राष्ट्रवाद का वह जुझारू योद्धा
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

राष्ट्रवाद का वह जुझारू योद्धा

by
Nov 16, 2013, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 16 Nov 2013 17:06:41

13 नवम्बर को अपराह्न  3 बजे श्री रामबहादुर राय का फोन आया कि अभी आधा घंटा पहले दीनानाथ मिश्र ने नोएडा के कैलाश अस्पताल में अपना शरीर त्याग दिया। सुनकर धक्का लगा, पर आश्चर्य नहीं हुआ। पिछले दो-तीन साल से उनका मृत्यु के साथ संघर्ष चल रहा था, उनकी सार्वजनिक गतिविधियां लगभग समाप्त हो गयी थीं और उनका अधिकांश समय अपने घर में या कैलाश अस्पताल में बिस्तर पर कट रहा था। उनसे मिलने के बाद कोई सहसा अनुमान  नहीं कर सकता था कि इस जर्जर शरीर के भीतर कितने जुझारू योद्धा का मस्तिष्क व अंत:करण विद्यमान है।
दीनानाथ से मेरे परिचय व सम्बंध की यात्रा 1968 में आरंभ हुई। उस वर्ष फरवरी 1968 में पं.दीनदयाल उपाध्याय  की रहस्यमय मृत्यु के पश्चात पाञ्चजन्य का प्रकाशन लखनऊ से दिल्ली लाने का निर्णय लिया गया। एक दिन अचानक मुझे सरकार्यवाह स्व.बालासाहेब देवरस ने झंडेवालान कार्यालय पर बुलाकर कहा कि हम पाञ्चजन्य को दिल्ली ला रहे हैं और उसका संपादन तुम्हें संभालना है। मैं सहसा विश्वास नहीं कर सका, क्योंकि 1960 में जिन कारणों से मुझे पाञ्चजन्य से अलग होना पड़ा था, उनकी पृष्ठभूमि में मुझे पुन: यह दायित्व सौंपना बहुत बड़ा निर्णय था। मैं संगठन की इस विशाल हृदयता से अभिभूत हो गया और मैंने हां कर दी। उस समय मैं एक कालेज में पूर्णकालिक शिक्षक था और संगठन पर आर्थिक बोझ न बनने के लिए कृत्संकल्प था। शिक्षक रहते हुए ही मेरी सम्पादक यात्रा आरंभ हो गयी। व्यवस्था यह थी कि पाञ्चजन्य का स्वामित्व लखनऊ के राष्ट्रधर्म प्रकाशन के पास ही रहेगा पर उसका सम्पादन, मुद्रण और प्रसारण दिल्ली में उसकी सहयोगी संस्था भारत प्रकाशन संभालेगा। अब आवश्यकता थी मुझे सक्षम सहयोगी देने की। इस कमी को पूरा करने दीनानाथ मिश्र जोधपुर से दिल्ली लाये गये। उनका परिवार बिहार के गया जिले का निवासी था पर वह राजस्थान के जोधपुर नगर में आ गया था। वहीं दीनानाथ जी ने पढ़ाई की, वहीं वे संघ के निष्ठावान कार्यकर्त्ता बने। पर उनमें लेखन की जन्मजात प्रवृत्ति थी, पत्रकारिता की ओर उनका सहज झुकाव था। यह झुकाव ही उन्हें पाञ्चजन्य में खींच लाया और उनकी पत्रकार यात्रा आरंभ हो गयी।
 खुली चर्चा का वह दौर
वे काफी पढ़ने-लिखने वाले व्यक्ति थे। मेरे कालेज से लौटने के पश्चात हम लोग ताजे घटनाचक्र पर खुली चर्चा करते। मुझे स्मरण है कि1969 में गांधी जी का जन्मशताब्दी वर्ष आया। हमने पाञ्चजन्य का विशेषांक आयोजित करने का विचार किया। गांधी जी के जीवन दर्शन, जीवनशैली एवं संस्कृति बोध से पूरी तरह सहमत होते हुए भी एक सामान्य धारणा मनों में बैठ गयी थी कि गांधी जी यदि चाहते तो देश विभाजन रुक सकता था। हिन्दू समाज को उन्होंने भरोसा दिलाया था कि ह्यविभाजन मेरी लाश पर होगाह्ण। समाज के इस विश्वास को वे नहीं निभा पाये और यह दंश अभी तक दिलों में बैठा हुआ था। काफी बहस के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विभाजन का अध्याय तो पीछे जा चुका है, अब हमें गांधी जी के राष्ट्र निर्माता के पक्ष को ही प्रस्तुत करना चाहिए। इस प्रकार पाञ्चजन्य का वह विशेषांक संघ क्षेत्रों में गांधी जी की पुनर्मूल्यांकन का उदाहरण बन गया।
