|
सीमाओं में रह कर चल
अच्छा पहले अंदर चल
सब तन-तनकर चलने लगें
इतना भी मत झुककर चल
छूना है आकाश अगर
बांध बोरिया-बिस्तर चल
लेना है मंजिल का मजा
कुछ तो ठोकर खाकर चल
खुद को खुद का पता न हो
मत यूं कद से ऊपर चल
ठहरे लोग पड़ावों पर
रुक मत मेरे शायर चल
तेरा-मेरा सबका है
रूप ही ऐसा रब का है
कांधे पर सच, नंगे पांव
तू भी यार गजब का है
जो चर्चित वो हैं बेहतर
अब ये हाल अदब का है
तू खुद, खुद को मार न ले
इसी बात का डबका है
तू- मैं जब ह्यहमह्ण होते थे
कह ये किस्सा कब का है?
अशोक अंजुम
टिप्पणियाँ