जैसी करनी वैसी भरनी
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जैसी करनी वैसी भरनी

by
Dec 21, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 21 Dec 2013 15:27:11

आवरण कथा 'टूट गया तिलिस्मह्य में तरुण तेजपाल और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल की करतूतों को पाठकों के सामने लाया गया है। तरुण तेजपाल जैसे लोगों का असली रूप सामने आने लगा है।
-गणेश कुमार
राजेन्द्र नगर ,पटना (बिहार)
 तेजपाल जैसे लोगों पर लगा दाग महज एक गुनाह नहीं, बल्कि विश्वास और जिम्मेदारी पर लगा बड़ा दाग है। तेजपाल को सजा मिलेगी या नहीं , यह तो समय बताएगा, लेकिन विश्वास और दायित्व के साथ जो दगा हुआ है, उसकी भरपाई कौन करेगा ?
-मनोहर मंजुल
 पिपल्या -बुजुर्ग, प़ निमाड़ (म़.प्ऱ)
 तहलका के सम्पादक ने अपनी ही सहयोगी पत्रकार लड़की के साथ एक घृणित कार्य किया है। पाञ्चजन्य ने उसके कृत्य को जनता के सामने लाकर हकीकत से रूबरू कराया है। ऐसे पत्रकार पूरी पत्रकार बिरादरी पर धब्बा हैं।
-राममोहन चन्द्रवंशी
टिमरनी, जिला-हरदा (म़.प्ऱ)
 तेजपाल अपने ही स्टिंग से घायल हो गए हंै। गोवा में तहलका की प्रबंध सम्पादक शोमा चटर्जी ने महिलाओं के यौन उत्पीड़न के विरोध में एक लम्बा-चौड़ा भाषण दिया था ,लेकिन तेजपाल को बचाने के लिए उन्होंने क्या नहीं किया।
-सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर
दिलसुखनगर, हैदराबाद (आं.प्ऱ)
 तरुण तेजपाल जैसे लोग चेहरे पर दोहरा नकाब ओढ़कर समाज में सफेदपोश बने घूमते हैं। दुनिया को शिक्षा देने वाले और दूसरों को सीख देने वाले लोग इस मामले पर चुप क्यों हैं ?
-सत्यदेव गुप्त
उत्तरकाशी (उत्तराखण्ड)
 तरुण तेजपाल ने गुनाह किया और दिखाने के लिए प्रायश्चित भी। उन्होंने अपने लिए सजा भी तय कर ली । यह कहां का इंसाफ है ? वे वामपंथी बुद्घिजीवी ,जो बड़ी-बड़ी बातें करके जनता को बेवकूफ बनाते हैं ,इस घटना पर अब तक क्यों चुप्पी साधे हुए हैं ?
-रवि शर्मा
ज्वाला नगर, रामपुर (उ.़प्ऱ)
 आज-कल समाचारपत्रों में कुछ लोग तेजपाल को क्षमा दिलाने का अभियान चला रहे हैं। अगर इसी प्रकार का घृणित कृत्य तेजपाल ने उनके परिवार के किसी भी व्यक्ति के साथ किया होता तो भी वह इसी प्रकार उनके लिए क्षमा मंागते ?
-भगवती प्रसाद सिंघल
रवि नगर, ग्वालियर (म़.प्ऱ)
 तरुण तेजपाल ने पूरी पत्रकारिता जगत को बदनाम किया है साथ ही  अपने रसूख और पद का दुरुपयोग किया है।  ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, क्योंकि इनकी गलतियों से पूरे पत्रकारिता जगत को बदनाम होना पड़ा है।
-आर.जी. शर्मा
 खुशहालपुर रोड, मुरादाबाद (उ.प्र.)
