शंख व घंटा बजाने का विज्ञान

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दिंनाक: 19 Oct 2013 15:47:58

बच्चो! आप अपने माता-पिता या घर के अन्य सदस्यों के साथ मन्दिर जरूर जाते होंगे। पूजा के समय वहां शंख और घंटा बजाया जाता है। आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है? यदि आप नहीं जानते हैं, तो आज जान लें। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि ध्वनि विस्तार में सूर्य की किरणें बाधक होती हैं। इसी कारण रेडियो प्रसारण दिन की अपेक्षा रात को अधिक स्पष्ट होता है। प्राय: सायंकाल व सूर्य किरणें जब कम तेज होती हैं तब शंख फूंकने व घंटा-घडि़याल बजाने का विधान है। एक बार शंख फूंकने पर जहां तक उसकी ध्वनि जाती है, वहां तक बीमारियों के कीटाणु, जो वातावरण में विद्यमान होते हैं, वे या तो नष्ट हो जाते हैं या फिर निष्क्रिय। जाने-माने वैज्ञानिक श्री जगदीशचंद्र बसु ने इस सत्य को यंत्रों द्वारा प्रमाणित किया था। नियमित शंख व घडि़याल की ध्वनि वायुमंडल को विशुद्ध बनाने व पर्यावरण को संतुलित करने में अत्यंत सहायक होती है। इस वैज्ञानिक सत्य की खोज हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने की थी।
शंख और घंटे-घडि़याल की ध्वनि से स्थूल पदार्थों में से भी उनकी नकारात्मकता नष्ट हो जाती है। यही कारण है कि मंदिरों की दीवारें भी शांति प्रदान करती हैं।  इसके अतिरिक्त, मूकता और हकलापन दूर करने के लिए शंख ध्वनि श्रवण करना एक महौषधि है। निरंतर शंख फूंकने वाले व्यक्ति को श्वास की बीमारी नहीं होती है। शंख फूंकने के कारण दमा की सारी दूषित वायु बाहर निकल जाती है और साथ ही उनकी वायु-धारण क्षमता भी बढ़ती है।
आपने देखा होगा कि प्राय: मंदिरों आदि में आरती के पश्चात् शंख में जल भरकर उपस्थित जनों पर उसे छिड़का जाता है। इसी प्रकार शंख के जल से देवालय में रखी समस्त पूजा सामग्री को धोया जाता है। ऐसा करने से वे सब वस्तुएं सुवासित एवं रोगाणु-रहित होकर शुद्ध हो जाती हैं।  प्रतिनिधि

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