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कोरिया का वैदिक कालीन नाम गौरीय था। वहां की भाषा के अनुसार ह्यगह्ण अक्षर का उच्चारण ह्यकह्ण हो गया। भगवान शिव की पत्नी जगत् की माता गौरी के नाम पर इस देश का नाम गौरीय था, जो दीर्घ अवधि में बिगड़कर कौरीय, फिर कोरिया हो गया।
पहली शताब्दी में कोरिया में किमसुरो (जिसका अर्थ सिंह-सूर्य) नाम का सूर्यवंशी राजा राज्य करता था। उसका विवाह अयोध्या राजकुल की कन्या से 41 ईसवी में हुआ और यह राजकुमारी विदा होकर जलयान द्वारा भारत से कोरिया गई थी। राजा वैदिक धर्मी, आर्य, सनातनी तथा नौ फीट लम्बा था। उस समय कोरिया की राजधानी कया (गया) थी। गया भारत का पवित्र तीर्थ है और विष्णु के तीन प्रमुख चरणों में से एक है। इससे सिद्ध होता है कि वहां विष्णु का देवालय भी अवश्य रहा होगा। यह किमसुरो कुल बड़ा प्रभावी था। 7वीं शताब्दी में इसके सदस्यों के जापान के दरबार में सेनानियों और दरबारियों के कई बड़े पदों पर अधिकारी के रूप में नियुक्ति के प्रमाण मिलते हैं। कोरिया में चेरपु नगर में देवी भगवती का भी मन्दिर है। कोरिया में उस समय आठों दिशाओं के रक्षक देवता कुबेर, इन्द्र, यम, वरुण, ईशान, अग्नि, राक्षस और वायु की मूर्तियां मन्दिर में स्थापित थीं और उनकी पूजा होती थी। ये अष्ट दिग्पाल कहलाते थे। लंदन में ब्रिटिश संग्रहालय में इनमें से कुछ मूर्तियां आज भी सुरक्षित हैं। इनमें से एक प्रतिमा कुबेर की है जिसके 1536 के आस-पास की बनी हुई होने का अनुमान है। दूसरी प्रतिमा यम की है। ईसा की चौथी शताब्दी में कोरिया में बौद्ध धर्म पहुंचा।
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