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15 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य के परम प्रतापी राजा कृष्णदेव राय का राज्य था। विजयनगर का सम्राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था। वहां चारों तरफ खुशहाली थी। राजा ने घोषणा कर रखी थी कि यदि किसी को कोई भी किसी प्रकार की समस्या हो तो कभी भी वह उनके दरबार में आ सकता है। कृष्णदेव राय बहुत बुद्धिमान राजा थे, उनके दरबार में भी बहुत से विद्वान सलाहकार व मंत्रीगण थे, जो राजा को प्रजा के कल्याण के लिए सुझाव दिया करते थे, लेकिन राजा सबसे ज्यादा विश्वास उनके सलाहाकारों में से एक ह्यतेनालीरामह्ण पर किया करते थे। तेनालीराम थे भी सबसे ज्यादा बुद्धिमान और चतुर। वह बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हंसते- हंसते कर दिया करते थे। एक बार की बात है राजा कृष्णदेव राय के राज्य में दो चोरों ने बड़ा आतंक मचाया हुआ था। वे रात को किसी के भी घर में घुस जाते और सोने-चांदी के आभूषणों को लेकर नौ-दो-ग्यारह हो जाते थे। लोग जब सुबह जागते तो पता चलता कि उनके यहां चोरी हो गई है। राज्य में लगातार बढ़ती चोरियों के कारण राजा बड़े परेशान थे। उन्होंने घोषणा की कि जो चोरों को पकड़वाएगा उसे दस हजार स्वर्ण मुद्राओं का पुरस्कार दिया जाएगा। तेनालीराम का घर नगर से बाहर तुंगभ्रदा नदी के किनारे पर था। जहां उनका बगीचा भी था, एक दिन दोनों चोरों ने तेनालीराम के घर चोरी करने की योजना बनाई। रात को दोनों चोर दबे पांव तेनालीराम के घर में जा घुसे। आहट सुनकर तेनालीराम की आंखें खुल गईं। वह समझ गए कि कुछ गड़बड़ है और आज चोरों ने उनके घर में चोरी की योजना बनाई है। उन्होंने तत्काल अपनी बुद्धि दौड़ाई और क्षण भर में ही चोरों को सबक सिखाने की तरकीब सोच ली। उन्होंने चुपके से अपनी पत्नी को जगाया और अपनी योजना समझाई। पूरी योजना बताकर वह तेज आवाज में अपनी पत्नी से बोले कि भाग्यवान नगर में बहुत चोरियां हो रही हैं। परसों मैंने कहा था कि हमारा जो सोने चांदी के आभूषणों वाला संदूक है, वह तुम बाग वाले कुएं में डाल देना। वह तुमने कुएं में डाल दिया दिया था ना? तेनालीराम की पत्नी ने भी ऊंचे स्वर में कहा कि स्वामी संदूक तो उसे मैंने परसों ही कुएं में डाल दिया था आप निश्चिंत होकर सो जाएं कोई खतरा नहीं है। यदि चोर आते भी हैं तो उन्हें घर में कुछ नहीं मिलेगा। खिड़की के पास छिपकर दोनों चोर बड़े गौर से उनकी बातें सुन रहे थे।
चोरों ने जैसे ही सुना कि आभूषण कुएं में छिपाकर रखे गए हैं तो वे बहुत खुश हुए। दोनों ने सोचा कि वे आसानी से आभूषण लेकर चंपत हो जाएंगे। दोनों चोर बगीचे में पहुंच गए। जैसे ही चोर घर से बगीचे की तरफ गए तेनालीराम ने अपने पुत्र को जगाया और कहा कि वह राजमहल जाकर चोरों के बारे में राजा को खबर कर दे। आभूषण पाने के लालच में दोनों चोर पूरी रात बाल्टी भर-भरकर कुएं से पानी निकालकर बाग में बहाते रहे। जैसे ही सुबह हुई तो तेनालीराम बगीचे में पहुंच गए। उन्हें आता देख चोर वहां से भागने लगे, लेकिन बगीचे के बाहर खड़े सैनिकों ने दोनों चोरों को दबोच लिया। तेनालीराम की बुद्धिमानी से उनके बगीचे की सिंचाई भी हो गई और चोर भी पकड़े गए। राजा को जब उनकी सुझबूझ का पता चला तो उन्होंने दस की बजाए बीस हजार स्वर्ण मुद्राएं तेनालीराम को पुरस्कार स्वरूप दी।
शिक्षा: इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि परेशानी कैसी भी हो यदि हम धैर्य और बुद्धिमत्ता से काम लें तो आसानी से परेशानी का हल निकाला जा सकता है।
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