चर्चवादी राह पर चली कांग्रेस धराशायी
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चर्चवादी राह पर चली कांग्रेस धराशायी

by
Dec 14, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Dec 2013 15:45:04

हॉल में ही सम्पन्न हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई है। पांचवें राज्य मिजोरम में जरूर वह अपनी नाक बचाने में सफल रही। चार राज्यों में कांग्रेस की इस शर्मनाक हार की विवेचना करें तो हार की जड़ें धर्म विहीन भक्ति के प्रतिपादन में दिखती है। किसी समय रोम का राजा सीजर पश्चिम एशिया में रहने वाले यहूदियों का उत्पीड़न कर रहा था। उस समय ईसा मसीह से पूछा गया था कि सीजर को कर देना उचित है या नहीं। इस पर ईसा मसीह ने जवाब दिया था कि 'जो सीजर का है वह उसको दो और जो भगवान का है वह भगवान को।' ईसा मसीह के लिये सीजर द्वारा ढाए जा रहे अन्याय का महत्व कम था। उनका ध्यान जनता को सीधे भगवान से जोड़ने पर था। उन्होंने कहा था कि उनका साम्राज्य इस संसार का नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि राजा दुराचार करे तो भी मौन रहना चाहिये और अपना ध्यान ईश्वर की ओर लगाकर उस साम्राज्य की प्राप्ति करनी चाहिये। ईसाई मत के इस चिंतन की आलोचना 'हार्वेस्टिंग आफ सोल्स' कहकर की जाती है। आरोप है कि ईसाई मत गरीब को गरीब बनाए रखना चाहता है जिससे लोग परेशान हों ओर चर्च के द्वारा उन्हें पकड़ा जा सके।
हिन्दू धर्म में विशुद्घ भक्ति योग की मान्यता है कि सांसारिक प्रपंचों से अलग रहते हुये ईश्वर की भक्ति पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये। कुछ का मानना है कि इस चिंतन से समाज में अधर्म की वृद्घि होती है क्योंकि तब अधर्म के विरुद्घ संघर्ष करना जरूरी नहीं रह जाता है। राजा दुराचारी हो तो उसके दुराचार से संघर्ष करने के स्थान पर अपने को घर में बन्द करके भजन करना ही उचित बताया गया है। इसी तरह चोरी पर निकलने के पहले मंदिर में जाकर चोर द्वारा आशीर्वाद मांगा जाता है। यहां चोरी के अधर्म को नजरअंदाज किया जाता है।
यूपीए सरकार के द्वारा देश पर इस चिंतन को लागू किया जा रहा था। यूपीए की आर्थिक नीतियां गरीब विरोधी थीं। जैसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को खुदरा क्षेत्र में प्रवेश देकर छोटे व्यापारियों की जीविका छीनी जा रही थी। खनिज निकालने के लिये वनवासियों को जंगल पर आधारित पारंपरिक जीविका से वंचित किया जा रहा था। टेक्सटाइल मिलों पर कर न्यून करके हथकरघे के सम्पूर्ण उद्योग को चौपट किया गया था। गरीब और अमीर के द्वारा बाजार से खरीदी गयी वस्तुओं पर एकल दर से ह्यएक्साइज़ ड्यूटीह्ण लगाई जा रही है। यह ऐसा हुआ कि पहलवान और भूखे से बराबर का काम लिया जाये। हाइड्रोपावर के उत्पादन के लिये आम आदमी को बालू और मछली से वंचित किया जा रहा था। इस अधर्म की यूपीए सरकार अनदेखी कर रही थी उसी तरह जैसे ईसा मसीह ने सीजर के अन्याय को नजरअंदाज किया था।
यूपीए की नीति का दूसरा हिस्सा उसी गरीब को रोटी बांटने का था। मनरेगा, खाद्य सुरक्षा एवं किसानों की ऋण माफी द्वारा गरीब को राहत पहुंचाए जाने के ढोल पीटे जा रहे थे उसी तरह जैसे ईसा ने गरीबों को पनाह दी थी। लेकिन यह राहत टिकाऊ नहीं थी। यह राहत तब ही की जा सकती थी जब बड़ी कम्पनियों के द्वारा गरीबों की जीविका का भक्षण किया जाये, उनके द्वारा भारी लाभ कमाया जाये और सरकार के द्वारा उनसे कर वसूला जाये। यूपीए की नीति का अल्पकाल में उसे लाभ मिला और 2004 तथा 2009 में यूपीए ने जीत हासिल की। परन्तु गरीब विरोधी आर्थिक नीतियों से गरीब की हानि हुई है, यह बढ़ती असमानता में दिख रहा है। दीर्घकाल में यूपीए का अधर्म सामने आया है। हाल के चुनाव में कांग्रेस की हार इसी अधर्म का परिणाम है।
एनडीए का मानना था कि देश के समृद्घ होने से गरीब को लाभ स्वत: मिलेगा।  उसका मूल चिन्तन सही दिशा में है। एनडीए की विचारधारा में है कि धर्म का अर्थ पर एवं फकीरों का धर्म पर अंकुश बना रहता था। जैसे हमारे शास्त्रों में लिखा गया है कि वैश्य पर क्षत्रिय का और क्षत्रिय पर फकीर का नियंत्रण रहना चाहिये। जैसे समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी को दिशा दी थी। अथवा जैसे गुरु गोरखनाथ ने आतताई राजा के राज्य में बादलों को बांधकर सूखे की स्थिति पैदा कर दी थी। अथवा जैसे राम ने अधर्म के विरुद्घ युद्घ लड़े। वैचारिक दृष्टि से एनडीए मानता था कि आर्थिक नीति की दिशा धर्मानुकूल होनी चाहिये जबकि यूपीए की विचारधारा है कि आर्थिक नीति और धर्म के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है, जैसा ईसा मसीह की सीजर के अधर्म के प्रति तटस्थता से दिखता है। एनडीए की गलती सैद्घान्तिक नहीं बल्कि कार्यान्वयन की थी। एनडीए सरकार पर विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष हावी हो गये थे। परिणाम हुआ कि सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति, परमाणु विस्फोट, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना आदि के माध्यम से देश समृद्घ हुआ। परन्तु आम आदमी की चिंता में कहीं कमी दिखी।
देश को अर्थ पर धर्म के अंकुश की स्पष्ट व्याख्या करनी होगी। इस व्याख्या के केन्द्र में आम आदमी को रखना होगा। ऐसी आर्थिक नीतियां बनानी होंगी कि गरीबी जड़ से ही मिट जाये। यूपीए की तरह आम आदमी को गरीब बनाकर एवं उसे सस्ता अनाज बांटने के सब्जबाग दिखाने से काम नहीं चलेगा। महाभारत में कहा गया है कि राजा की एक कमी ही उसकी पराजय का कारण बन जाती है। जैसे मशक की एक सिलाई खुली हो तो पानी नहीं टिकता है।    डा. भरत झुनझुनवाला

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