पर एक न्यूज चैनल को  दिए साक्षात्कार में  कहा था कि यदि ह्यआआपाह्ण की केन्द्र में सरकार बनती है तो कश्मीर में जनमत संग्रह कराया जा सकता है। यह इस बारे में होगा कि क्या वहां की जनता सेना की तैनाती और सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून चाहती है या नहीं ? उन्होंने कहा कि जनता से पूछा जाना चाहिए कि क्या कश्मीर की आंतरिक  सुरक्षा सेना संभाले?  जिस फैसले को जनता का समर्थन न मिले, वह अलोकतांत्रिक है। प्रशांत भूषण ने आगे कहा कि यदि जनता को लगता है कि सेना उनके मानवाधिकारों का हनन कर रही है तो सेना को वहां से हटा लेना चाहिए। उल्लेखनीय है कि प्रशांत भूषण ने सितंबर, 2011 में भी कहा था कि यदि कश्मीर में जनमत संग्रह से वहां की जनता भारत से अलग होना चाहती है तो उसकी अनुमति देनी चाहिए। हालांकि हाल ही में दिए बयान में उन्होंने भारत से अलग होने की बात को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि हमें संविधान की परिधि में रहकर इसका हल निकालना होगा। प्रशांत भूषण नये बयान से पार्टी की किरकिरी होती देख अरविंद केजरीवाल ने जनमत संग्रह की बात को न सिर्फ खारिज किया, बल्कि साफ कर दिया कि लोगों की भावना के अनुरूप  कार्य होना  चाहिए वरना लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है। इससे प्रशांत भूषण कुछ नरम तो पड़े, लेकिन इस बात पर अड़े रहे कि सेना की तैनाती पर जनमत संग्रह की मांग को विलय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा  कि राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय लोकप्रिय निर्णय और जनमत संग्रह से तय नहीं होते हैं। यह खेद की बात है कि राष्ट्रीय स्तरीय आकांक्षाएं पालने वाली आम आदमी पार्टी ऐसा रुख अपना रही है जो भारत के हितों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और अलगाववादी भी घाटी में सेना को हटाने की बात करते हैं। उन्हें आगाह करते श्री जेटली ने आगे कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के इस मुद्दे पर प्रशांत भूषण अपनी स्थिति दुरुस्त करें वरना ऊपर से नीचे आने में उन्हें समय नहीं लगेगा।  उन्होंने कहा कि पहले भी प्रशांत भूषण ने कहा था कि कश्मीर की जनता भारत में रहना चाहती है या नहीं उस पर भी जनमत संग्रह होना चाहिए। भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने भी पूछा कि कश्मीर पर सवाल उठाकर आप पार्टी के नेता क्या हासिल करना चाहते हैं?

बयान के विरोध में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन

कश्मीर पर प्रशांत भूषण के विवादास्पद बयान के विरोध में बजरंग दल दिल्ली प्रांत के कार्यकर्ताओं ने 8 जनवरी को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर उनका पुतला भी  फूंका। उनकी गिरफ्तार की मांग करते हुए राष्ट्रपति को एक मांग पत्र भी सौंपा। बजरंग दल दिल्ली प्रांत के संयोजक शिव कुमार ने प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व करते हुए   कहा कि  जम्मू-कश्मीर भारत का मुकुट है। इस पर जनमत संग्रह की बात करने वाला राष्ट्रद्रोही से कम नहीं है। विश्व हिन्दू परिषद के मीडिया प्रमुख विनोद बंसल ने बताया कि अरविंद केजरीवाल को भी एक पत्र लिखकर अलगाववादी शक्तियों से दूर रहने का निवेदन करने  के साथ ही प्रशांत भूषण को आप पार्टी से निष्कासित करने की मांग की गई है।   प्रतिनिधि

टिमरनी में भाऊराव भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ़भा़ सह सम्पर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार के अनुसार जम्मू-कश्मीर के मामले में धारा 370 को लेकर एक राजनीतिक धोखाधड़ी हुई है और उसके बारे में जानबूझकर अनेक प्रकार के भ्रम फैलाए गए हैं। गत दिनों वे टिमरनी में आयोजित श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला के 22 वें वार्षिक आयोजन के दूसरे दिन – जम्मू कश्मीर : तथ्य : समस्या : समाधान – विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां देते हुए बताया कि धारा 370 जम्मू-कश्मीर को किसी भी प्रकार से विशेष राज्य का दर्जा नही देती और न ही उसमें स्वायत्तता की कोई व्यवस्था है। जम्मू-कश्मीर भी भारत के अन्य राज्यों की तरह एक सामान्य राज्य है लेकिन धारा 370 की आड़ में फैलाए गए भ्रम के कारण वास्तविक तथ्य ओझल हो गए। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर देश की एकता, अखण्डता और सुरक्षा से जुड़ा प्रश्न है और इसे अतिशीघ्र हल करना आवश्यक है।
श्री अरुण कुमार ने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर एक जानबूझकर उलझाया गया प्रश्न है। यह समस्या नहीं है। यह राष्ट्रवाद बनाम अलगाववाद के बीच का प्रश्न है। तथ्यों और जानकारियों के अभाव में देश के अन्दर जम्मू-कश्मीर को लेकर अनेक भ्रांतिपूर्ण धारणाएं और कहानियां चल पड़ी हैं।  इस सम्बंध में जो पुस्तकें लिखी गईं उनका आधार ब्रिटिश लेखक ही थे जिन्होंने अपने देश के हितों को ध्यान में रख कर पुस्तकें लिखी थीं। विभाजन के बाद ब्रिटेन जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने के पक्ष मेंं था परंतु विलय संधि के कारण उसकी योजना धरी की धरी रह गई। यही कारण है कि ब्रिटेन नें उसे विवादित बनाने की कुत्सित चाल चली।
उन्हांेने कहा कि जम्मू और लद्दाख का कुल क्षेत्र राज्य का 85 प्रतिशत है और कश्मीर घाटी का क्षेत्र केवल 15 प्रतिशत ही है जहां के सुन्नी मुसलमान समस्या की जड़ में हैं। अलगाववादी  प्रदर्शन केवल कश्मीर घाटी के पांच जिलों में ही होते हंै। जम्मू और लद्दाख के क्षेत्र में अब तक एक भी अलगाववादी घटना नहीं घटी। गिलानी जैसे अलगाववादी तत्वों की इतनी हिम्मत नहीं है कि वे जम्मू में भाषण दे सकें । ऐसे तत्व केवल कश्मीर घाटी में ही सीमित हैंै। उन्हांेने कहा कि असली समस्या कश्मीर में नही,ं बल्कि दिल्ली में है। दिल्ली ने ही इसे खड़ा किया, पाला  और आगे बढ़ाया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री सुरेश पाराशर  ने की और संचालन श्री विनोद बोरसे ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में श्री हरिशंकर शर्मा ने अपने सुमधुर स्वर में मधुराष्टक का गान किया। इस अवसर पर बच्चों ने – देश  है पुकारता पुकारती मां भारती – गीत का समूहगान किया। श्री रमेश दीक्षित के आभार ज्ञापन और वंदे मातरम् के गान से कार्यक्रम का समापन हुआ।            प्रतिनिधि

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