उद्बोधन के सार-बिन्दु
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उद्बोधन के सार-बिन्दु

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Oct 19, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Oct 2013 15:14:23

शक्तिपूजा और शस्त्रपूजा का पर्व: नवमी के दिन भारतवर्ष में सर्वत्र शक्तिपूजा व शस्त्रपूजा संपन्न होती है। दशमी का दिन सीमोल्लंघन का दिन है। आज दोनों पर्व एकत्रित आये है।
समाजशक्ति का आवाहन हो : देश की परिस्थितियों में भी बहुत सारी जटिल व विकराल चुनौतियाँ हम सब देख रहे हैं, उनपर विजय पाने के लिये हमें भी अपनी शक्ति को जागृत कर पुरुषार्थ की पराकाष्ठा करनी पड़ेगी।
गलत नीतियों से उपजा आर्थिक संकट : दो वर्ष पूर्व हमारे देश के आर्थिक महाशक्ति बनने की चर्चा बड़े जोर से चल रही थी, अब रुपये के लुढ़कने का क्रम रोककर हम आसन्न आर्थिक संकट से उबरेंगे अथवा वित्तीय घाटा, चालू खाते का घाटा एवं विदेशी विनियम कोष में निरन्तर कमी की गर्त में फंसते जाते आर्थिक अराजकता की स्थिति की ओर धकेले जायेंगे इसकी चर्चाएँ चल रही हैं। लगातार उच्चपदस्थों के आर्थिक भ्रष्टाचार के प्रकरण उजागर होने तथा उनके विरुद्घ जनता में पनपा असंतोष आंदोलनों के द्वारा व्यक्त होने के बाद भी ऐसे कांडों के असली अपराधी खुले घूम रहे हैं।
शिक्षा नीति में बदलाव हो : व्यापारी वृत्ति से चलने वाली आज की शिक्षा नीति में मूलभूत परिवर्तन आवश्यक है। क्योंकि उस नीति के चलते वह शिक्षा सर्वसामान्य लोगों के पहँुच से बाहर तो हो ही गयी है, उसमें गुणवत्ता तथा संस्कारों का निर्माण भी बंद हो गया है, यह वर्तमान में हम अनुभव कर रहे है। देश में महिला अत्याचारों के प्रमाण में वृद्घि के पीछे प्रमुख कारणों में संस्कारों का अभाव भी एक कारण है।
कुटुंब व्यवस्था सुदृढ़ हो : नई पीढ़ी को इस प्रकार के संस्कार मिले इसकी व्यवस्था हमारे समाज की कुटुंब-व्यवस्था में भी है। परन्तु उसके इस महत्व को बिल्कुल ही न समझकर विभिन्न अनावश्यक कानूनों को लाकर कुटंुब के अन्तर्गत व्यक्तियों के संबंधों को भी अर्थ व्यवहार में बदलने का प्रयास
चला है।
बाह्य सुरक्षा चिंताएं : भारत की सीमाओं में घुसपैठ कर समय-समय पर भारत के तेवरों की परीक्षा करना, भारत के चारों ओर के देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाकर भारत की घेराबंदी करना, भारत के बाजारों में अपने माल को झोंकना आदि का क्रम चीन के द्वारा पूर्ववत् चला है। उत्तर पूर्वांचल में तो वहाँ की देशभक्त जनता की उपेक्षा व दमन कर वोट बैंक की राजनीति के चलते अलगाववादी कट्टरपंथी व घुसपैठ कर आयी विदेशी ताकतों का बेहूदा तुष्टीकरण और पुष्टीकरण भी धड़ल्ले से चल रहा दिखाई देता है। वहाँ के विकास की उपेक्षा पूर्ववत चल रही है। देश के सुरक्षा परिदृश्य में बिछे इन संकटों की बिसात को देखते हुये नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, बांगलादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार व दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भारत व भारतीय मूल के लोगों के हितों का संवर्धन करने की आवश्यकता है।
आंतरिक सुरक्षा चिंताएं : विदेशी विचारों से प्रेरित, वहाँ से विविध सहायता प्राप्त कर देश के संविधान, कानून व व्यवस्था आदि की हिंसक अवहेलना करने वाली इन सभी शक्तियों का अब एक गठबंधन-सा बन गया है। सामान्य लोगों के शोषण, अपमान व अभाव की परिस्थिति को शीघ्रतापूर्वक दूर करना, शासन-प्रशासन का व्यवहार अधिक जवाबदेह व पारदर्शी बनाना तथा दृढ़तापूर्वक हिंसक गतिविधियों का मूलोच्छेद करने में आवश्यक शासन की इच्छाशक्ति का अभाव है।
