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'पाकिस्तान में मोहम्मद शाह रंगीला का राज'

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Dec 14, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Dec 2013 16:23:40

पाठक भली प्रकार जानते हैं कि पाकिस्तान के दैनिक 'जंग' और दैनिक ह्यनवाए वक्तह्ण में जो कुछ प्रकाशित होता है उसे समान्यत: सम्पूर्ण पाकिस्तान के दिलों की धड़कन माना जाता है। पिछले दिनों सरकारी स्तर पर पाकिस्तान में सबसे बड़ी घटना पाकिस्तान की सेना के अध्यक्ष के पद पर नई नियुक्ति को लेकर घटी। पूर्व जनरल अशफाक कयानी बहुत पहले ही अपनी सेवानिवृत्ति की इच्छा घोषित कर चुके थे। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कह दिया था कि अब सेना के मामले में न तो वे अपनी अवधि की वृद्धि चाहते हैं और न ही कोई नया सरकारी पद। इतिहास यह बताता है कि पाकिस्तानी सेना का अध्यक्ष अपनी इच्छा से विदा हो जाए, यह अपने आपमें एक ऐतिहासिक बात होगी। क्योंकि अधिकांश सेनाध्यक्ष राष्ट्रपति बनते हुए देखे गए हैं। समय आने पर अपने राष्ट्रपतियों को निष्कासित करते हुए भी हिचकिचाए नहीं हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए तो यह क्षण सबसे अधिक दु:खद रहे हैं। दूध का जला छाछ फूंक-फूंक कर पीता है। इसलिए नवाज शरीफ हर क्षण परेशान रहते थे। फिर से उन्हें सत्ता से अलग कर देने वाला कोई जनरल अपना खेल खेलने की उधेड़बुन में तो नहीं है, इसकी ही चिंता उनके लिए एक सहज बात थी। यद्यपि कयानी बार-बार कहा करते थे कि वे अपनी सेवानिवृत्ति के पश्चात एक क्षण भी अपने पद पर बने नहीं रहना चाहते। जब पिछले दिनों उनकी सेवा का अंतिम दिन आया तो वे सेनाध्यक्ष पद से खुशी-खुशी विदा हो गए। लेकिन पाक प्रेस में अब भी जो कुछ प्रकाशित हो रहा है उससे लगता है वहां किसी भी क्षण कोई आंधी आ सकती है।
6 दिसम्बर 2013 के अंक में दैनिक ह्यनवाए वक्तह्ण ने अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर जो कुछ लिखा है उससे देश और दुनिया को यह पता चल जाता है कि पाकिस्तान में नए जनरल की ताजपोशी तो हो गई, लेकिन इस्लामाबाद में चल रहे राजनीतिक प्रवाह यह बताते हैं कि नवाज शरीफ सत्ता पर कितने दिन टिके रहेंगे यह तो समय ही बताएगा। पत्र को इस बात का भय है कि कहीं मियां साहब (नवाज शरीफ) के फैसले मोहम्मद शाह रंगीला की सनक न बन जाए। भारत-पाक की जनता अपने बीते इतिहास के उन क्षणों से भली प्रकार परिचित है। मोहम्मद शाह रंगीला होता तब तो जनता निभा लेती, लेकिन यहां तो लिए जाने वाले निर्णय पाकिस्तान जैसे एक देश से जुड़े हुए हैं। लेखक मतलूब वडाइच ने पाकिस्तान के इस नए मोहम्मद शाह रंगीले के बारे में जो बातें लिखी हैंं उससे भारतीय उपखंड की जनता ही नहीं, बल्कि विश्व में शांति के सभी चाहक भयभीत हैं।
पत्र लिखता है कि लेखक सहित 20 करोड़ पाकिस्तानी और दुनिया भर के करोड़ों लोग इस बात पर हैरान थे कि पाकिस्तान के नए सेनाध्यक्ष की कमान हाथ में लेने संबंधी समारोह को पाकिस्तान के हर समाचार चैनल पर कम से कम दो घंटे तक प्रसारित करके इस प्रकार दर्शाया गया मानो किसी मध्य युग के बादशाह सलामत की ताजपोशी हो रही हो। भूखे नंगे पाकिस्तान में यह सब उस समय हो रहा था जब इस देश में जन्म लेने वाला बालक गर्भ में आते आईएमएफ के दो करोड़ डॉलर का ऋणी हो जाता है। जाहो जलाली वाले इस सेनाध्यक्ष के देश में 18 घंटे बिजली की ह्यलोड शेडिंगह्ण चलती है। रोशनी के इस झुरमुट में हजारों गैस स्टेशनों पर गैस बंद थी। प्रति वर्ष पड़ने वाले अकाल और