राष्ट्र-ध्वजा को लिए हाथ में…
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रिपुदल को ललकारेंगे।
राष्ट्र-ध्वजा को लिए हाथ में
आगे बढ़ते जाएंगे।।
देश-भक्ति की पावन सुरसरि,
कण-कण में बहती जाए।
आर्य-धरा की मानव संस्कृति,
जन-जन में रमती जाए।।
सत्य-सनातन ब्रह्म चेतना,
ऊर्जस्वित अब हो जाए।
विघटन की वह विषमय विकृति,
खंड-विखण्डित हो जाए।।
आज उठा जो ज्वार युवा में,
अनुप्रेरित सबको कर दे।
जन-मन-भावन के अन्तस में,
नव आकांक्षा नित भर दे।।
सत्ता के गलियारों में से,
वांशिक वृत्ति विलोपित हो।
सिंहासन को हथियाने का,
पातक भाव तिरोहित हो।।
ह्यभारतीय बनकर रहना हैह्ण…
यही गीत हम गाएंगे।
राष्ट्र-ध्वजा को लिए हाथ में,
आगे बढ़ते जाएंगे।।
आज, अडिग उत्तंुग हिमालय,
अनल ज्वाल बरसाएगा।
दिल्ली अरु पंजाब जगेगा,
सोमनाथ करवट लेगा।
पूर्व दिशा से, असम उठेगा,
अरुणाचल हुंकारेगा।
बंग प्रांत से बिगुल बजेगा,
बौद्ध-गया फुंकारेगा।।
मध्य देश की भूमि जगे तो,
महाराष्ट्र का शिवा जगे।
ह्यजय-जय राजस्थानह्ण जगे तो,
भारत-भू से भीति भगे।
राम-कृष्ण की पुण्य-धरा पर,
भगवा-ध्वज फहराएगा।
दक्षिण से सागर की लहरें,
ह्यरामेश्वरह्ण लहराएगा।।
जन-जन जुड़कर एक्यभाव से,
नव इतिहास रचाएंगे।
राष्ट्र-ध्वजा को, लिए हाथ में,
आगे बढ़ते जाएंगे।।
भगीरथ राकेश
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