जीवन प्रबंधन के बहुमूल्य सूत्र
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भारतीय इतिहास का गौरवमयी अतीत इस बात का गवाह है कि यहां की पवित्र धरा पर अनेक विलक्षण विभूतियां अवतरित हुईं। इन विभूतियों का व्यक्तित्व इतना बहुआयामी था कि उन्हें जब-जब जितने विद्वानों ने व्याख्यायित करने का प्रयास किया तो हर बार उनका एक नया रूप हमारे सामने अनावृत्त हुआ। ऐसी ही विलक्षण विभूतियों में स्वामी विवेकानंद का उच्च स्थान है। उन्होंने न केवल मनुष्य मात्र की आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया वरन् जीवन को बेहतर ढंग से और सार्थकता के साथ जीने के सम्बंंध में भी अनेक सरल मार्ग बताए। उनके तमाम उपदेशों और संदेशों में निहित बेहतर जीवन प्रबंधन से जुड़े सूत्रों को व्याख्यायित करते हुए एक पुस्तक जीवन प्रबंधन एवं स्वामी विवेकानंद हाल ही में प्रकाशित होकर आई है। स्वामी विवेकानंद सार्द्धशती समारोह समित,हरियाणा के मार्गदर्शक महंत चांदनाथ योगी की प्रेरणा से लेखक द्वय डा़ मारकण्डे आहूजा और डा़ अंजू आहूजा ने इसकी रचना की है।
पुस्तक में जीवन प्रबंधन से जुड़े 42 ऐसे सूत्रों की विस्तार से व्याख्या की गई है जिन पर अमल करने के बाद जीवन में असफलता की सभी शंकाएं समाप्त होना निश्चित है। वास्तव में ये सभी सूत्र मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों से जुड़े है। कहने का अर्थ है कि हमारे जीवन में हमारी सफलता और असफलता मूलत: हमारी सोच पर ही निर्भर करती है। हम अगर भीतर से स्वयं को बरत ले और अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर ले तो कोई वजह नहीं कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में हम असफल होंगे। पुस्तक की भूमिका में महंत चांदनाथ योगी ने स्वामी जी के संदेशों में निहित अर्थ को व्यक्त करते हुए मानव के पुनरुत्थान के लिए विघटन रोकने, जनसाधारण के उत्थान करने, अपने अतीत को जानने, देश की विभूतियों का सम्मान करने, शिक्षा का प्रसार करने और युवाओं को आगे आने की बात कही है। पुस्तक को कुल 42 अध्यायों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक अध्याय में किसी एक मनोवृत्ति की चर्चा की गई है। सोच, निर्भीकता,चरित्र,सहानुभूति से लेकर विनम्रता, राय और अर्पण उत्साह तक अनेक सकारात्मक और उच्च मानवीय मूल्यों की पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गई है। वैसे तो अधिकंाशत: स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी घटनाओं उनके संदेशों को ही अधिक व्याख्यायित किया गया है लेकिन बीच-बीच में इसमे महान व्यक्तियों के भी मूल्यवान कथनो को भी इसमें सम्मिलित किया गया है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए यह भी स्पष्ट होता है कि स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व इसलिए महान बन सका था, क्योंकि उनमें इस तरह की असाधारण प्रवृत्तियां विद्यमान थीं। पुस्तक के पहले अध्याय में ही यह स्पष्ट किया गया है कि व्यक्ति के जीवन की गति उसकी सोच पर ही निर्भर होती है। ऐसे में सवाल चाहे अपने जीवन के बेहतर प्रबंधन का हो या समाज,राष्ट्र के बहुमुखी समृद्घि विकास का, यह तभी संभव हो सकता है जब उसमें रहने वालें नागरिक की सोच सकारात्मक होगी। कह सकते है कि यह पुस्तक न केवल हमें बेहतर जीवन प्रबंधन के गुण सिखाती है बल्कि हमे एक बेहतर-संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक बनना भी सिखाती है। बैसे तो यह पुस्तक प्रत्येक आयु वर्ग के लिए उपयोगी है लेकिन युवा वर्ग के लिए विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होगी ।
पुस्तक का नाम -जीवन प्रबंधन
एवं स्वामी विवेकानंद
लेखक – डा. मारकण्डे आहूजा,
डा.अंजू आहूजा
प्रकाशक – स्वामी विवेकानंद सार्द्धशती
समारोह समिति, हरियाणा
पुस्तक प्राप्ति स्थान – बाबा मस्तनाथ वि.वि.
