वनयोगी बालासाहब देशपाण्डे - एक प्रेरक जीवन
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वनयोगी बालासाहब देशपाण्डे – एक प्रेरक जीवन

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Dec 21, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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जन्मशती (26 दिसम्बर 1913-26 दिसम्बर, 2013) पर विशेष

दिंनाक: 21 Dec 2013 13:27:32

 प्रमोद पेठकर

वनवासी प्रेम का भूखा है। प्रेमपूर्वक व्यवहार के कारण वह अपने पास आता है। एक निष्कपट हृदय,सरल-सहज स्वभाव की अनुभूति,उसके समीप जाने से ही होगी।ह्ण यह विचार सैकड़ों कार्यकर्ताओं को देने वाले बालासाहब देशपाण्डे को आज कौन नहीं जानता है।  उनके संवेदनशील हृदय को सभी जानें, यह समय की  आवश्यकता  है। साधारणत: समाज सहयोग से व्यक्ति जीवन खिलता है, परन्तु कुछ व्यक्तियों का जीवन इससे भी हट कर देखने को मिलता है। वे एक तरह से समाज को नया व्यक्तित्व प्रदान करते हंै।
श्री बालासाहब का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण 14 शके 1835 अर्थात् 26 दिसम्बर 1913 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। माता-पिता ने उनका नाम रमाकान्त रखा।  रमाकान्त की प्राथमिक शिक्षा सागर, अकोला, अमरावती में हुई। पिता ने आगे चलकर अपने बच्चों को नागपुर में पढ़ाई हेतु भेजा। रमाकान्त ने मैट्रिक की परीक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पास करने के पश्चात् पहले बी़ ए़ और बाद में विधि की परीक्षा पास कर अपने मामा के साथ रामटेक में वकालत प्रारम्भ की।
विद्यार्थी अवस्था में उनका डॉ़ हेडगेवार के साथ सम्पर्क होने से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। रामटेक में जब वे संघ के तहसील कार्यवाह के रूप में कार्य कर रहे थे तब वे स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रहे।
1947 में अंग्रेज इस देश से चले गए। हमें शासन करने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई। वर्तमान मध्यप्रदेश और तत्कालीन मध्यप्रांत (सी़ पी़ ) के मुख्यमंत्री श्री रविशंकर शुक्ल  जब जशपुर क्षेत्र में गए तो स्थानीय लोगों ने काले झण्डे दिखाये। ह्यरविशंकर गो बैकह्ण के नारे लगाए। इस परिस्थिति के सन्दर्भ में मुख्यमंत्री श्री रविशंकर शुक्ल  ने महात्मा गांधी के सहयोगी श्री ठक्कर बापा से चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में राष्ट्रवादी विचार को बढ़ावा देने वाले कार्य प्रारम्भ करने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री ने एक पिछड़ा वर्ग विकास विभाग बना दिया। इस विभाग के कार्य करने हेतु नागपुर से श्री बालासाहब देशपाण्डे  को बुलाया गया। अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को दूर रखते हुए वे नागपुर से 900 कि़ मी़ दूर जशपुर जैसे दुर्गम क्षेत्र में पहुंच गये। उन्होंने वहां की सामाजिक परिस्थिति का अध्ययन किया। जशपुर क्षेत्र में अधिकतम विद्यालय ईसाई मिशनरी ही चलाते थे। बालकों को सरकारी विद्यालय में भेजने के बदले मिशन के विद्यालयों  के लिये न केवल आग्रह था बल्कि एक प्रकार से जबरदस्ती थी। मानो सारे क्षेत्र पर उनका एकाधिकार था।
