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पाठकीय : सटीक निकली पाञ्चजन्य की भविष्यवाणी

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Dec 14, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Dec 2013 16:20:49

विधानसभा चुनावों पर केन्द्रित अंक ह्यचढ़ा रंग केसरिया ह्य अत्यन्त हदयस्पर्शी रहा। इस विशेषांक में सही आकलन के साथ दलों की वास्तविक स्थिति और विधानासभा चुनाव की पूर्ण जानकारी मिली। सही विश्लेषण के लिए धन्यवाद।
-अशोक सरदाना 
डुडाहेरा, गुड़गांव (हरियाणा)
० इस विशेषांक ने जनता को हकीकत से परिचित कराया। पांचों राज्यों के विषय में जो सामग्री पाठक चाहते थे वही सामग्री पाठकों को उपलब्ध कराई गई।
-राम कुमार अग्रवाल 
आया नगर (नई दिल्ली)
० सेकुलर मीडिया भाजपा शासित राज्यों में उनकी उपलब्धियों को न दिखाकर उनकी आलोचना करने में व्यस्त था। भाजपा की कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का काम नहीं कर रहा था। ठीक उसी समय पाञ्चजन्य ने इस विशेषंाक को निकालकर जनता को उन कल्याणकारी योजनाओं से अवगत कराया।
-राजन तिवारी 
कटिहार (बिहार)
० चढ़ा रंग केसरिया विशेषंाक के जरिए लोगों की सोच में परिवर्तन हुआ। पहले लोग तमाम समाचार पत्रों व समाचार के अन्य माध्यमों द्वारा उन समाचारों को पा रहे थे जो पूरी तरीके से एक-पक्षीय थे , लेकिन इस विशेषांक ने पाठकों को जगाने का काम किया।
 -हरिहर सिंह चौहान
जंवरी बाग नसिया , इन्दौर (म़.प्र.)
० मोदी की लोकप्रियता का आलम यह है कि सभी प्रदेशों में भाजपा की जय-जयकार हो रही है। प्रदेशों में भगवा रंग ही नजर आ रहा है । आने वाले दिनों में भाजपा ही केन्द्र में सरकार बना सकती है और उस सरकार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हो सकते हैंे।
-सचिन कुमार रावत 
सुभाष नगर , जिला-हरदोई (उ.़प्र.)
० नरेन्द्र मोदी की जन-सभाओं में लोग उमड़ पड़ते हैं। यदि यह भीड़ वोट में बदल गया तो विश्वास रखिए कि देश से कांग्रेस का सफाया हो जाएगा। लोग कांग्रेस से बड़े दु:खी हैं। उन्हें भाजपा में उम्मीद दिखने लगी है।
-गणेश कुमार
पटना (बिहार)
पटना धमाकों का सच
पटना रैली में धमाके करके नरेन्द्र मोदी को मारने का दुष्चक्र रचा गया था । लगातार खुफिया विभाग ने मोदी की सुरक्षा को गम्भीरता से लेने को कहा है, फिर भी बिहार सरकार ने मोदी की सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम नहीं किए जिस के कारण पटना में धमाके हुए ।
-प्राणनाथ कुमार
जे.पी. गार्डन, मोहन नगर 
गाजियाबाद (उ.़प्ऱ)
० पटना धमाकों के बाद बिहार सरकार की उदासीनता और नरेन्द्र मोदी के नाम पर कंुठित नीतीश कुमार का चेहरा जनता के सामने आया। भाजपा व मोदी के खिलाफ किया जा रहा है दुष्चक्र जनता के सामने आ गया ।
-कुन्ती रानी साह
कटिहार (बिहार) 
भयभीत कंाग्रेस
कंाग्रेस के नेता चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों पर प्रतिबंध की बात कर रहे हैं, यह उनकी बौखलाहट को दर्शाता है । सभी सर्वेक्षणों में भाजपा की जीत और कंाग्रेस की हार  की भविष्यवाणी से कांग्रेसी नेता तिलमिलाए हुए हैं। लेकिन सत्य को छिपाया नहीं जा सकता है। वह एक न एक दिन जनता के सामने अवश्य ही आ जाएगा।
-हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)
० नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता व भाजपा शासित राज्यों में राज्य के मुख्यमत्रियों के कार्यों से भाजपा की लहर चल रही है। उनके कार्यों व जनता की पसन्द को ही सर्वेक्षण अपने अंाकड़ों में दिखा रहे हैं । इस कारण सच को जानकर ही  बौखलाई कांग्रेस सर्वेक्षणों पर प्रतिबंध लगाना चाहती है।
-सत्यदेव गुप्त
उत्तर काशी (उत्तराखण्ड)
मतान्तरण में आई तेजी
हाल के दिनों में पाञ्चजन्य में ईसाइयों द्वारा मतान्तरण में तेजी लाने से सम्बधित समाचार पढ़ने को मिले । ऐसा लग रहा है जैसे ईसाई मिशनरियों ने भारत को अपना निशाना बनाया है और वे इस प्रयास में बड़ी तेजी से लगे हैं। इसलिए हम सभी को इस षड्यंत्र के खिलाफ जागकर इसका विरोध करना है और अपने हिन्दू समाज को इससे बचाना है।
-डा़ॅ  मुरारी त्रिपाठी
इलाहाबाद (उ.प्र.)