परिसर, रोहतक (हरयिाणा)
मूल्य – 1़00 रु. पृष्ठ-240
सामाजिक कायोंर् और रचनात्मक साहित्य में लगातार सक्रिय इंदिरा मोहन का तीसरा गीत संग्रह ह्यधरती रहती नहीं उदासह्ण अभी-अभी प्रकाशित होकर आया है। इस संकलन के गीत पढ़ते हुए यह अहसास होता है कि कवयित्री अपने समय, समाज, रिश्तों और देश-विश्व के प्रति पूरी तरह अलग है। उनकी संवेदनाएं किसी एक सीमा में न बंधकर सभी की संवेदनाओं को स्पर्श करती हैं। यहां तक कि प्रकृति के विभिन्न तत्वों से भी तारतम्य की अनुभूति इन गीतों में होती है। इन गीतों की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि अधिकांशत: ये भीतर से बाहर की यात्रा करते हैं यानी, अपने विचार, संवेदना को पहचानने और उन्हें सकारात्मक बनाने के बाद ये ह्यपरह्ण की तरफ उन्मुख होते हैं। यही वे तत्व है, जो इन गीतों में आध्यात्मिकता को सम्मानित कर देते हैं। कवयित्री की चिंता वर्तमान समय की सुविधाभोगी जीवनशैली और उसकी चकाचौंध में खोए युवाओं को लेकर सबसे ज्यादा है। उन्हें इस बात का अहसास है कि यदि युवा वर्ग ही सहज सात्विकता से विमुख हो जाएगा तो आने वाले समाज का प्रतिबिंब बेहद कुरूप हो सकता है। अपनी चिंता को प्रभावी ढंग से उन्होंने द्वार-द्वार सुविधा फिर थापे लगा रही गीत में व्यक्त की है। वह कहती हैं,
अपनी भाषा अपनी भूषा हीन हुई
अपनी गौरव गरिमा का घट बिखर गया
सुविधा सुख की बाढ़ सुनामी
चक्रवात घेरे तरुणाई
रोष बढ़ रहा, स्वत्व घट रहा
दिशाहीन डोले अरुणाई।ह्ण
संकलन की कई कविताओं में कवयित्री का प्रकृति और अदृश्य तत्व से मौन संवाद नजर आता है। ऐसे भाव गीतों में देखे जा सकते हैं। एक झरोंखा उजियाले का, ह्यसुरक्षित पवनह्ण, ह्यहरसिंगार झरते हैंह्ण,ह्यपिछली शिलाह्ण जैसे गीतों में यह भाव देख सकते हैं। इसी क्रम में ह्यनेह निमंत्रणह्ण गीत में छायावादी प्रवृत्ति की झलक दिखती है।
जल में थल में कल-कल स्वर में
रिस-रिस कर है बाहर आता
छलकाता है मौन -समर्पण
कैसा है यह नेह निमंत्रण
हम सबके जीवन से मानवीय मूल्यों का जिस तेजी से क्षरण हो रहा है, उसके प्रति भी कवयित्री की चिंता गीतों में विद्यमान है। ह्यआस्था बाजार बैरीह्ण शीर्षक गीत में वह लिखती हैं
ह्यनफरतों की डोर लिपटी
प्यार की संवेदनाएं
यह दिशा बिखराव की है
मुखर हैं आलोचनाएं।ह्ण
सत्ताधीशों और प्रशासकों के कुटिल गठबंधन के चलते आम जन कितना बेबस होकर जीने को अभिमत हो जाता है, इसकी बानगी भी कुछ गीतों में देखी जा सकती है, ह्यमिली भगतह्ण गीत में वह लिखती हैं-
ह्यजड़ से जुड़कर जो बैठे हैं
उनको जड़ सा जान लिया
सीधे-सादे लोकगीत को
ताल-छंद बिन मान लिया।ह्ण
तमाम विसंगतियों और विडंबनाओं के बाद भी कवयित्री हताश नहीं होतीं। वह प्रकृति से प्रेरणा लेने को प्रोत्साहित करती है। संग्रह से शीर्षक गीत ह्यधरती रहती नहीं उदासह्ण में वह लिखती हैं-
हिंसा का आघात सहे।
आस्थामय उल्लास रहे।
धैर्य धरे धरती धात्री-
निर्माणों की बात कहे।
सबके हित रचती इतिहास
धरती रहती नहीं उदास।
पुस्तक का नाम : धरती रहती नहीं उदास
लेखिका : इंदिरा मोहन
प्रकाशक : अनुभव प्रकाशन
ई-29, लाजपत नगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद-5
मूल्य : रु़ 160/-
पृष्ठ : 104
विभूश्री
भारतीय कला क्षेत्र में स्वदेशी की धमक
स्वदेशी चेतना के आंदोलन ने देश के सभी क्षेत्रों में अपनी पहुंच बना ली। लोगों ने विदेशी सामानों का बहिष्कार करना शुरू किया। तब भारत में स्वदेशी का यह आन्दोलन ह्णभारतीय पुर्नजागरण आन्दोलन ह्य के नाम से चर्चित हुआ। इस आन्दोलन के तहत भारतीय कला क्षेत्र में भी बंगाल की ह्दय भूमि कोलकाता कला गुरु अवनींद्र नाथ ठाकुर के नेतृत्व में भारतीय कला पुनर्जागरण आंदोलन खड़ा हु़आ। यद्यापि इस आंदोलन के नायक अवनींद्र नाथ ठाकुर थे, लेकिन उनके काम को जिस व्यक्ति ने सार्वधिक विस्तार प्रदान किया, वे थे उनके प्रमुख शिष्य नंदलाल बसु ।
इन्हीं नंदलाल बसु पर उदीयमान कलाकार और कला लेखिका डॉ. मधु ज्योत्सना ने अपनी हाल ही में लिखी ह्यशिल्पाचार्य नंदलाल बसुह्ण नामक पुस्तक के माध्यम से देश में चल रहे विदेशी कारणों सहित बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नापाक नीयत पर वैचारिक रूप से चोट करने का बौद्धिक प्रयास किया है। भारती प्रकाशन, धर्मसंघ, वाराणसी द्वारा प्रकाशित 168 पृष्ठों की इस पुस्तक में 104 पृष्ठों में नंदलाल बसु चर्चित रंगीन और काली सफेद कृतियां हैं, आकर्षक रंगीन आवरण से युक्त इस पुस्तक में लेखिका ने भारतीय कला के स्वदेशी पक्ष को प्रतिष्ठित किया है।
पुस्तक विवरण : शिल्पाचार्य नंदलाल बसु
लेखिका : डा मधु ज्योत्सना
प्रकाशक : भारतीय प्रकाशन, धर्मसंघ, वाराणसी
मूल्य : 550, पृष्ठ : 168
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