1971 का बंगलादेश मुक्ति संग्राम पाञ्चजन्य की पत्रकारिता को नयी ऊंचाइयां देने का माध्यम बन गया। घटनाचक्र तेजी से घूम रहा था। कल क्या होगा, इसका अनुमान लगाने में बड़ा मजा आता था। तब तक एक युवा कार्यकर्त्ता विजय क्रांति भी हमारी टीम में जुड़ गये थे। पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर युद्ध चल रहा था। एक अंक को हम लोगों ने शीर्षक दिया ह्यलाहौर गिरा, कि याहिया गयेह्ण और वही हो गया, लाहौर गिर गया, याहिया चले गये। इस युद्ध का दुखांत था शिमला समझौता। यह विश्व इतिहास की अपूर्व घटना थी कि पाकिस्तान के 95000 सैनिक भारत के युद्धबंदी बन गये थे। भारत पाकिस्तान से जो चाहे शर्तें मनवा सकता था पर शिमला में इंदिरा जी जैसी कुशल और यथार्थवादी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के अभिनय से गच्चा खा गयीं और उन्होंने केवल एक मौखिक आश्वासन के आधार पर उन युद्धबंदियों को रिहा कर दिया। इससे तिलमिलाकर हमारे युवा साथी विजय क्रांति ने एक सैनिक की वेदना को अभिव्यक्त करने वाली कविता लिखी जिसे पाञ्चजन्य ने छापा और जिस पर भारत सुरक्षा कानून के अन्तर्गत देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया।
उस समय पाञ्चजन्य की प्रसार संख्या प्रति सप्ताह हजारों में बढ़ी। उसे पाञ्चजन्य का चरमोत्कर्ष कहें तो अत्युक्ति न होगी। किंतु उन्हीं दिनों पाञ्चजन्य के स्वामी राष्ट्रधर्म प्रकाशन ने एक बड़ा निर्णय लिया। लखनऊ में उनके पास एक बड़ा छापाखाना था जिसका पेट भरने के लिए काम चाहिए था। प्रबंधन ने तय किया कि पाञ्चजन्य का संपादन तो दिल्ली में ही हो पर उसका मुद्रण लखनऊ में हो। इस आशय का एक पत्र मुझे भेजा गया। मैं अवाक् था कि इतना बड़ा अव्यावहारिक निर्णय संपादक के नाते मुझे विश्वास में लिये बिना क्यों ले लिया गया। मैंने संपादन से अलग रहने का निश्चय किया। दीनानाथ से चर्चा की। वे मेरी सोच से सहमत तो थे, पर संगठन के निर्णय का सम्मान करने के लिए वे प्रयोग करना चाहते थे। इस मन:स्थिति में 15 अगस्त 1972 को स्वतंत्रता की रजत जयंती विशेषांक के बाद उन्होंने पाञ्चजन्य का संपादक पद संभाला और 1974 तक वे इस प्रयोग की सफलता के लिए प्रयास करते रहे। प्रबंधन ने चाहा कि वे लखनऊ रहकर संपादन करें पर यह दीनानाथ जी की पारिवारिक स्थितियों में व्यवहार्य नहीं था। अत: वे लखनऊ नहीं जा सके और वह प्रयोग विफल हो गया।
प्रगट हुआ योद्धा रूप
1974 में गुजरात में नव निर्माण और बिहार में लोकनायक जयप्रकाश के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन का तूफान उमड़ने लगा था। इसकी परिणति 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा में हुई। राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लग गया, लगभग पूरा राजनीतिक नेतृत्व जेलों में ठूंस दिया गया, मीडिया के मुंह पर सेंसरशिप का ताला ठोंक दिया गया। इस समय दीनानाथ का योद्धा रूप