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सजग पत्रकार के सरोकार

by
Dec 28, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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यशस्वी पत्रकार पर स्मृतिग्रंथ

दिंनाक: 28 Dec 2013 13:07:53

.

भले ही आज के दौर में पत्रकारिता जगत में बहुत से गैर पत्रकारीय प्रवृत्ति के लोग लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जिनके लिए नीति, आदर्श, सरोकार, चरित्र कोई मायने नहीं रखता। लेकिन हिन्दी पत्रकारिता की  परम्परा को गौरवमयी स्थान तक प्रतिष्ठित करने में अनेक पत्रकारों ने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उसी श्रेष्ठ परम्परा व प्रतिनिधित्व के वाहक थे महेश्वर दयालु गंगवार। अज्ञेय, मनोहर श्याम जोशी और सर्वेश सक्सेना जैसे साहित्य और पत्रकारिता के स्तंभ रहे विद्वानों को पत्रकारिता के संस्कार देने वाले गंगवार ने  सदैव मूल्य आधारित पत्रकारिता का ही पालन किया। हाल में ही उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विशेषताओं को उनके अनेक पारिवारिक सदस्यों, सहयोगियों और विद्वानों ने पुस्तककार के रूप संकलित किया है। जिसका नाम ह्यकमर्ठ पथ के आलोक पुरुष- महेश्वर दयालु गंगवार।ह्ण पुस्तक के संपादक डॉ. सुधांशु चतुर्वेदी लिखते हैं,ह्ण गंगवार जी तीन आयामों में विभक्त थे-राजनीति, पत्रकारिता तथा कुटुंब। कुटुंब उनका सम्मलित कर्म क्षेत्र था और दूसरे  क्षेत्र गौण। पुस्तक के पहले खंड में अनेक विद्वानों, पत्रकारों और परिवार के सदस्यों ने उन्हें इस पुस्तक के माध्यम से याद किया है। पुस्तक के दूसरे खंड में गंगवार द्वारा लिखे गए 9 लेख संकलित हैं।
इन संस्मरणात्मक लेखों में गुजरते हुए गंगवार के व्यक्तित्व में समाएं अनेक आयाम उजागर होते हैं। मशहूर शायर निसा फाजली ने अपने लेख में कहा है, कि ह्यदिनमान से संडे मेल तक को कलम की रोशनी में ही अपनी सांसों का हिसाब-किताब अपने शब्दों में दर्ज करते रहे। इन मनों में उनके छोटे-बड़े ख्वाब थे जो उन्होंने समाज के लिए देखे थे  ह्यवे आंसू थे, जो दूसरों के दुखों को दर्शाते थे ह्यवे संघर्ष थे, ह्यजो दूसरे के अधरों पर मुस्कुराते थेह्ण वो एक सच्चे ईमानदार पत्रकार थेह्ण। प्रख्यात आलोचक कृष्णदत्त पालीवाल उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने मुख्य धारा की पत्रकारिता की, जिसमें सामाजिक, राजनीतिक सरोकार का  स्वर प्रधान रहा।
प्रसिद्ध पत्रकार अच्युतानंद मिश्र उनके नेतृत्व व गुणों की ओर इंगित करते हुए कहते हैं, पत्रकारिता से अलग अनेक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ भी गंगवार का गहन रिश्ता था और अपनी व्यस्त पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ यह देखकर आश्चर्य होता था कि वे दिन-रात इन संगठनों के हितों के लिए चिंतित रहते थे। पुस्तक के दूसरे खंड में संकलित लेखों से गंगवार की राजनीतिक समझ और गंभीरता प्रमाणित होती है।

पुस्तक का नाम-    कर्मठ पथ के आलोक पुरुष
         महेश्वर दयालु गंगवार
लेखक         –   सुधांशु चतुर्वेदी
मूल्य          –        सौजन्य वितरण के लिए
पृष्ठ           – 168
प्रकाशक     – वेदव्यास प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
    एफ. 267, गली नं. 21,
    लक्ष्मी नगर, दिल्ली-92
दूरभाष        –    9868461348