कंाग्रेसी नेताओं की चापलूसी
भारत को मां कहने में जिन्हें संकोच होता हो , उन्हें सोनिया गांधी में सारे देश की मां नजर आ रही है। 1970 के दशक में कांग्रेस अध्यक्ष देवकान्त बरुआ ने कहा था कि ह्यभारत इंदिरा है, इंदिरा भारत है।ह्ण इंदिरा ने भारत को आपातकाल द्वारा कैसे जंजीरों में जकड़ा और आम जन के मौलिक अधिकार छीने यह लोगों को याद है। बरुआ से लेकर सीताराम केसरी और अब सलमान खुर्शीद तक कांग्रेस में एक ऐसी प्रजाति है जो फ्रांस के बोबोंर् शासकों के समान न कुछ सीखती है ,न कुछ भूलती है।
-अजय मित्तल
 खंदक, मेरठ (उ.़प्ऱ)
दवा कम्पनियों की धांधलेबाजी
दवा कम्पनियों की धांधलेबाजी विषय पर लेख काफी सटीेक था। आज यह मात्र धांधलेबाजी न होकर एक पूरा माफिया तंत्र बन गया है। दवा कंपनियां आज चिकित्सा को सेवा नहीं रोगी को एक उपभोक्ता के रूप में देखती हंै और उसका शोषण करती हंै।
-उमेश शर्मा
सेराथाना, जिला-कांगड़ा (हि.़प्ऱ)
१ आज दवा कंपनियों का शिकार सबसे ज्यादा आम जनमानस हो रहा है। दवाइयों के नाम पर ये कंपनियां गरीब और शोषित लोगों का शोषण कर रही हैं। उनकी धांधलेबाजी के विषय में जनता को जगाना होगा।
-रामकुमार राजवंशी
कुमाऊं (उत्तराखण्ड)
मनमोहन या मंदमोहन
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मनोदशा बिल्कुल रोगी जैसी हो गई है। जिस समय देश को एक मजबूत और देश के प्रति निष्ठावान प्रधानमंत्री की जरूरत है उस समय मनमोहन सिंह मंदमोहन की भूमिका में हैं। देश की आर्थिक हालत ठीक नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा कोई ठोस कदम न उठाया जाना इस बात का प्रमाण है कि मनमोहन-मंदमोहन हैं।
-शेख करीम मुंशी
चपरा, जिला-नदिया (प.बंगाल)
आज जब देश में भयंकर महंगाई है। लोगों को एक समय का भोजन चलाने में अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है ,लेकिन केन्द्र की कांग्रेस सरकार को आमजनमानस की कोई चिन्ता नहीं है। उसका तो पूरा ध्यान भ्रष्टाचार करने और अपनी जेब भरने पर है।
-विपिन कर्णवाल
रायवाला, जिला-देहरादून (उत्तराखंड)
गरीबों का अपमान
सपा के राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल ने नरेन्द्र मोदी के लिए एक बयान दिया कि चाय बेचने वाला कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकता । इस प्रकार के बयान किसी एक व्यक्ति की ही नहीं ,बल्कि पूरे चाय बेचने वाले समाज और गरीब लोगों की निंदा  है। सपा अब सामन्तवादियों की पार्टी बन गई है। आने वाले दिनों में ऐसे लोगों को करारा जवाब दिया जाना चाहिए।
-महेश प्रसाद साहू
बैरूनी माडल हाउस
लखनऊ  (उ.प्ऱ)
नरेश अग्रवाल जैसे सांसद ,जो कभी लोकसभा का चुनाव जीत नहीं पाए, नरेन्द्र मोदी और गरीब लोगों पर भद्दी टिप्पणी करते हैं। पहले उनको अपने गिरेबां में झांकना चाहिए उसके बाद किसी पर टिप्पणी करनी चाहिए। गरीब लोगों का मजाक उड़ाने वालों को आने वाला समय जवाब देगा।
-रमेश कुमार मिश्र
कान्दीपुर, जिला-अम्बेडकरनगर(उ.़प्ऱ)

मिशनरियों पर अंग्रेजों ने ही लगाई थी रोक
सेवा के बहाने मतान्तरण कर देश को कमजोर बनाने वाली ईसाई मिशनरियों की चाल को भांप कर गुलाम भारत में स्वयं अंग्रेजों ने मिशनरियों के भारत प्रवेश पर रोक लगा दी थी। आजादी के बाद भारत सरकार द्वारा गठित नियोगी समिति भी मिशनरियों की सेवा को मतान्तरण का औजार मानते हुए इन्हें तत्काल देश से बाहर निकलने की संस्तुति कर चुकी है। ग्राहम स्टेंस मामले में उच्चतम न्यायालय यह टिप्पणी कर चुका है कि किसी भी व्यक्ति की आस्था व विश्वासों में दखलन्दाजी करना और इसके लिए बल का प्रयोग करना, उत्तेजना का प्रयोग करना, लालच का प्रयोग करना या किसी को यह झूठा विश्वास दिलवाना कि एक मजहब दूसरे से अच्छा है, और इन सभी तरीकों का इस्तेमाल करते हुए किसी व्यक्ति का मतान्तरण करना किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस प्रकार के मतान्तरण से हमारे समाज की उस आधार भित्ति पर चोट होती है जिसकी रचना संविधान के निर्माताओं ने की थी। सर्व धर्म समभाव में पूरी आस्था रखने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि- यदि उन्हें कानून बनाने का अधिकार मिल जाए तो वह सारा मतान्तरण बन्द करवा देंेगे जो अनावश्यक अशान्ति की जड़ है। प्रसिद्ध इतिहासकार बीएल ग्रोवर एवं यशपाल द्वारा सम्पादित ह्यआधुनिक भारत का इतिहासह्ण के पृष्ठ सं. 696 एवं 697 पर लिखा है कि 18वीं शताब्दी के मध्य में विशेष कर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारियों और अधिकारियों ने यह समझा कि ह्यसाल्ज्वेशन आर्मीह्ण अर्थात् पादरियों के कार्य से उनके लाभ को धक्का पहुंचेगा अतएव उन्होंने मिशनरियों के आने पर रोक लगा दी।