प्रगट हुआ। वे भूमिगत हो गये। उन्होंने अपने परिवार को बिहार भेज दिया। मकान के मुख्य दरवाजे पर बड़ा सा ताला ठोंक दिया और स्वयं पिछले दरवाजे से रात में सोने के लिए आने लगे। पर एक दिन पुलिस को सुराग मिल गया और इनकी गिरफ्तारी हो गयी। इनके कारावास काल में इनके एक भाई की अस्पताल में दुखद स्थितियों में मृत्यु हो गई। तब कहीं इन्हें पैरोल मिला। वे पुन: भूमिगत हो गये और आंदोलन का भूमिगत बुलेटिन ह्यप्रजावाणीह्ण नाम से निकालने में जुट गये। घोर आर्थिक कठिनाइयों में भी संघर्षरत रहे। 1977 में जनता पार्टी का शासन आने पर इनकी पत्रकारीय क्षमताओं के आधार पर इन्हें नवभारत टाइम्स में स्व.सच्चिदानंद अज्ञेय के संपादककाल में नियमित नौकरी मिली। अज्ञेय जी के बाद स्व.राजेन्द्र माथुर के संपादक काल में दीनानाथ बिहार में प्रतिनिधि बनाकर भेजे गये। उन्हीं दिनों उन्होंने जयपुर से नवभारत टाइम्स का संस्करण निकालने की योजना माथुर जी को दी, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने दीनानाथ के संपादकत्व में जयपुर संस्करण निकालने का निर्णय लिया। 1979 में जनता पार्टी में आंतरिक सत्ता संघर्ष के समय जब संघ की दोहरी सदस्यता के प्रश्न को उछाला गया तब दीनानाथ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वास्तविक स्वरूप की जानकारी देते हुए एक पुस्तक प्रकाशित की।
व्यंग्य लेखन में माहिर
हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी पत्रकारिता में भी उन्होंने कदम बढ़ाये। 1977 में पाञ्चजन्य पुन: लखनऊ से दिल्ली लाया गया, पर इस बार उसका स्वामित्व भी राष्ट्रधर्म प्रकाशन से भारत प्रकाशन को हस्तांतरित किया गया। पाञ्चजन्य के इस चरण में दीनानाथ ने ह्यरमतेराम की डायरीह्ण शीर्षक से व्यंग्य लेखन में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उनके व्यंग्य लेखों का एक संकलन ह्यघर की मुर्गीह्ण शीर्षक से छपा, जिसे उन्होंने मुझे समर्पित कर गौरव प्रदान किया।  ह्यचापलूसी के आरोप के डर से मैं पद पर बैठे बड़े लोगों में से किसी को यह पुस्तक समर्पित नहीं कर रहा। मैंने समर्पण के लिए एक बड़े आदमी को चुना, जो किसी पद पर नहीं हैं-देवेन्द्र स्वरूप जी अग्रवाल को। घर की मुर्गी दाल बराबर को ह्यघर की मुर्गीह्ण समर्पित-दीनानाथ मिश्र।ह्ण अंग्रेजी के ह्यपॉलिटिकल और बिजनेस आब्जर्वरह्ण पत्र में वे नियमित स्तंभ लेखक बन गये। रफी मार्ग पर आईएनईएस बिल्डिंग में उन्होंने अपने बैठने का स्थान भी बनाया। वही बैठकर वे लेखन कार्य करते एवं पत्रकार जगत से सम्पर्क बनाये रखते।
योजकता का प्रमाण
दीनानाथ के व्यक्तित्व में राष्ट्रभक्ति, संस्कृतिनिष्ठा, बौद्धिक प्रतिभा, संगठन कौशल्य एवं महत्वाकांक्षा का अद्भुत संगम था। उनका मस्तिष्क हर समय नयी-नयी बौद्धिक गतिविधियों व संपर्कों की योजना बनाता रहता था। भारतीय राजनीति के तत्कालीन शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी के वे अति विश्वास पात्र माने जाते थे। 