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संयुक्त परिवार हिंदुओं के बीच प्रचलित एक विस्तारित परिवार का व्यवस्था है। सभी पुरुष सदस्य आपस में खून के संबंध से बंधे हैं और सभी महिलाएं मां, पत्नी, अविवाहित पुत्री, विधवा के रूप में सपिंड रिश्ते से बंधी होती हैं। ऐसे परिवार क ी संपत्ति का स्वामित्व नजदीकी या किन्हीं भी पूर्वजों के माध्यम से किया जाएगा। दो कानून, मिताक्षरा और दयाभागा हिन्दू अविभाज्य परिवार पर लागू होते हैं। दोनों के बीच मुख्य अंतर यह है कि मिताक्षरा कानून पूरे देश पर लागू होता है, जबकि दयाभागा कानून केवल बंगाल और असम में लागू होता है। दयाभागा कानून के तहत पुत्र को पिता की मृत्यु पर पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त होता है, जबकि मिताकक्षरा कानून के तहत दामाद भी पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त कर लेता है।
मिताक्षरा कानून के अनुसार एक संयुक्त हिंदू परिवार में अपने बेटे, पोते और पड़पोते के साथ एक परिवार के पुरुष सदस्य शामिल होते हैं, दयाभागा कानून के तहत महिलाओं को भी संपत्ति पर अधिकार मिलता है। मिताक्षरा कानून के तहत पैतृक संपत्ति में एक समान उत्तराधिकारी की मौत पर अवसर मिलता है। हिंदू कानून के तहत एक हिंदू की संपत्ति पर उसके बेटे और पोतों का अधिकार है। हालांकि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम , 1956 की धारा 8 के अंतर्गत बेटे के बेटे अर्थात पोते को संपत्ति के अधिकार से बाहर रखा जाता है।
यदि परिवार के मुखिया सबसे वरिष्ठ सदस्य या संयुक्त परिवार के प्रबंध सदस्य हैं तो वहां कर्ता के रूप में एक व्यक्ति को नामित करने के लिए किसी भी कानूनी समझौते की कोई आवश्कता नहीं है। ऐसे परिवार में आनंद मिलता है। हिन्दू अविभाज्य परिवार में मुखिया को कर्ता के रूप में व्यापक शक्तियां प्राप्त हैं। ऐसे परिवार का मुखिया एक प्रामाणिक ढंग से पूरे परिवार के हित के लिए कार्य करता है।
महिला हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 से पहले मिताक्षरा कानून में महिला सहभागी नहीं थी। संशोधन से पूर्व बेटी को घर या संपत्ति में निवास करने का अधिकार था, लेकिन स्वामित्व कर अधिकार नहीं था। बेटी को हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम , 2005 लागू होने के बाद से संयुक्त संपत्ति में जन्म से ही एक समान उत्तराधिकारी बना दिया गया है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 में संशोधन का मूल उद्देश्य सभी को बराबर उत्तराधिकार प्रदान करना था। मिताक्षरा कानून के अंतर्गत एक हिंदू संयुक्त परिवार में बेटी अब एक बेटे की तरह जन्म से ही समान उत्तराधिकारी है। वह उत्तराधिकारी के रूप में दावे का अधिकार रखती है और परिवार के सभी सदस्यों के बीच बराबर हिस्से का स्वामित्व भी।
हिन्दू अविभाज्य परिवार एक कानूनी इकाई है और विशेष रूप से इसके लिए गठित कानून द्वारा नियंत्रित होता है। हिन्दू अविभाज्य परिवार आयकर अधिनियम, 1961 के तहत एक कानूनी इकाई के रूप में अलग (निर्धारणीय) इकाई है, यह अपने नाम के तहत व्यापार के संचालन का पूर्ण अधिकार रखता है। आयकर कानून के तहत ऐसे परिवार बहुत लाभ उठा सकते हैं। हिन्दू अविभाज्य परिवार पूरे परिवार से संबंधित एक इकाई है , सभी आय, खर्च और लाभ पूरे परिवार के लिये होते हैं। सदस्य परिवार को भंग या बंद कर सकते हैं। इसके लिए संबंधित सभी परिसंपत्तियों के सदस्यों पर सहमति हो सकती है। हिंदू कानून के अनुसार इसे समान रूप में सदस्यों के बीच बांटा जाता है। मोनिका अरोड़ा
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