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बल्लभगढ़-मोहना रोड स्थित चंदावली गांव का शर्मा परिवार संयुक्त परिवार होने से पूरे क्षेत्र के लिए एक मिसाल बना हुआ है। इस परिवार में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 59 सदस्य हैं। घर में एक ही रसोई है और सभी प्रेमपूर्वक रहते हैं। आज के समय में इस परिवार की एकजुटता क्षेत्र के दूसरे लोगों के घरों में भी किस्से-कहानी के रूप में खूब चर्चित हैं।
दरअसल आजादी से पूर्व ही दिल्ली के मजिस्द मोठ गांव में रहने वाले पं. लीलाराम ने अपने बेटे धर्मसिंह को वर्ष 1942-43 में चंदावली गांव में भूमि खरीदकर बसाया था और तब से अब तक उनके आठ बेटे संयुक्त परिवार के रूप में यहां पर रह रहे हैं, ये सभी दादा-नाना बन चुके हैं, पांच बहनों की शादी हो चुकी है। परिवार के मुखिया अब स्व. धर्मसिंह के बड़े बेटे आनन्द शर्मा हैं। वह बताते हैं कि उनके दादा के समय से ही दिल्ली वाले घर से संयुक्त परिवार की परम्परा चली आ रही है जिसे उन्होंने अभी तक बरकरार रखा हुआ है। उनके व सभी छोटे भाइयों के बेटा-बहू भी साथ ही रहते हैं।
करीब पौने दो एकड़ क्षेत्र का स्वामी यह परिवार दीपावली और दूसरे त्योहार खूब हर्षोल्लास के साथ मनाता है। दीपावली के मौके पर परिवार के सभी सदस्य घर के आंगन में एकत्रित होकर भगवान लक्ष्मी-गणेश का पूजन करते हैं और उसके बाद करीब 600 दीपक जलाकर पूरे घर में उजाला किया जाता है। इसके उपरांत घर के बड़े सदस्यों की देखरेख में बच्चे पटाखे जलाकर खुशी मनाते हैं। इसके ठीक अलगे दिन सात फुट लंबा और चार फुट चौड़ा गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा विधिवत तरीके से की जाती है। इस दिन विशेष रूप से कढ़ी-चावल और चूरमा बनाया जाता है। अगले दिन भैया-दूज के मौके पर बहन-बेटियां भी अपने बच्चों संग पहंुचकर खुशी के माहौल को और ज्यादा बढ़ा देती हैं। परिवार में शादी या कोई अन्य समारोह हो तो सभी को अलग-अलग जिम्मेवारी सौंपी जाती है। बड़े से बड़े आयोजन में भी घर के सदस्यों पर किसी तरह का दबाव नहीं रहता है और न ही उन्हें कोई चिंता सताती है। परिवार के मुखिया बताते हैं कि संयुक्त परिवार में कभी आई कोई गंभीर समस्या भी आसानी से हल हो जाती है। बड़ा परिवार होने से सुरक्षा का कोई भय परिजनों को नहीं सताता है। कभी कोई परिजन बीमार हो जाए तो भी उसकी देखभाल करने वालों की कमी नहीं पड़ती।
त्योहार पर बढ़ जाती है घर की रौनक
इस भरे-पूरे संयुक्त परिवार में 13 लड़के और 12 लड़कियां, 11 पोते, चार पोती, आठ नाती और पांच नातिन हैं। इनके अलावा छह-छह भांजा-भांजी भी हैं। त्योहार के मौके पर जब बहनें और बेटियां अपनी ससुराल से यहां पहंुचती हैं तो परिजनों की संख्या 100 तक पहंुच जाती है। ऐसे में पूरे घर में मेले जैसा माहौल बन जाता है। इस परिवार में सबसे छोटी बच्ची 11 माह की है, जो कि सभी की चहेती है। सुबह आंगन में बैठकर सभी बारी-बारी से उसे गोद में लेने के लिए लालायित रहते हैं। स्कूल से लौटने पर बच्चे कभी दादा का चश्मा उतारते हैं तो कभी मोबाइल मांगते हैं। इन बच्चों की मस्ती देखकर आनंद शर्मा खुशी से फूले नहीं समाते।
पुराने किस्से
श्री आनंद शर्मा ने बताया कि एक बार उनके एक मित्र घर की बैठक में बैठे हुए थे तो बच्चों का शोर सुनकर उन्होंने पूछा कि भाई साहब, क्या आप ने विद्यालय खोला हुआ है? तो हंसकर उन्होंने जवाब दिया कि नहीं, ये सब तो अपने ही बच्चे हैं। यह बात जानकर मित्र को काफी हैरानी हुई थी। उन्होंने बताया कि बीते कुंभ के मेले से लौट रहे एक संत अपनी टोली के साथ घर के बाहर से गुजर रहे थे तो वहां उन्होंने ठहरकर विश्राम करने को कहा। टोली में 18 लोग थे जिन्होंने भोजन करने की इच्छा जताई थी। आधा घंटे में जब उन्हें भोजन परोसा गया तो वे सभी अवाक् रह गए और बोले, क्या खाना भोजन होटल से मंगाया है? लेकिन जब उन्हें संयुक्त परिवार के बारे में बताया तो उन सभी को आज के समय में ऐसे परिवार के बारे में जानकर काफी प्रसन्नता हुई।
अलग-अलग जिम्मा
परिवार के सदस्यों को उनका अलग-अलग काम सौंपा गया है। ललित खेती, महेन्द्र पशु पालन और राजेश व देवेन्द्र भट्ठे का काम संभालते हैं। सुशील-नरेन्द्र विकास घर के सामान की खरीददारी करते हैं। वहीं आनंद शर्मा की पत्नी कृष्णा शर्मा परिवार में अपनी देवरानियों, बहू और बेटियांे क ी मुखिया हैं। घर में उन्हीं की देखरेख में रसोई और दूसरे रोजमर्रा के काम होते हैं। घर में सास जहां सब्जी काटने में बहुओं का हाथ बंटाती हैं तो वहीं बहुएं दो-तीन चूल्हों पर रोटियां बनाती हैं। बेटियां और छोटे बच्चे बड़ों को खाना परोसने का काम करते हैं। घर में सब्जी बनाने के लिए हलवाई वाला बड़ा चूल्हा ही काम में लाया जाता है। इसके अलावा नाश्ते, दोपहर और रात में भोजन तैयार करने के लिए भी अलग-अलग बहू का काम बंटा है और सभी अपने काम बखूबी पूरे करती हैं। घर में 40 गाय-भैंस हैं जिनके दूध की परिवार में ही खपत हो जाती है।
घर के सदस्यों की थी अपनी टीम
80 के दशक में घर के सदस्यों ने मिलकर एक क्रिकेट टीम बनायी हुई थी जिसमें से सात सदस्य घर के थे, बाकी गांव के। गांव से बाहर मैच खेलने गई टीम में परिवार के सभी सदस्यों को खेलने का पूरा मौका मिलता था। अभी भी परिवार के बच्चों को दूसरी जगह खेल-कूद के लिए नहीं जाना पड़ता है। घर में ही सभी पूरी मौजमस्ती करते हैं। आज भी एक ही स्कूल में घर के सात बच्चे पढ़ने जाते हैं जिससे उनकी चिंता भी नहीं रहती और वे एक-दूसरे की देखभाल भी बखूबी कर लेते हैं।
हुक्का है मशहूर
शर्मा परिवार की बैठक में आज भी हुक्के का दौर चलता है। आगरा नहर के किनारे बाईपास पर बसे इस घर में स्वतंत्रता-संघर्ष के दौर में सभी वगोंर् के लोगों के लिए अलग-अलग हुक्के रखे जाते थे और वहां चर्चाओं का दौर गर्माया रहता था। पुराने समय में शाम ढले वहां से गुजरने वाले लोगों को न सिर्फ भोजन कराया जाता था, बल्कि रात में ठहराया भी जाता था। राहुल शर्मा
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