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पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री की रूस यात्रा में मोटे तौर पर तीन बातें गौर करने लायक रहीं। पहली, दोनों देशों के बीच भारत के कुडंकुलम प्लांट के दो और परमाणु रिएक्टरों, नम्बर 3 और नम्बर 4 पर काम आगे बढ़ाने संबंधी करार होते होते रह गया। वहां से आईं खबरें बताती हैं कि करार अब हुआ तब हुआ की स्थिति तक तो पहंुच गया था, लेकिन एकाध शब्दों पर रजामंदी होनी बाकी थी। अब दोनों देशों के विदेश विभाग गुत्थी को जल्दी से जल्दी सुलझाने में लगे हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात रही वह संयुक्त बयान जिसमें दोनों देशों ने एक मत से माना है कि बरगलाने वाले ह्यनारोंह्ण की आड़ में जिहादी हमले राष्ट्र की भौगोलिक संप्रभुता के विरु द्ध हैं। भारत के जम्मू-कश्मीर और रूस के चेचन्या में राष्ट्र विरोधी अलगाववादी-विद्रोही तत्व सक्रिय हैं, इस लिहाज से रूस का इस मुद्दे पर पर भारत के साथ खड़े होना अच्छा असर डाल सकता है। साथ ही यह पाकिस्तान को भी सावधान होने का संकेत भेजता है। संयुक्त बयान में दोनों देशों के बहुरंगी लोतांत्रिक समाजों क ी स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर जिहादी हमलों का जिक्र और उनके तार सीमा पार से जुड़े होने का जिक्र भी है। कहा है कि, जो राज्य तंत्र आतंकवादी गतिविधियों को सहायता, बढ़ावा और शह देता है वह भी उन जिहादियों जितना ही दोषी है। भारत के नजरिए से यहजम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के ह्यजनमत कराओह्ण के नारे उछालने क े संदर्भ में है। लेकिन तमाम प्रोटोकॉल को चौंकाते हुए राष्ट्रपति पुतिन ने दौरे के आखिरी दिन भारत और रूस के बीच सदियों पुराने जुड़ाव को फिर से याद करते हुए मनमोहन सिंह को एक यादगार चीज भेंट करके जताया कि, दोनों देशों के बीच सदियों पहले भी कारोबारी रिश्ते थे। हो न हो, पुतिन भारत की आजादी के बाद, तब के रूसी कम्युनिस्ट शासन के साथ व्यापारी रिश्तों के और पीछे जाकर रूस में त्जार राजाओं के काल में रहे दोनों देशों के संबंधों की ओर संकेत करना चाहते थे। पुतिन ने सिंह को 1891 के त्जार के बेटे, जो आगे चलकर त्जार निकोलस द्वितीय बना, की एक भारतीय महाराजा के साथ बने चित्र की प्रति भेंट की। त्जार काल का भारत का एक मानचित्र भी भेंट किया। प्राचीन कारोबारी रिश्तों को झलकाने वाला मुगल काल का एक सिक्का भी दिया। बताते हैं, रूस के अस्त्राखान इलाके में कभी भारतीय कारोबारियों का एक छोटा सा समुदाय भी रहा करता था। अब यह सिक्का दोनों देशों की नजदीकियों में और कितनी गर्मजोशी लाएगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
सीमा-सहयोग संधि,
…पर वीसा पर चीनी चुप्पी!
रूस से रवाना होने के बाद बीजिंग उतरे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आते ही चीनी हुक्मरानों के बोल ऐसे चाशनी पगे हो गए कि क्या कहने। लगा ही नहीं, शब्द उन्हीं चीनियों के मुंह से निकल रहे थे जो अभी पिछले दिनों भारत की भौगोलिक संप्रभुता की खिल्ली उड़ाते हुए कभी लद्दाख में तो कभी अरुणाचल प्रदेश में अपने फौजियों के जत्थे भेजकर हमारी जमीन पर अपने अधिकार के बैनर चमकवाया करते थे। बीजिंग में 23 अक्तूबर की सुबह चीन के प्रधानमंत्री ली किक्यांग और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ह्यसीमा सहयोग करारह्ण किया, जिसमें ह्यतमाम गलतफहमियोंह्ण से बचने के लिए आपसी सहयोग और संवाद बढ़ाने के वायदे किए गए हैं। ली तो बाग बाग होकर बोल उठे, भारत और चीन के संबंधों में नई गति और जोश आ गया है। पर वे इस बात पर कन्नी क्यों काट गए कि भारत की भौगोलिक संप्रभुता को चीन ने हमेशा अनदेखा किया है, कि उसने भारत की अक्साईिचन में 38 हजार किलोमीटर जमीन दबाई हुई है, कि उसकी अरुणाचल प्रदेश में हमारी 90 हजार किलोमीटर जमीन को कब्जा लेने की मंशा जगजाहिर है? करार पर दस्तखत के बाद ली ने एक पत्रकार वार्ताको भी संबोधित किया। यह महज इसलिए आयोजित की गई थी कि ली अपने मुंह मियां मिट्ठू बन सकें। क्योंकि, वहां बैठे पत्रकारों को पहले से बता दिया गया था कि कोई सवाल नहीं करेगा! 23 अक्तूबर को ली के साथ बात करते हुए, बताते हैं, मनमोहन सिंह ने अरुणाचल के तीरंदाज खिलाडि़यों को चीन द्वारा ह्यस्टेपल्ड वीसाह्ण जारी करने पर शिकायत करते हुए कहा कि ऐेसे काम वीसा करार जैसे सकारात्मक प्रयास में खटास बढ़ाते हैं। शायद इसी के चलते वीसा करार को आखिरी पल में रोक लिया गया था। बात पी.ओ. के. में चीनी निवेश और पाकिस्तान से परमाणु रिश्तों पर भी उठी। पर ली ने दोनों पर कोई ठोस वायदा नहीं किया। सिर्फ यही अलापते रहे कि सहयोग और बढ़ाने का प्रयास करना है। ल्ल
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