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हिंदू पीडि़तों को भूली सपा सरकार ने केवल मुस्लिम परिवारों को दिया आवास
पाञ्चजन्य ने जो आशंका जाहिर की थी वही हुआ। मुस्लिम मजहबी नेता, सपाई राजनीति बाज और कुछ मुस्लिम पत्रकार, जो मुस्लिम शरणार्थियों को शरणार्थी शिविर न छोड़ने के लिए यह कह कहकर उकसाते रहे थे कि तुम्हें कुछ ना कुछ दिलवा कर रहेंगे, और वह राजकोष को चूना लगाने के अपने मकसद में कामयाब भी रहे। आखिरकार अखिलेश सरकार ने अभी तक अकारण शरणार्थी में टिके 1800 मुस्लिम परिवारों को पांच पांच लाख, यानी कुल 90 करोड़ रुपए बांटने का शासनादेश जारी कर दिया है। यह आदेश केवल मुसलमानों के हित में है, हिंदू शरणार्थियों का इसमें कहीं जिक्र तक नहीं है।
मुजफ्फरनगर जिले में फुगाना के 330 परिवार, कुटबा के 205, कुटबी के 58, मोहम्मदपुर रायसिंह के 67, कांगड़ा के 265 और मुंडमर के 40 मुस्लिम परिवारों को मदद दी जाएगी। शामली जिले के ग्राम लाख के 276, बहावड़ी के 235 और लिसाढ़ के 325 मुस्लिम परिवार शासन की तरफ से मदद के पात्र होंगे। विधि विशेषज्ञों के अनुसार यह शासनादेश संविधान विरुद्ध है, उनका कहना है कि पीडि़तों में सिर्फ मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। इसके बजाए केवल विस्थापित परिवार लिखा जाना चाहिए था। कमालपुर के रविदासी मंदिर में लगभग 400 हिंदू शरणार्थी थे। जिन्हें सरकार से कोई मदद नहीं मिली। इनमें अधिकांश मुस्लिम बाहुल्य बसी गांव के अनुसूचित जाति के लोग थे। इन्होंने सुरक्षा कारणों से गांव में वापस लौटना ठुकरा दिया था। बसी आक्रामक मुसलमानों का वह गांव है। जहां सात सितंबर को नंगला मदौर की ह्यबहु बेटी बचाव ह्ण की महापंचायत में जाने वाले हिंदुओं पर हमला हुआ था।
शासनादेश में और कई गलतियां हैं। इसमें लिखा है कि सात सितंबर को जिन गांवों में हिंसा हुई उन्हें पुनर्वास पैकेज में शामिल किया गया है, लेकिन सात सितंबर को तो गांवों में हिंसा हुई ही नहीं। इस दिन मुजफ्फरनगर शहर, जौली गंग नहर, पुरबालियान, मजहेड़ा सादात, शेरनगर और बसीकला में हिंसा हुई थी। इस गलत बयानी के अलावा पीडि़तों की संख्या को लेकर भी आपत्ति उठाई गई है। 24 अक्तूबर को दोनों जिलों के प्रशासन ने राहत कैंप में केवल सात हजार 465 लोगों के उपस्थित होने की बात कही थी, लेकिन अब जो 1800 परिवार पैकेज के पात्र बताए गए हैं। उनकी कुल सदस्य संख्या कहीं ज्यादा है। एक आपत्तिजनक तथ्य पर गौर करें तो कांगड़ा गांव में 265 मुस्लिम परिवारों को पैकेज की घोषणा हुई है, पर कांगड़ा में हुए दंगे में जो भी मरे उनमें कोई भी मुसलमान नहीं है, मरने वालों में केवल हिंदू ही हैं। गांव के भीतर कभी हिंसा हुई ही नहीं, ऐसे में यहां के मुस्लिम परिवारों को पुनर्वास पैकेज के लिए चिन्हित करना विधि विशेषज्ञों की समझ से परे है। ऐसे में इन तमाम आधारों पर इस पैकेज को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
जबसे पुनर्वास पैकेज की घोषणा हुई तो वे मुस्लिम जो अपने घरों को लौट गए थे दोबारा आकर राहत शिविरों में रहने लगे हैंं। पांच लाख रुपए पाने के लालच में परिवार संख्या में अचानक वृद्धि हो
गई है। -अजय मित्तल
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