विभेदकारी राजनीति और बहुसंख्यक हिन्दुओं का उत्पीड़न : देश की राजनीति वोटों के स्वार्थ के चक्रव्यूह में ही खेलने में धन्यता मानकर चल रही है। इस परिस्थिति का भुक्तभोगी है भारत की प्रजा में बहुसंख्य, परंपरा से इस देश का वासी, आजन्म व बिना शर्त इस देश का ही अपना होकर रहने वाला हिन्दू समाज। जम्मू के किश्तवाड़ हिन्दू व्यापारियों की दुकानों पर सांप्रदायिक विद्वेष से प्रेरित भीड़ ने हमला किया। राज्य सरकार के गृहमंत्री तथा वहां के पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति व उकसावे में लूटपाट व विध्वंस का यह षड्यंत्र सुनियोजित ढंग से चला। यह मानसिकता समूचे जम्मू-लद्दाख-कश्मीर से ही भारत की एकात्मता, अखंडता व राज्य के भारत का अविभाज्य अंग होने के पक्षधरों को क्रमश: बेदखल करना चाहती है। मुजफ्फरनगर में एक ही संप्रदाय विशेष की गुंडागर्दी की लगातार चली घटनाओं की सत्ता के समीकरणों के चलते केवल उपेक्षा ही नहीं की गयी, उनको प्रोत्साहन व संरक्षण भी दिया गया। सत्तारूढ़ दल के इशारे पर प्रशासन ने अपने अधिकारों की मर्यादा में कानून द्वारा निर्देशित कार्य करने के तथाकथित अपराध पर एक प्रशासकीय अधिकारी को निलंबित कर तथा देशभर के संतों की पूर्णत: वैध व शांतिपूर्ण अयोध्या परिक्रमा को रोककर विवादित बनाकर अपनी छद्म पंथनिरपेक्षता की आड में साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने का खेल भी शुरू किया था। ऐसे सभी उपद्रवों के पीछे जो कट्टरपंथी असंहिष्णु आतंकी प्रवृत्ति है। उनके कारनामे तो नैरोबी के मॉल से लेकर पेशावर के चर्च तक की गई जघन्य हत्याओं जैसी घटनाओं में सर्वत्र उजागर हो रहे।  देश के गृहमंत्री ने तथाकथित अल्पयंख्यक युवकों के बारे में नरमी बरतने की सूचना राज्यों के शासकों को भेजी तथा जिस प्रकार तमिलनाडु में हाल में ही घटित हिन्दू नेताओं के कट्टरपंथियों द्वारा हत्याओं की श्रृंखला की पहले उपेक्षा और बाद में जांच में ढिलाई देखी गई। इसी मानसिकता के आधार पर साम्प्रदायिक गतिविधि निरोधक कानून-2011 के नाम पर सब प्रकार के गैर कानूनी प्रावधानों को लागू करने का एक प्रयास किया गया था।
युवा लाएंगे बदलाव : सौभाग्य से अपने समाज की वर्तमान स्थिति में जनसंख्या का एक बड़ा प्रमाण उत्साह, आस्था व अपेक्षाओं से भरे निश्चल हृदय युवाओं का भी है। इसलिए मिलकर किए गये प्रामाणिक प्रयास निश्चित फलदायी हो सकेंगे।
मतदान, तात्कालिक लेकिन अल्पकालिक कर्तव्य : 100 प्रतिशत मतदान होना प्रजातंत्र के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है। मतदान करते समय मतदाता दलों की नीति व प्रत्याशी के चरित्र का सम्यक् समन्वित दृष्टि से मूल्यांकन करें, किसी छल कपट अथवा भावना के बहकावे में न आकर, अन्य संकुचित बातों का विचार न करते हुये, मुद्दों पर, राष्ट्रहित की नीति पर चलनेवाले दल व सुयोग्य सक्षम प्रत्याशी को देखकर मतदान करें।
राष्ट्र में बदलाव के लिए, स्वयं से हो शुरुआत : चुनाव में मतदान करने से और सारा भार चुने हुए लोगों के सर पर डाल देने से हमारा कर्तव्य समाप्त नहीं होता। हम अपने व्यक्तिगत जीवन से शक्तिवर्धन व जीवन परिष्कार का प्रारम्भ करें।
कुटुंब ही मूलभूत इकाई : समाज का संपूर्ण स्वरूप स्वयं में संजोये हुये सामाजिक संरचना की सबसे छोटी व अंतिम इकाई अपने देश में कुटुंब की मानी जाती है। समाज में जो परिवर्तन हमें अपेक्षित है, हम स्वयं के कुटुंब के आचरण व वातावरण के परिष्कार से प्रारम्भ करें।
सामाजिक व्याधियों का अंत आवश्यक : अपनी इस सामाजिक पहल में सक्रिय होकर शतकों से चले दम्भ, पाखण्ड व भेद के दानव का अंत क्या हम नहीं कर सकते? हिन्दू समाज के एकरस जीवन का प्रारम्भ करने के लिये, सभी हिन्दुओं के लिये सब हिन्दू धर्मस्थान, जल के स्रोत व श्मशान खुले नहीं कर सकते? सद्घर्म व सत्कृति के पक्ष में संपूर्ण समाज परस्पर आत्मीयता व भारतभक्ति के सूत्र में आबद्घ होकर खड़ा हो, इसका यही एक उपाय है।
आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करें स्वयंसेवक : यह अलग से कहना न होगा कि उपरोक्त सभी कार्यों में व कर्तव्यों में समाज में स्वयंसेवकों का सहज उदाहरण स्वरूप होना आवश्यक है, क्योंकि समाज की ऐसी जागृत समरस व संगठित अवस्था के लिये ही गत 88 वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य चला है।
स्वामी विवेकानंद के सपनों को साकार करने का समय : जिनकी सार्धशती के आयोजन का समापन अब निकट है, उन पूज्यवर स्वामी विवेकानंद जी ने भी राष्ट्र के पुनर्जागरण के इसी पथ की कल्पना की थी। शुद्घ चरित्र, स्वार्थ व भेदरहित अंत:करण, शरीर में वज्र की शक्ति व हृदय में अदम्य उत्साह व प्रेम लेकर, स्वयं उदाहरण बन, राष्ट्र की सेवा में सर्वस्व समप्रण करनेवाले युवकों के द्वारा ही अपनी पवित्र भारतमाता को विश्वगुरु पद पर आसीन करने का निर्देश उन्होंने समाज को दिया है।
 

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