|
अमर शहीदों के सपनों को
यदि आधार मिला होता,
तो भारत के आंगन में भी
वैभव-सुमन खिला होता।
जाति और क्षेत्रवाद का
जहर न अंगड़ाई लेता,
देशद्रोह का बीज कभी भी
युवा न यूं पलने देता।
नहीं क्यारियां केसर की ये
नागफनी पैदा करतीं,
आतंकी ज्वालाओं से भी
सीमा कभी नहीं घिरतीं।
भ्रष्टाचार-महाराक्षस का
बोझ न देश कभी ढोता
अमर शहीदों के सपनों को
यदि आधार मिला होता।
राष्ट्रवाद का सूर्य
ग्रहण से ढका दिखाई देता है,
और अंधेरों का प्रतिनिधि भी
खुली ढिठाई देता है।
चप्पा-चप्पा सुलग रहा है
हर झोका अंगारा है,
राष्ट्र-भक्ति के मौन हैं
चुप बैठा बंजारा है।
जगद्गुरु की मान-प्रतिष्ठा
भारत कभी नहीं खोता,
अमर शहीदों के सपनों को
यदि आधार मिला होता।
था समृद्ध सुखी निज भारत
किन्तु आज कंगाल हुआ,
विश्व बैंक कर्जदार यह
मानव का कंगाल हुआ।
कालजयी तुम उठो आज फिर
नव विहान करना होगा,
तरुणाई के सांत लहू में
पुन: ज्वार भरना होगा।
ह्यवन्दे-मातरम्ह्ण महामंत्र से
किंचित भी नहीं गिला होता
अमर शहीदों के सपनों को
यदि आधार मिला होता।
रवीन्द्र शुक्ल ह्यरविह्ण
टिप्पणियाँ