० हाल ही में कनाडावासी पीटर यंगरीन ने प्रयाग  आकर मतान्तरण का कुचक्र रचा था साथ ही हजारों लोगों को बरगलाने का भी पूरा प्रयास किया । ऐसे लोगों से कैसे बचा जा सके इसके लिए हम सभी को प्रयास करना होगा। बौद्घिक और वैचारिक स्तर पर लोगों में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों की सम्यक जानकारी पहुंचाएं ताकि उनके कार्यों का पर्दाफाश हो सके ।
-राममोहन चन्द्रवंशी 
टिमरनी, जिला-हरदा (म़.प्ऱ)
० मतान्तरण में जुटे ईसाई बहुत बड़ी रणनीति के साथ कार्य कर रहे हैं। पहले ये लोग ग्रामीण क्षेत्रों में मतान्तरण करते थे। अब ये लोग शहरों में भी मतान्तरण करने लगे हैं। पढ़े-लिखे और आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग भी इनके बहकावे में आकर अपना धर्म बदल रहे हैं। यह बहुत चिन्ता की बात है। लोगों को जगाने की जरूरत है। नहीं तो इसका दुष्परिणाम हिन्दू समाज को भुगतना पड़ सकता है।
-विशाल कुमार
शिवाजी नगर
वडा, जिला-थाणे (महाराष्ट्र)

कांग्रेसियों ने स्वयं को ही बनाया ह्यभारत रत्नह्ण
पिछले दिनों भारत सरकार ने घोषणा की कि 2013 का भारत रत्न क्रिकेटर सचिन तेन्दुलकर एवं वैज्ञानिक सीएनआर राव को दिया जाएगा। इस घोषणा से कई विवाद खड़े हो गए हैं। क्योंकि कई वर्षों तक खेल में सर्वोच्च प्रदर्शन करने वाले हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द को इस बार भी भारत रत्न न देना केन्द्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाता है। कुछ समय पहले तक केन्द्र सरकार उनके नाम पर सहमत नजर आ रही थी। परन्तु सचिन तेन्दुलकर के क्रिकेट से संन्यास लेने से सारे देश में उठे कथित भावनात्मक ह्यसचिन ज्वारह्ण का उपयोग केन्द्र सरकार ने नरेन्द्र मोदी के उभार से निपटने के लिए ही सचिन को भारत रत्न देने की घोषणा अचानक की है। जबकि खेल वरिष्ठता में मेजर ध्यानचन्द सबसे ऊपर होने चाहिए थे। इस प्रकार सचिन तेन्दुलकर की प्रसिद्धि पर राजनीति करके केन्द्र सरकार ने भारत रत्न को विवादित बनाकर रख दिया है।
नियमानुसार भारत रत्न सम्मान कला, साहित्य, विज्ञान और अब खेल के क्षेत्र में  उत्कृष्टतम सेवा तथा उच्चतम स्तर की जनसेवा को मान्यता प्रदान करने के लिए किसी भारतीय को ही दिया जाना चाहिए। यह हमारे देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। परन्तु इस पुरस्कार को पाने वालों में गैर-भारतीय भी हैं, क्योंकि इसका कोई लिखित प्रावधान नहीं है कि भारत रत्न केवल भारतीयों को ही दिया जाए। इसलिए यह मदर टेरेसा, नेल्सन मण्डेला तथा खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे गैर-भारतीयों को भी दिया जा चुका है। इस पुरस्कार की परम्परा 2 जनवरी, 1954 से प्रारंभ हुई थी। तब सबसे पहला सम्मान- वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन, डा. राधाकृष्णनन एवं सी. राजगोपालाचारी को दिया गया था। एक वर्ष में अधिकतम तीन लोगों को इस सम्मान से सम्मानित किया जा सकता है। अब तक कुल 43 लोगों को यह सम्मान दिया जा चुका है। इनमें से 11 लोगों को मरणोपरान्त यह सम्मान दिया गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को मरणोपरान्त दिया गया। किन्तु उनके परिवार वालों ने यह सम्मान लेने से अस्वीकार कर दिया था। इस प्रकार अस्वीकार्यता का यह एकमात्र मामला है। केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार (1977-79) के समय भारत रत्न किसी को भी प्रदान नहीं किया गया।
भारत रत्न की इतनी अधिक महत्ता होने के बावजूद कांग्रेसी केन्द्र सरकारों ने इसका राजनीतिक उपयोग करने के कई उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। नियमानुसार प्रधानमंत्री द्वारा भारत रत्न सम्मान के लिए नाम प्रस्तावित किया जाता है तथा राष्ट्रपति द्वारा इसको स्वीकृत किया जाता है। मंत्रिमण्डल की इसमें कोई भूमिका नहीं होती है। इसके बावजूद जवाहरलाल नेहरू ने सन् 1954 ई. तथा इन्दिरा गांधी ने सन् 1971 में स्वयं प्रधानमंत्री रहते हुए अपने आपको ही भारत रत्न देने का (अ)नैतिक साहस दिखाया था। इसके अलावा जवाहरलाल नेहरू ने भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को उनके भारत रत्न चयन समिति का सदस्य होते हुए भी भारत रत्न से सम्मानित करने की योजना की थी। जिसको नैतिकतावश आजाद ने अस्वीकार कर दिया था। बाद में सन् 1992 में मौलाना आजाद को भारत रत्न दिया गया। स्वयं प्रधानमंत्री रहते हुए अपनी बेटी इन्दिरा गांधी को अपने मंत्रिमण्डल में मंत्री के रूप में शामिल करके जवाहरलाल नेहरू ने ही राजनीतिक वंशवाद की नींव डाली थी। जिसको आज तक नेहरू-गांधी परिवार बढ़ाने में लगा हुआ है।
वैसे तो भारत रत्न सम्मान कला, विज्ञान, साहित्य, जनसेवा के क्षेत्र में सर्वोच्च कार्य करने वालों को दिया जाना प्रस्तावित होता है। परन्तु अब तक सम्मानित कुल 43 में से कला के क्षेत्र में केवल 6 और विज्ञान के क्षेत्र में केवल 2 व्यक्तियों को ही दिया गया है। अधिकतर बार राजनेताओं को ही सम्मानित किया गया है, उनमें भी अधिकतर सत्तारूढ़ दल (प्राय: कांग्रेसी) थे। गांधी-नेहरू वंश की लगातार तीन पीढि़यों- जवाहरलाल नेहरू, इन्दिरा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के नाती राजीव गांधी (1991) को यह सम्मान दिया जा चुका है। अब शायद मौका मिलते ही वर्तमान पीढ़ी को भी दिये जाने की प्रतीक्षा है। डा. अम्बेडकर (1990) तथा मोरारजी देसाई (1991), सरदार पटेल (1991), जयप्रकाश नारायण (1998) आदि को भारत रत्न गैर कांग्रेसी सरकारों द्वारा तथा गैर नेहरू-गांधी परिवार सरकार द्वारा ही मिल सका। वैसे देश की अधिकतर सरकारी योजनाओं, स्मारकों, संस्थानों आदि के नाम केवल गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर रखने वाली कांग्रेसी सरकारों से पद्मपुरस्कारों तथा भारत रत्न आदि सम्मानों के ईमानदारी पूर्वक वितरण की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसलिए यदि कोई नरेन्द्र मोदी जैसा भाजपाई राष्ट्रवादी सरदार पटेल का कोई स्मारक बनवाना चाहता है, तो कांग्रेस को आपत्ति होती है, क्योंकि इससे नेहरू गांधी परिवार के वंशवाद का देश में एकाधिकार डगमगाता नजर आने लगता है।
राजनीति के कारण बार-बार भुला दिए गए मेजर ध्यानचन्द जैसे हॉकी के जादूगर ने 15 अगस्त 1936 को बर्लिन ओलम्पिक में जर्मनी की हॉकी टीम को 9-1 से रौंद कर तानाशाह हिटलर को भी प्रभावित करके भारत का गौरव बढ़ाया था। इस जीत के बाद प्रभावित हिटलर ने मेजर ध्यानचन्द को मुंहमांगी कीमत पर तथा जर्मन सेना में बड़े पद पर आकर जर्मनी के लिए खेलने को आमंत्रित किया था। परन्तु ध्यानचन्द ने प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा था कि वह पैसे के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए खेलते हैं। उनके दो दशक के हॉकी कैरियर के दौरान भारतीय टीम एक भी हॉकी प्रतियोगिता नहीं हारी। इस प्रकार ध्यानचंद हमारे देश के इतिहास रत्न हैं, भले ही मनमोहन सरकार के भारत रत्न नहीं हुए।
-डा. सुशील गुप्ता
शालीमार गार्डन कालोनी, बेहट बस स्टैण्ड, सहारनपुर (उ.प्र.)

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