1998 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राजग की सरकार बन जाने पर उन्हें राज्यसभा की सदस्यता प्राप्त हुई। वे 1998 से 2004 तक राज्यसभा सदस्य रहे। इसी काल में उन्होंने इंडिया फर्स्ट फाउंडेशन नामक एक प्रतिष्ठान की स्थापना की और उस प्रतिष्ठान के तत्वावधान में राष्ट्र के समकालीन एवं मूलभूत प्रश्नों पर भारतीय राष्ट्रवाद के दृष्टिकोण से विपुल साहित्य सृजन की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की। उन्होंने प्रत्येक विषय के लिए योग्य लेखकों के नाम ढूंढे, उनसे लेखन का अनुबंध किया। यह पूरी योजना तो क्रियान्वित नहीं हो पायी पर उसका जितना अंश हो पाया है, वह ही दीनानाथ की योजकता का प्रमाण है। कुछ समय तक दीनानाथ जी का इंडिया फर्स्ट फाउंडेशन बौद्धिक कार्यक्रमों एवं बौद्धिकों के समागम का बड़ा सक्रिय केन्द्र बना रहा। इस फाउंडेशन का कार्यालय ही एस.गुरुमूर्ति की ह्यग्लोबल फाउंडेशन फार सिविलाइजेशनल हार्मनीह्ण की आधारभूमि बना।
इसी फाउंडेशन के तत्वावधान में उन्होंने अक्तूबर 2008 में ह्यईटरनल इंडियाह्ण नामक एक मासिक शोध पत्रिका आरंभ की जो मई 2011 तक लगातार निकलती रही। उसकी सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने अक्तूबर 2009 में चिरंतन भारत नाम से हिन्दी पत्रिका आरंभ की। इा दोनों पत्रिकाओं का स्तर अनुकरणीय है। किंतु मई 2011 तक आते-आते दीनानाथ का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य काम के दबाव एवं साधनों के अभाव के कारण गिरने लगा। उन्हें बार-बार फाउंडेशन का स्थान बदलना पड़ा। बाईपास सर्जरी से गुजरना पड़ा। डाक्टरी परामर्श पर उन्हें अपने खान-पान की आदतों को बदलना पड़ा। उनके कुछ कठोर निर्णयों ने उनके निकट सहयोगियों को भी चौंका दिया।
पत्रकारिता के उन्नयन की सतत चिंता
भारतीय पत्रकारिता का चरित्र और पक्षीय राजनीति के लिए उसके दुरुपयोग के बारे में दीनानाथ हमेशा चिंतित रहते थे। इस विषय पर उन्होंने कई नोट तैयार किये, कई केन्द्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रियों को रचनात्मक सुझाव दिये। अभी भी समय है कि दीनानाथ की उन चिंताओं और योजनाओं का संग्रह करके उनके क्रियान्वयन हेतु कोई अध्ययन ग्रुप काम करे।
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के रजत जयंती वर्ष 2005 में भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के इतिहास एवं दस्तावेजों को कई खंडों में संकलित एवं प्रकाशित करने के विशाल प्रकल्प के मार्गदर्शन का भार दीनानाथ को दिया गया जो उन्होंने 2005 के अंत तक पूरा कर दिखाया। यह विशाल ग्रंथावली दीनानाथ की योजकता से अधिक उनकी प्रकाशन-सुरुचि को प्रतिबिम्बित करती है।
दीनानाथ थोड़ा जल्दी चले गये। वे मुझसे आयु में भले ही दस वर्ष कम रहे हैं, किंतु उनकी क्षमताएं एवं कतृर्त्व बहुत बड़ा है। उनकी जीवन यात्रा के बिखरे सूत्र अभी बटोरे जाने हैं। उस दिशा में यह पहला पग मात्र है। दीनानाथ ने मुझे बहुत स्नेह व सम्मान दिया। 1968 से अपनी यात्रा के प्रत्येक सोपान पर मुझे साथ लेने का प्रयास किया। मेरा मन इस समय कृतज्ञता और अपूरणीय अभाव की वेदना से भरा है। भारतीय राष्ट्रवाद के इस जुझारू योद्धा को अश्रुपूरित विदा। ल्ल देवेन्द्र स्वरूप   14 नवम्बर, 2013

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies