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उत्तर प्रदेश में मुसलमान वोट बटोरने के लिए कांग्रेस की आतुरता तब खुलकर सामने आई जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश में प्रचार के श्रीगणेश के लिए दो मुस्लिम बहुल शहरों अलीगढ़ और रामपुर को चुना। मुजफ्फरनगर के दंगों के घाव कुरेदने के साथ ही अपना अध्यादेश फाड़ने वाले सीन का जिक्र करना नहीं भूले, खाद्य सुरक्षा को लेकर भूमि अधिग्रहण तक केन्द्र की तमाम नेमतें भी गिना डालीं। जो लोग आए थे,या लाए गए थे वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि कब ताली बजाएं, कब चुप बैठें।
अलीगढ़ के नुमाइश मैदान में रैली थी। वही पिटा पिटाया ह्यरागाह्ण(यानी राहुल गांधी के नाम का सूक्ष्म रूपांतरण) वाचन जारी था। दंगे कराये जाते हैं। सपा-भाजपा अपना आधार खो चुके हैं। लोग सिर खुजा रहे थे। हर बड़े चैनल के टीवी कैमरे मौजूद थे और कवरेज भी खूब मिली। वैसे भी गुजरात के मुख्यमंत्री नवरात्र के कारण सक्रिय नहीं हैं, इसलिए आसानी थी। लेकिन यहीं यह बात भी साफ हो गई कि कांग्रेस के उस आदेश का ज्यादातर टीवी चैनल बड़ी वफादारी से पालन कर रहे हैं कि भीड़ कम हो तो कैमरा राहुल पर ही फोकस रखा जाए। अधिकांश समय कैमरा मंच पर ही टिका रहा। भीड़ का विहंगम दृश्य दिखाने की हिमाकत किसी ने नहीं की। वो तो लोगों को अगले दिन टाइम्स ऑफ इंडिया पढ़कर पता चला कि मुसलमान वोट बटोरने के लिए जो नुमाइश मैदान में इतना बड़ा तमाशा किया गया उसमें कुल जमा दस हजार लोग मौजूद थे।
दुख है कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद वहां जाना मुस्लिमों को रिझाने का कांग्रेस का अब तक का सबसे बड़ा शो था, वह भी मुसलमानों के बीच हिट नहीं रहा। हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पर क्या करें राहुल को जहां मुस्लिम प्रेम बेचना होता है, वहां वह भूमि सुधार की बातें करने लगते हैं, खाद्य सुरक्षा का राग अलापने लगते हैं। मुसलमानों को यह समझ ही नहीं आता कि वह कहना क्या चाहते हैं। (करना क्या चाहते हैं ये तो खैर अलग ही बात है)
उत्तर प्रदेश में समानांतर मुख्यमंत्री का रुतबा रखने वाले आजम खान की तमाम बातों में से लाख असहमत लोगों को भी रामपुर के विधायक की यह टिप्पणी बुरी नहीं लगी, ह्यराहुल के लिए जितनी भीड़ जुटी उससे ज्यादा तो रामपुर की सड़कों पर तब जुट जाती है जब मेरी गाड़ी खराब हो जाती है और मैं सड़क पर उतरता हूं।ह्णअलीगढ़ और रामपुर में मुसलमानों के बीच अल्पसंख्यक राजनीति की मार्केटिंग करने में पहले दौर में तो राहुल कांग्रेस के नितांत प्रभावहीन सेल्समैन साबित हुए हैं। यह हाल तो तब है जब वह प्रचार के मैदान में अकेले ही दौड़ रहे हैं। परीक्षा तो अब शुरु होने वाली है, जब मोदी कानपुर में आएंगे। उसके बाद पटना है। देखते हैं। अजय विद्युत
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