ऐसे में श्री बालासाहब ने प्रशासन द्वारा 100 नये विद्यालय खोलने की योजना बनाई।  श्री बालाासाहब ने गांव-गांव जाकर सम्पर्क किया। लोगों में विश्वास जगाया। वे ग्रामवासियों को कहते थे कि डरने का कोई कारण नहीं, अब हम स्वतंत्र हो गये हंै। उनके अथक प्रयत्नों से एक वर्ष में ही 108 विद्यालय प्रारम्भ हुए। इसके संचालन हेतु उन्होंने बलवान आचायोंर् की नियुक्ति की।
108 विद्यालय प्रारम्भ करने से श्री ठक्कर बापा बडे़ प्रसन्न हुए। उनकी आयु उस समय 80 वर्ष से अधिक थी, तो भी उन्होंने जशपुर जैसे दुर्गम क्षेत्र का दौरा किया। श्री बालासाहब  के कार्य की सराहना की और उन्हें स्नेहपूर्वक 250 रु़  देकर पुरस्कृ त किया।
कुछ दिनांे पश्चात श्री ठक्कर बापा के दु:खद अवसान से श्री बालासाहब का मानो एक आधार ही ढह गया। अब सरकारी यंत्रणा के साथ काम करना पहले से अधिक कठिन हो गया। गहन चिंतन के पश्चात् श्री बालासाहब इस निर्णय पर पहंुचे कि सरकारी अधिकारी के रूप में काम करके वे वैसी जागृति नहीं ला सकते हैं, जैसी कि चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी से जशपुर की सामाजिक स्थिति के बारे में परामर्श कर मार्गदर्शन प्राप्त किया और 13 वनवासी बालकों को मिलाकर एक छोटे से छा़त्रावास का निर्माण किया, जो आगे चलकर वनवासी कल्याण आश्रम नाम से  विशाल वटवृक्ष बना।
श्री गुरुजी ने कार्य की आवश्यकता को देखते हुए, श्री मोरुभैया केतकर  को कल्याण आश्रम के कार्य के लिये जशपुर भेजा। प्रारम्भ में जशपुर के आसपास में और बाद में ओडिसा, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे प्रदेशों में कार्य विस्तार                  होते गया।
मध्य प्रदेश में चल रहीं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की जांच करने के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में मध्य प्रदेश शासन ने 14 अपै्रल 1954 को एक आयोग की रचना की। आयोग ने 99 प्रश्नों की प्रश्नावली बनाई। आयोग ने वनवासी कल्याण आश्रम को भी निमंत्रित किया। श्री बालासाहब देशपाण्डे के लिये यह एक सुअवसर था कि ईसाई मिशनरियों द्वारा चल रहे काले कारनामों को सबके सामने लाएं। श्री कृष्णराव सप्रे के साथ मिलकर श्री बालासाहब  ने कई जानकारियां आयोग तक पहुंचाईं, परिणामस्वरूप 1956 में आयोग ने अपनी रपट प्रकाशित की। आयोग के अध्यक्ष श्री नियोगी ने व्यक्तिगत रूप में श्री बालासाहब  को एक धन्यवाद पत्र भेजा। यह पत्र आदरणीय श्री ठक्कर बापा द्वारा दी गई भंेट जितना ही  मूल्यवान था। जशपुर के आराध्यदेव भगवान श्री बालाजी हैं। श्री बालासाहब  ने कार्यकर्ताओं के साथ चर्चा कर एक विष्णुयज्ञ का आयोजन किया। समाज को जगाने के लिये श्रद्घाजागरण जैसे प्रबल माध्यम का प्रयोग किया। गांव-गांव से हज़ारांे वनवासी महिला-पुरुष गाते ढोल-नगाडे़ के साथ धुन करते इस यज्ञ में सम्मिलित हुए। कल्याण आश्रम गांव-गांव में पहुंच गया था।