इंलैण्ड से आई बैप्टिस्ट मिशनियों की त्रिमूर्ति अर्थात् जोशुवा मार्श मैन, विलियम केरी तथा विलियम वार्ड कलकत्ता में अपना कार्य प्रारंभ करना चाहते थे। परन्तु भारत के गवर्नर लार्ड वैलेज्ली ने इन्हें विध्वंसकारी और शान्ति के लिए खतरा कहकर कलकत्ता में प्रवेश की अनुमति नहीं दी और इन तीनों को डेनमार्क की बस्ती सीरमपुर में शरण लेनी पड़ी। इसी पुस्तक में आगे लिखा है कि ईसाई पादरियों ने भारतीय धर्म और समाज की बहुत कटु आलेचना करनी प्रारंभ कर दी थी। भारत में यत्र-तत्र प्रवेश करने के बाद उन्होंने हिन्दू धर्म की पुस्तकों के अनुवाद भी किए। उनके पीछे की भावना यही थी कि हिन्दू धर्म की खिल्ली उड़ाई जाए और लोगों को ईसाई मत की ओर आकर्षित किया जाए। प्रबुद्ध हिन्दुओं ने इसका कड़ा विरोध किया और इसी के फलस्वरूप हिन्दुओं में जागृति आई। राजा राम मोहन राय, केशव चन्द्र सेन, महात्मा फुले, सर सैय्यद अहमद खां आदि लोगों ने हिन्दुओं और मुसलमानों को जगाने का प्रयत्न किया। बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लोगों ने भारत में ईसाईकरण को खुली छूट दे दी। इसी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 263 पर लिखा है कि कम्पनी के अध्यक्ष मैगल्ज ने कहा था कि दैव योग से भारत का विस्तृत साम्राज्य ब्रिटेन को मिला है, ताकि ईसाई मत की पताका भारत के इस छोर से दूसरे छोर तक फहरा सके। प्रत्येक व्यक्ति को शीघ्रातिशीघ्र समस्त भारतीयों को ईसाई बनाने के महान कार्य को पूर्णतया सम्पन्न करने में अपनी समस्त शक्ति लगा देनी चाहिए। मेजर एडवर्ड्ज ने कहा था भारत पर हमारे अधिकार का अन्तिम उद्देश्य देश को ईसाई बनाना है।
कम्पनी के प्रयासों एवं ईसाई मिशनरियों के अथक प्रयास से भारत में मतान्तरण कार्य बहुत तेज गति से चला जिसके फलस्वरूप देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई प्रान्त ईसाई-बहुल हो गए। अन्त में मतान्तरण पर रोक लगाने के लिए कानून बनाना पड़ा। सन् 1954 में देश की आजादी के बाद सरकार ने मतान्तरण के कारण उत्पन्न हो रही असहज स्थिति से निपटने के लिए जस्टिस बीएस नियोगी की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया। इसमें ईसाई सदस्य भी थे। समिति ने 1956 में अपनी विस्तृत रपट प्रस्तुत कर दी जिसका क्रियान्वयन आज तक नहीं हो सका है और रपट ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। अपनी जांच पड़ताल के सिलसिले में नियोगी समिति 14 जिलों में 77 स्थानों पर गई एवं ग्यारह हजार से अधिक लोगों से मिली। उसने लगभग 400 लिखित बयान एकत्र किए। सभी प्राप्त तथ्यों के आधार पर समिति ने लिखा कि लूथारियन और कैथोलिक मिशनरियों द्वारा मतान्तरित ईसाइयों में अलगाववादी भाव भर जाते हैं। उन्हें सिखाया जाता है कि धर्म बदल लेने के बाद उनकी राष्ट्रीयता भी वही नहीं रहती जो पहले थी। अत: अब उन्हें स्वतंत्र ईसाई राज्य का प्रयास करना चाहिए। नियोगी समिति का मानना है कि मिशनरियों के कार्य में सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति धन है। भारतीय ईसाई विदेशी मिशनरियों का स्वागत केवल पैसे के लिए करते हैं। नेशनल क्रिश्चियन कौंसिल आफ इण्डिया के खर्च का मात्र बीसवां अंश ही भारतीय स्रोतों से आता है। शेष बाहर से। नियोगी समिति ने विदेशी स्रोतों से मिशनरी कार्यों के लिए आने वाले धन का भी हिसाब किया था और पाया था कि शिक्षा और चिकिसा के लिए आए धन का बड़ा हिस्सा मतान्तरण कराने पर खर्च किया जाता है। नियोगी समिति का प्रामाणिक निष्कर्ष था कि भारत में मिशनरी मतान्तरण गतिविधियां एक वैश्विक कार्यक्रम की मांग है, जो पूरे विश्व पर पश्चिमी दबदबा पुन: स्थापित करने की नीति से जुड़ी हुई है। उसमें कोई आध्यात्मिकता का भाव नहीं है, बल्कि गैर-ईसाई समाज की एकता छिन्न-भिन्न करने की भावना है।
-डा. मुरार जी त्रिपाठी
109/94-ए, मम्फोर्डगंज हाउसिंग इलाहाबाद (उ.प्र.)

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