दहले दहल ने की चुनाव बहिष्कार की घोषणा
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नेपाली की संविधान सभा के लिए 19 नवंबर को हुए चुनावों में नेपाली माओवादी पार्टी यूसीपीएन-एम के अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचण्ड की बुरी तरह किरकिरी हो गई। दहल राजधानी काठमाण्डू के चुनाव क्षेत्र काठमाण्डू-10 में नेपाली कांग्रेस के एक कार्यकर्ता राजन के़ सी़ से 8000 वोटों से क्या हारे, माओवादियों का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
21 नवम्बर को जैसे ही नतीजे आने शुरू हुए तो साफ हो गया कि 601 सदस्यों वाली संविधान सभा में ज्यादातर सीटों पर सुशील कोईराला की अगुआई में नेपाली कांग्रेस के सदस्य ही बैठेंगे। नेपाली राजनीति में खासा महत्व रखने वाली काठमाण्डू की इस सीट से हारने के बाद प्रचण्ड को ऐसा ताप चढ़ा कि फौरन पार्टी की बैठक तलब करके चुनावों को ह्यकुछ देशी-विदेशी ताकतों का षड्यंत्रह्ण करार दे दिया और नतीजों का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी, अपने तमाम पर्यवेक्षकों को भी मतदान केन्द्रों से लौटा लिया। बौखलाहट में प्रचण्ड ने एक तरह से फिर से जंग का ऐलान कर दिया। उनकी मानें तो मतपेटियों को मतदान केन्द्रों से मतगणना केन्द्र ले जाते वक्त धांधली की गई। ह्यधांधलीह्ण के पीछे प्रचण्ड ह्यबाहरी ताकतोंह्ण को दोषी ठहराते हैं। उनका कहना है कि ह्यजनभावना को दबाने के किसी भी षड्यंत्र या अनियमितता को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इस सबके खिलाफ हम जन अभियान शुरू करेंगे।ह्ण यह वहीं प्रचण्ड थे जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान एक सीडी बांटी थी जिसमें उन्हें मतदाताओं से ह्यजैसे-तैसेह्ण चुनाव जितवाने की अपील करते दिखाया गया था। हालांकि दहल अपनी दूसरी सीट सिराहा-5 में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आगे चल रहे थे। पिछली संविधान सभा में प्रचण्ड की पार्टी की सबसे ज्यादा 237 सीटें थीं।
बड़ी उठापटक और मान-मनौव्वल के बाद सम्पन्न हुए इन चुनावों में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर की अगुआई में ढेरों अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक नजर रखने आए थे और मोटे तौर पर पूरी प्रक्रिया को संतोषजनक ढंग से सम्पन्न हुई बताया गया है। 33 पार्टियों के गठजोड़ की सरपरस्त सीपीएन-नेपाल पार्टी ने चुनावों का पहले से बहिष्कार कर रखा था।
माओवादी पार्टी और चीनी कामरेडों की नजदीकियों ने नेपाल को राजनीतिक अस्थिरता और पिछड़ेपन के गर्त में ला छोड़ा है, भारत के साथ इस राष्ट्र के प्राचीन संबंधों को गहरा नुकसान पहंुचाया है। नेपाल की राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनाव हारे प्रचण्ड का यह पैंतरा और कुछ नहीं, कुहासा बनाए रखने के लिए माओवादियों के बखेड़ा खड़ा करने के पुराने शगल का ही नमूना है।
लाहौर के उच्च न्यायालय ने पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगाने का फैसला करके अपने मुल्क के सिनेप्रेमियों को ही आहत किया है। पाकिस्तान में यूं भी फिल्में कुछ खास नहीं बनतीं, जो बनती हैं वे हर दृष्टि से इतनी लचर होती हैं कि जागी आंखों से गया इंसान आधे में ही उबासियां लेता लौट पड़ता है। हां, भारत की फिल्मों और यहां के हीरो-हीरोइनों को वहां सर-माथे बैठाया जाता है। भारत की कोई फिल्म लगी नहीं कि सिनेमाहॉल आबाद हो उठते हैं वर्ना तो वहां परिन्दे भी ज्यादा पर नहीं मारते।
तो हुआ यूं कि किसी मुबाशिर लुकमान नाम के टीवी प्रस्तोता ने अदालत में गुहार लगाई कि जो फिल्म पूरी तरह भारत में फिल्माई गई हो, भारत के ही प्रायोजक द्वारा प्रायोजित की गई हो या ह्यफर्जीह्ण दस्तावेजों के आधार पर लाई गई हो, ऐसी भारतीय फिल्म को पाकिस्तान में न दिखाया जाए। भारत के खिलाफ तमाम तरह के दुष्प्रचार करने के लिए जाने जाने वाले लुकमान की अपील पर अदालत ने 19 नवम्बर को फरमान जारी करते हुए कहा कि जो फिल्म ह्यफर्जीह्ण दस्तावेजों के आधार पर लाई गई हो, जिसे किसी पाकिस्तानी ने प्रायोजित न किया हो उसका प्रदर्शन न होने दिया जाए। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब पाकिस्तान में टीवी चैनलों के नियंत्रक ने उन 10 चैनलों पर एक करोड़ रु. का जुर्माना ठोक दिया था जो भारत के टीवी सीरियल और फिल्में बहुत ज्यादा दिखाया करते थे। बहरहाल, पाकिस्तान के सिनेप्रेमी उदास हैं और मना रहे हैं कि मामला जल्दी से सुलटे तो कृष-3 का आनन्द लिया जाए।
मालदीव में कमान अब्दुल्ला के हाथ
ूमालदीव में खुद को ह्यइस्लाम का रक्षकह्ण बताकर चुनाव मैदान में उतरे इस्लामवादी अब्दुल्ला यामीन आखिरकार राष्ट्रपति बन ही गए। 17 नवम्बर को उन्होंने पद की शपथ ली और उनकी प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव्स के मुख्यालय के बाहर उनके समर्थकों ने इस्लामवादी नारे लगाए। कांटे की टक्कर में यामीन ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद को हराया है। हालांकि 9 नवम्बर को हुए पहले दौर के मतदान में नाशीद कहीं आगे चल रहे थे, लेकिन आखिर में ऊंट यामीन के पाले में बैठ गया। नाशीद को पिछले साल जबरन गद्दी से उतार दिया गया था। यामीन तीन दशक के शासन के बाद 2008 में गद्दी से हटे पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के दूर के भाई हैं। नाशीद उन्हीं गयूम को हरा कर पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से हुए चुनाव में राष्ट्रपति बने थे। देश को तरक्की के रास्ते पर बढ़ाने की उन्होंने बड़ी बड़ी योजनाएं बनाई थीं, लेकिन समय से पहले ही राजनीतिक उठापटक का शिकार होकर उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। आलोक गोस्वामी
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