सन् 1968-69 में कल्याण आश्रम का कार्य जशपुर क्षेत्र को लांघकर पड़ोस के बिहार, ओडिसा में प्रारम्भ हुआ। सन् 1975 में देश में आपातकाल लगा। कल्याण आश्रम के अनेक कार्यकर्ता जेल गये। श्री बालासाहब को भी मीसा के अंतर्गत जेल हुई। यह समय कल्याण आश्रम के लिये मानो परीक्षा की घड़ी थी। परन्तु सभी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हुए हम श्री बालासाहब  के नेतृत्व में इसमें से पार उतरे। श्री बालासाहब कहते थे,ह्यसरकार चाहे जान-माल का नुकसान कर दे,परन्तु अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल अडिग रहेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। 1977 में आपातकाल के बादल हटे।
भारत के प्रधानमंत्री श्री मोरारजी भाई देसाई एक बार जशपुर आये। उन्होंने अपना कार्य देखा। कुछ दिन पश्चात् जब बालासाहब दिल्ली गये तब श्री मोरारजी भाई देसाई से उनकी भेंट हुई। उन्होंने कल्याण आश्रम के कार्य के लिये शासकीय अनुदान देने की इच्छा प्रगट की। श्री बालासाहब ने अपने विचार रखते हुए कहा कि संगठन को आत्मनिर्भर बनाने के लिये सरकारी अनुदान के बदले समाज आधारित कार्य खड़ा करना ही कल्याण आश्रम की नीति है। सभी प्रदेशों में श्री बालासाहब  का भ्रमण शुरू हुआ। असम, नागालैण्ड, मणिपुर, मेघालय जाकर जनजातीय वनवासी बन्धुओं से मिले और उनको बताया, ह्यहम आपके धर्म-मत का सम्मान करते हंै तथा आपकी सब प्रकार से सहायता करना चाहते हंै।ह्णश्री बालासाहब देशपाण्डे  नागालैण्ड में रानी गाइदिन्ल्यू, एऩ सी़  झेलियांग, श्री गोविंद पैरा से मिले। मेघालय में हिप्सन राय व एण्डरसन मावरी से मिले। त्रिपुरा के अजय देवबर्मन से भी मिले और अपना कार्य वहां प्रारम्भ हो ऐसी बातचीत हुई।
1981 में दिल्ली में  कल्याण आश्रम के अखिल भारतीय कार्यकर्ता सम्मेलन में श्री एऩ सी़  झेलियांग  को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। कुछ समय बाद जब श्री बालासाहब उनके यहां गये तो उन्होंने एक कविता सुनाई। उसका संक्षेप में अर्थ ऐसा था कि आप हिन्दू बडे़ भाई हो हम हरक्का छोटे भाई हंै। सन् 1984 में श्री बालासाहब के जीवन को 72 वर्ष पूर्ण हुए इस अवसर पर देश में विविध स्थानों पर बालासाहब देशपाण्डे के सम्मान समारोह आयोजित किये गये। कार्यकर्ताआंें ने समाज से निधि एकत्र कर उन्हें अर्पित की। श्री बालासाहब  ने कल्याण आश्रम के इस ईश्वरीय कार्य के लिये वह राशि सार्वजनिक रूप में वापस की।
श्री बालासाहब देशपाण्डे के जीवन कार्य को देख कोलकाता की बड़ा बाजार कुमारसभा द्वारा स्वामी विवेकानंद सेवा पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया। 1993 में कटक में आयोजित अखिल भारतीय सम्मेलन में श्री जगदेवराम उरांव को उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में घोषित कर कार्यकर्ताओं का भविष्य के लिये मार्गदर्शन किया। जीवन के आखरी दिनांे में उन्होंने रामकृष्ण मठ के स्वामी रंगनाथानंद को पत्र लिख आशीर्वाद की अपेक्षा की। स्नेही श्री भीमसेन चोपड़ा  को भी जशपुर बुला लिया। कार्य के लिये दिन-रात कार्यरत उनकी देह 21 अप्रैल 1995 को शांत हुई। एक पवित्र आत्मा को सद्गति प्राप्त हुई। वर्तमान में उनकी जन्मशती के अवसर पर पुण्यस्मरण कर उनक ी स्मृति को शत-शत प्रणाम।

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