बाढ़ के कारण सामान्य पाकिस्तानी दर-दर भटक रहा है। लेखक का कहना है कि मैंने अमरीका, अफ्रीका, यूरोप और मध्य पूर्व एशिया में बसने वाले अपने पाकिस्तानी मित्रों और नागरिकों से टेलीफोन पर सम्पर्क किया तो सर्वेक्षण से पता चला कि 98 प्रतिशत पाकिस्तानियों को यह पता ही नहीं था कि उनके देश का सेनाध्यक्ष कौन है? आज पाकिस्तान में जिसके गीत गाए जा रहे हैं उनका नाम क्या है? जाने वाले और अब नए आने वाले सेनाध्यक्ष अपने देश के लिए क्या कर चुके हैं और भविष्य में उनका क्या इरादा है? सभी पूछ रहे थे कि इस दबदबे से उनको जनता के सम्मुख पेश करने का कारण क्या है? उनकी शान में जिस तरह कसीदे पढ़े जा रहे थे उससे यही पता नहीं चल रहा था कि इस देश का असली राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कोई दूसरा व्यक्ति है या फिर केवल यही महाशय? नवाज शरीफ अपने बीते काल से भयभीत हैं। उन्हें लग रहा है नए जनरल को विश्वास में लेंगे तो उनके भविष्य पर से प्रश्नवाचक चिन्ह समाप्त हो जाएगा। उन्हें न तो देश छोड़ना पड़ेगा और न ही सऊदी में जाकर शरण लेनी पड़ेगी। यद्यपि बहुत पहले ही जाने वाले कयानी ने कह दिया था कि वे अपनी अवधि के एक दिन बाद भी इस पद पर नहीं रहने वाले हैं। उन्होंने नवाज शरीफ को अपनी सेवानिवृत्ति के लिए हर तरह से आश्वस्त कर दिया था। फिर क्या कारण है कि शरीफ भयभीत हैं। भारत सहित पश्चिमी राष्ट्रों के मीडिया को साक्षात्कार देते हुए नवाज शरीफ ने एक बार नहीं कई बार दोहराया था कि कयानी की सेवानिवृत्ति के बाद सेना के वरिष्ठतम जनरल को यह उत्तरदायित्व सौंपा जाएगा। लेकिन आज वरिष्ठता की सूची में तीसरे क्रमांक पर आने वाले जनरल को सेनाध्यक्ष बनाकर अपने ही वादे से वे मुकर गए हैं। लेखक कहता है कि मैं दुनियाभर के टीवी स्टेशनों पर इस ह्यकिलिपिंगह्ण को देख कर यह सोच रहा था कि अंतत: ऐसा कौन सा कारण हो गया कि मियां साहब ने अपना यह वचन तोड़ दिया और ऐसा निर्णय लिया कि सेना में भी कानाफूसी होने लगी। फौजी कहने लगे कि मियां साहब तो यहां तक कह रहे थे कि सेना युद्ध की तैयारी में है। ऐसी स्थिति में यह बदलाव आश्चर्यचकित कर देने वाला है। लोग पूछ रहे हैं जो जो सब से वरिष्ठ थे उन पर क्या पाक प्रधानमंत्री को विश्वास नहीं था? या फिर सेना में से यह आवाज उठी है? लेकिन नवाज शरीफ के लिए यह सब कुछ नया नहीं है, क्योंकि वे पाकिस्तान के अब तक 14 सेनाध्यक्षों में से चार को अपने हाथों मनोनीत कर चुके हैं और यह उनका पांचवां मनोनीत किया गया है। दो सेनाध्यक्ष उन्हें ही बर्खास्त कर चुके हैं। जबकि दो के साथ संघर्ष के पूर्व और पश्चात सेनानिवृत्त करने संबंधी मतभेद से परिपूर्ण फैसले कर चुके हैं।

अब देखना यह है कि पांचवें के हाथों मियां साहब की अथवा सेनाध्यक्ष की दुर्गति क्या होती है। लेकिन एक बात ने 20 करोड़ पाकिस्तानियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि पाकिस्तान सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर लोगों को नियुक्त करने का क्या मापदंड है? पाकिस्तानी कह रहे हैं कि उनके पास एक ही कसौटी है कि वह पंजाबी होना चाहिए। वह कितना सर्वगुण सम्पन्न है यह जानने की आवश्यकता नहीं है। किसी की योग्यता से नवाज शरीफ को क्या लेना देना? पाकिस्तान का बच्चा बच्चा पूछ रहा है कि नवाज शरीफ दो बार डंसे जा चुके हैं, फिर भी उनके पास कोई ऐसा करिश्माई व्यक्तित्व भी नहीं है जो वे पाकिस्तानियों को दे सकें। इससे एक बात सिद्ध हो गई कि चुनाव में उन्होंने जो वादे किये थे वे सब दिखावा थे। जनता को भुलावे में रख कर फिर  से प्रधानमंत्री पद को हड़प लेना उनका एक मात्र लक्ष्य था। वह पूरा हो गया और फिर अपनी असलियत पर आ गए।