किसी लोकतंत्र में जागरुक पत्रकारिता और सजग पत्रकारों की क्या भूमिका हो सकती है, यह बताने की जरूरत नहीं है। व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों को लक्षित करते हुए उत्तरोत्तर सकारात्मक दिशा की ओर देश समाज को सजग बनाने में पत्रकारों की सबसे बड़ी भूमिका होती है। लेकिन इसे अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कहा जाना चाहिए कि स्वाधीनता के बाद के भारतीय समाज में ऐसे पत्रकारों की संख्या निरन्तर कम ही होती गई है। अब तो स्थिति इतनी भयानक हो गई कि आए दिन पत्रकारों की निष्क्रियता, आम जनता की तो बात छोडि़ए, उनके अनैतिक कृत्यों में भी लिप्त होने की खबरें आती रहती हैं। लेकिन हमें इस बात का गर्व  होना चाहिए कि आज भी हमारे बीच ऐसे पत्रकार बचे हैं, जिन्होंने आजीवन मूल्यपरक पत्रकारिता की और सरोकार के मानक स्थापित किए। हृदय नारायण दीक्षित ऐसे ही पत्रकारों का प्रतिनिधित्व और उमाशंकर सिंह द्वारा संपादित पुस्तक ह्यहृदय नारायण दीक्षित और उनकी पत्रकारिताह्ण में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के कई आयाम उद्घाटित करते हैं। इस पुस्तक को पढ़ते हुए इस सवाल का स्पष्ट उत्तर भी मिलता है कि आखिर वो कौन से गुण हृदय नारायण दीक्षित में मौजूद हैं, जो उन्हें हमारे समय का एक सजग पत्रकार सिद्ध करता है? सामान्यत: उनकी संपूर्ण पत्रकारिता के मूल में भारतीय संस्कृति और राष्ट्र भावना के मूल ही नजर आते हैं। उनके द्वारा स्थितियों और घटनाओं का  विश्लेषण कभी एक जैसा नहीं रहा। इस बात को वह स्वयं स्वीकार करते है। पुस्तक के आरंभ ह्यअपनी बातह्ण में वह कहते हैं, ह्यभारतीय संस्कृति के उदात्त सूत्रों को ही मैंने अपनी पत्रकारिता का विषय बनाया है।ह्ण समीक्ष्यकृति के पहले खंड में अनेक विद्वानों ने हृदय नारायण दीक्षित के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इनमें उनकी अनेक छवियां उजागर होती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ. कृष्ण दत्त लिखते हैं, ह्यदीक्षित जीह्ण पूर्णकालिक सामाजिक जीवन जीते हैंह्ण। राजनीति में रहते हुए भी राजनीति न करना उनका विशिष्ट स्वभाव है।ह्ण पुस्तक के दूसरे खण्ड ह्यपत्रकारिता हृदय नारायण दीक्षितह्ण में उनकी पत्रकारीय विशेषताओं और लेखक यात्रा का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। उनके आलेखों के बीज तत्व के बारे में लेखक की यह टिप्पणी ध्यान देने योग्य है। ह्यदीक्षित के आलेखों का बीज भारतीय संस्कृति है, वे इसी बीज के वृक्ष को लहलहाते देखने के लिए लिखते हैं और फूलों की महक से विश्व को महकाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। यही वह मूल तत्व है, जो दीक्षित जी की पत्रकारिता को दूसरे पत्रकारों से अलग बनाती है। राष्ट्रवाद की अवधारणा को जिस तरह उन्होंने नई धार प्रदान की उसे हिन्दी पत्रकारिता को दी गई उनकी मूल्यवान देन कहा जाना चाहिए। लेखक द्वारा लिया गया उनका साक्षात्कार इस पुस्तक को और भी मूल्यवान कर देता है। पुस्तक से अमर ह्यपत्रकारिता के  विविध आयामह्ण खण्ड हटा भी लिया जाता तो भी इस पुस्तक में कोई कमी नहीं आती। बहरहाल, यह पुस्तक एक सजग पत्रकार के सरोकार को समझने का रास्ता मुहैया करती है।

पुस्तक का नाम    –    हृदय नारायण दीक्षित और
        उनकी पत्रकारिता
लेखक            –    डॉ. अनुभव अवस्थी
मूल्य      –    350 रु.  पृष्ठ – 187
प्रकाशक         –     संस्कृति प्रकाशन
        साकेत नगर, वाराणसी-5    

वनवासी समाज को भी मिले समान अधिकार

्रगत 22 दिसम्बर को वनवासी कल्याण आश्रम (दिल्ली) द्वारा अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के संस्थापक श्री बालासाहब देशपांडे की जन्मशती के उपलक्ष्य में उदघाटन समारोह का आयोजन रोहिणी सेक्टर- 22 में स्थित महाराजा अग्रसेन इंजीनियरिंग कालेज में किया गया। गणमान्य अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख श्री राम माधव ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतवर्ष की संस्कृति उत्सव प्रधान है। इस सांस्कृतिक विरासत को जहां शहरवासी अपनी भागदौड़ भरी जिन्दगी में भूलता जा रहा है वहीं अबोध वनवासी समाज ने ही इसे अक्षुण्ण रखा है। उन्होंने कहा कि  विभिन्न देशी-विदेशी तत्वों ने इनकी सादगी और सीधेपन का लाभ उठाकर इनका शोषण किया है। आज जरूरत है कि वनवासी और शहरवासियों के बीच की खाईं को समाप्त कर वनवासी समाज को भी विकास के साथ समान लाभ दिया जाए जिससे समावेशी और समन्वयात्मक विकास का प्रारूप सफलतापूर्वक लागू हो सके। कार्यक्रम में वनवासी  कल्याण आश्रम की अखिल भारतीय सह महिला प्रमुख श्रीमती रंजना करंदीकर ने कहा कि श्री बालासाहब देशपांडे ने जशपुर नगर के आसपास तेजी से पैर पसार रही चर्च की गतिविधियों और वहां की स्थानीय जनता में पनप रही देश विरोधी भावना पर कल्याण आश्रम की शुरुआत करके लगाम लगाई थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त एवं स्वामी विवेकानंद सार्द्घ शती समारोह समिति के अध्यक्ष राधे श्याम गुप्ता ने की। प्रमुख उद्योगपति और समाजसेवी रामकुमार बासिया मुख्य अतिथि और श्रीमती सीमा रेलन एवं श्रीमती सविता गुप्त विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहीं। समारोह में मुख्य आकर्षण का केन्द्र छत्तीसगढ़ से आये वनवासी कलाकार जिन्होंने मध्य भारत में मनाये जाने वाले ह्यकर्माह्य और ह्यसरहुलह्य जैसे त्योहारों का अनुभव करवाया वहीं कल्याण आश्रम (दिल्ली) के छात्रावास के छात्रों ने ह्यबम्बूह्ण नृत्य करके पूर्वोत्तर की संस्कृति को लोगों के सामने प्रस्तुत किया।        प्रतिनिधि

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