भारत के साथ मियां साहब जो दोस्ती करना चाहते हैं उसके पीछे केवल उनका व्यापारिक लक्ष्य है। वे व्यापारी हैं इसलिए यह पिंड तो उनका जाने वाला नहीं है। भारत उनके लिए मंडी है। बड़ी मंडी में अधिक माल बिकेगा तो शरीफ एंड कम्पनी का ही नहीं भारत में जो उनके चहेते हैं, उन्हें भी लाभ मिल जाएगा। लेकिन वीजा पर पाबंदी समाप्त करने का अर्थ देश की सरहदों को समाप्त करना होता है। जब सरहदें ही समाप्त करना है तो फिर हम द्वि राष्ट्र के सिद्धांत को मानते ही नहीं हैं। इस प्रकार हम इकबाल की आत्मा को ही कुचल रहे हैं और जिन्ना को नकार रहे हैं। इसकी चिंता मियां साहब को है ही नहीं क्योंकि चिंतन से उनका क्या लेना-देना? जनरल हारून के सुपरसीड होने पर आज भारत और तालिबानों में खुशी की लहर नहीं दौड़ती। भारत और तालिबान ने उनके इस निर्णय पर फटाके फोड़े हैं। उन्हें बधाई भी मिल गई होगी।
दूसरी ओर जनता का बड़ा वर्ग 12 दिसम्बर को मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार अहमद की सेवानिवृत्ति से पहले इस प्रकार के होने वाले निर्णय को शंका की दृष्टि से देख रहा है। एक सामान्य पाकिस्तानी यह सोच कर ही कांप जाता है कि कहीं फिर से पहले वाली तानाशाही और रजवाड़े शाही जैसी कोई चीज तो उन पर नहीं थोपी जाने वाली है? क्योंकि आईएमएफ से सरकार ने कहा कि महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए बंदरबाट भी मुख्य न्यायाधीश के जाने के बाद होगी। निश्चित रूप से महंगाई की बढ़ती दर और आर्थिक स्रोतों की कमी समस्याओं के ढेर तो लगा ही देंगी? बेचारा दूध का जला छाछ फूंक-फूंक कर पीता है। उपरोक्त प्रश्न मियां साहब की दृष्टि में भी होंगे। लेकिन प्रश्न यह है कि इस मुगलिया दरबार से संबंधित दरबारी मियां साहब को सत्ता के घेरे से बाहर आकर सोचने का अवसर देंगे कि नहीं? क्योंकि जनता का भविष्य और उनकी उमंगें मियां साहब की समझबूझ पर निर्भर हैं। प्रधानमंत्री और उनके परिवार को अब परिवारवाद के जंगल से जान छुड़ा कर 20 करोड़ सिसकते-तड़पते इंसानों को विश्वास दिलाना होगा कि वे भी उनके ही परिवार हैं। असली परीक्षा तो अब प्रारंभ हुई है। कहीं मियंा साहब के फैसले मोहम्मद शाह रंगीले के फैसले न बन जाएं?   
मुंबई में आठ माह में 237 बलात्कार
जनवरी 2013 से अगस्त 2013 तक मुंबई में 229 बलात्कार की घटनाएं घटी हैं जिनमें 8 सामूहिक बलात्कार की भी घटनाएं हैं। यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुई है।
सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गलगली को सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी मिली है उसमें कुल 237 मामले हुए हैं जिनमें 229 बलात्कार और 8 सामूहिक बलात्कार के मामले पुलिस के रिकार्ड में दर्ज हैं।
उल्लेखनीय है कि महिलाओं की सुरक्षा का दंम भरने वाली मुंबई की पुलिस और वहां की कांग्रेस सरकार महिलाओं के प्रति कितनी सजग और उनके लिए चिन्तनशील है इन आकड़ों को देख कर उसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। जब देश की आर्थिक राजधानी में महिलाएं और लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं तो देश के अन्य स्थानों पर उनकी क्या सुरक्षा होगी। सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गलगली का कहना है कि पुलिस की सुस्त कार्यशैली और कम गश्त के कारण घटनाओं में वृद्घि हुई है। मुजफ्फर हुसैन  

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